sperm allergy

स्पर्म या सीमेन एलर्जी रोग :- स्पर्म या सीमेन एलर्जी एक दुर्लभ किस्म का यौन संचारित रोग है ,जो यौन संपर्क के दौरान पुरुष के स्पर्म से स्त्रियों को हो जाता है। वास्तव में स्पर्म से नहीं उसमें मौजूद एलर्जिक प्रोटीन्स की वजह से होती है। सीमेन एलर्जी या ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपर सेंसटिविटी एक ऐसी अवस्था है ,जिसमें पुरुषों को सीमेन से एलर्जिक प्रतिक्रिया होती है। ऐसे में महिलाओं को भी पुरुषों से सम्बन्ध बनाने से एलर्जी हो सकती है किन्तु यह बहुत ही रेयर कंडीशन है ,जिससे ग्रसित बहुत ही कम लोग होते हैं। यह एक यौन संचारित रोग की दुर्लभ बीमारी है। इसे वीर्य एलर्जी के नाम से भी जाना जाता है। यौन क्रिया के दौरान जब पुरुष का वीर्य स्खलित होता है तो पुरुष के प्रोस्टेट ग्लैंड से ग्लाइको प्रोटीन भी उत्सर्जित होकर महिलाओं के योनि के द्वारा जब अन्य अंगों से संपर्क में आता है तो एक प्रकार की प्रतिक्रिया होती है जिसके फलस्वरूप प्रजनन अंगों एवं शरीर के अन्य भागों में भी खुजली,छाती में घुटन ,पेशाब में दर्द आदि जैसे लक्षण कुछ देर बाद होने लगते है। यह स्पर्म एलर्जी के कारण ही होता है। 

लक्षण : - सिर दर्द,थकान,योनि में सूखापन,रैशेज,लिंग के आगे वाले भाग पर रैशेज, जननांग में खुजली,छोटे - छोटे दाने निकलना,योनि में जलन,छाती में घुटन,बेहोशी,घरघराहट,सूजन,साँस लेने में परेशानी,पेशाब करने में दर्द,एक्जिमा आदि जैसे प्रमुख लक्षण स्पर्म या सीमेन एलर्जी में दृष्टिगोचर होने लगते हैं। 

कारण :- स्पर्म में पाए जाने वाले एलर्जिक ग्लाइको प्रोटीन स्पर्म या सीमेन एलर्जी के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- स्पर्म या सीमेन एलर्जी का कोई उपचार नहीं है,किन्तु कुछ सावधानियों का पालन कर इससे बचा जा सकता है। 

(1) स्पर्म या सीमेन एलर्जी से बचने के लिए यौन क्रिया के दौरान कंडोम का प्रयोग अति लाभदायक सिद्ध होता है और स्पर्म एलर्जी से बचा जा सकता है। 

(2) स्पर्म एलर्जी से बचने के लिए महिलाओं को सम्भोग से पहले एंटी एलर्जिक औषधियों का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है जिससे स्पर्म या सीमेन एलर्जी के दुष्प्रभावों को कुछ हद रोका जा सकता है। 

(3) स्पर्म या सीमेन एलर्जी से बचने के लिए महिलाओं को सम्भोग के तुरंत बाद अपने योनि को फिटकरी से युक्त पानी से धोने से भी स्पर्म एलर्जी से बचा जा सकता है। 

(4) स्पर्म या सीमेन एलर्जी से बचने के लिए पुरुषों को अपने ऊपर नियंत्रण रखकर सम्भोग के दौरान अपने वीर्य का स्खलन योनि के बाहर करने से भी इस एलर्जी से बचा जा सकता है। 

(5) स्पर्म या सीमेन एलर्जी से बचने के लिए इंट्रावेजाइनल सेमीनल ग्रेडिड चैलेंज का प्रयोग डॉक्टर की सलाह से करने से भी इस तरह की एलर्जी से लड़ा जा सकता है और एलर्जी से लड़ने की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। 


latex allergy disease

लेटेक्स एलर्जी रोग :- लेटेक्स एलर्जी एक अत्यंत रेयर किस्म का रोग है ,जो सभ्यता के आरंभिक काल से प्रचलित है। यह रोग अनसेफ सेक्स के कारण होता है और यह बीमारी लगभग 1 % जनसंख्या में पायी जाती है। वास्तव में प्राकृतिक रबर लेटेक्स में पाए जाने वाले कुछ खास प्रोटीन से एलर्जी के कारण होने वाला यह रोग है। एसटीडी एवं एचआईवी जैसी घातक बीमारियों से अनसेफ सेक्स से दूर रहकर बचा जा सकता है किन्तु यह तरीका लेटेक्स से होने वाली एलर्जी से बचाने के लिए उपयुक्त नहीं है। लेटेक्स एलर्जी से बचने के लिए प्राकृतिक स्किन कंडोम या लेटेक्स कंडोम का इस्तेमाल जरुरी है। प्राकृतिक स्किन कंडोम अक्सर मेमने के इंटेस्टाइनल मेम्ब्रेन से बनाये जाते हैं और यह सीमेन को थोड़ी जगह देने के लिए कम ढीले होते हैं एवं इलास्टिक जैसे गुणों से युक्त नहीं होते हैं और इन्हें गीले लुब्रिकेंट में रखा जाता है। इस तरह के कंडोम मार्केट में कम उपलब्ध होते हैं साथ ही हर जगह नहीं मिलते हैं। 

लक्षण : - चकत्ते ,फफोला ,लालिमा युक्त त्वचा ,छींक आना ,नाक बहना ,खुजली ,गले में खराश ,नम आँखें ,लिंग में जलन एवं खुजली ,निम्न रक्तचाप ,घरघराहट ,खांसी आदि लेटेक्स एलर्जी के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - कंडोम का प्रयोग ,अनसेफ सेक्स ,लेटेक्स उत्पादों का प्रयोग औद्योगिक रबर श्रमिक के संपर्क में आने आदि लेटेक्स एलर्जी के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - लेटेक्स एलर्जी का कोई कारगर उपाय नहीं है ,किन्तु लेटेक्स एलर्जी को रोकना संभव है - 

(1) दस्ताने सहित लेटेक्स उत्पादों के साथ संपर्क से बचकर। 

(2) ऐसे क्षेत्रों में जाने से बचे जहाँ साँस लेने का जोखिम अधिक हो। 

(3) गैर - लेटेक्स दस्तानों का प्रयोग करके। 

(4) लेटेक्स युक्त धूल से दूषित क्षेत्रों से दूर रहकर। 

(5) लेटेक्स एलर्जी का इलाज नहीं किया जा सकता है किन्तु इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। 


syphilis disease

उपदंश या सिफलिस :-उपदंश सिफलिस ट्रीपोनीमा पैलिडम बैक्टीरिआ के द्वारा फैलनेवाला एक संक्रामक बीमारी है,जो संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने पर फैलता है।प्रदुष्ट स्त्री के साथ सम्भोग करने पर दश दिन से दश सप्ताह के अंदर शिश्न पर एक छोटे बटन के आकार का कठिन,श्रावयुक्त वेदनारहित शोथ हो जाता है। इस बीमारी में योनि,गुदा,मलाशय,होंठ और मुँह में छाले भी होने की सम्भावना अधिक होती है। इसमें जननांगों,मलाशय,मुँह या त्वचा की ऊपरी सतह पर दर्द रहित छाला संक्रमण का प्रथम संकेत है।यह बीमारी चार चरणों में विभाजित की जा सकती है -प्राथमिक ,माध्यमिक अव्याप्त या छिपा हुआ और तृतीयक।प्रथम दो चरणों के समय यह संक्रामक दौर में होता है ;किन्तु छिपी हुई अवस्था में ही यह सक्रिय रहता है परन्तु इसका लक्षण नहीं दिखाई पड़ता है।यह छिपी हुई अवस्था दूसरों के लिए संक्रामक नहीं होता।तृतीयक अवस्था स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होती है।इस अवस्था में  शिश्न पर पाए जाने वाला व्रण की उचित चिकित्सा न होने पर सम्पूर्ण लिंग सड़-गलकर गिर जाता है और बिना शिश्न के अंडकोष रह जाता है,जो व्यक्ति के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्णऔर भयानक स्थिति कह सकते हैं।

लक्षण :-प्राथमिक -पीड़ारहित छोटे छाले।माध्यमिक -बिना खुजली वाले चकत्ते,लाल,खुरदरे,मुँह,गुदा एवं जननांगों में मस्से जैसे छाले,मांसपेशियों में दर्द,ज्वर,गले में खराश,लसिका ग्रंथियों में सूजन,बाल झड़ना,वजन कम  होना,सिरदर्द आदि।अव्यक्त या छिपा हुआ -यह अवस्था कई वर्षों तक रह सकता हैं।तृतीयक - अंधापन,बहरापन,मानसिक बीमारी,याददास्त क्षीण या ह्रास,दिल की बीमारी,न्यूरोसिफलिस,जो मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में होने वाला संक्रमण,स्ट्रोक या मेनिंजाइटिस आदि उपदंश के मुख्य लक्षण हैं।

कारण :-बिना सुरक्षा के यौन सम्बन्ध बनाना,मुखमैथुन या ओरल सेक्स करना,ऋतुकाल में सम्भोग करना,गर्भावस्था में माँ के गर्भ से या प्रसव के दौरान शिशु में आना,एक से अधिक व्यक्तियों के साथ सेक्स सम्बन्ध रखना, पुरुष का पुरुष के साथ सम्बन्ध रखना,वेश्या गमन करना आदि कारणों से उपदंश या सिफलिस की बीमारी होने की सम्भावना ज्यादा रहती हैं।

उपचार :- (1) अमलताश,देशी नीम,हरड़,बहेड़ा,देशी आँवला और चिरायता से काढ़ा बनाकर उसमें खैरसार व विजयसार मिलाकर पीने से उपदंश की बीमारी का नाश हो जाता हैं।

 (2)नीम की पत्तियाँ पानी में उबालकर घाव धोने से उपदंश की बीमारी में आराम होता हैं।

 (3)15-25  ग्राम अरंडी के तेल को गिलोय के काढ़े में मिलाकर लगाने से उपदंश की बीमारी दूर हो जाती हैं।

 (4)त्रिफला के काढ़े से उपदंश के घावों को धोने से ठीक हो जाता हैं।

 (5)त्रिफला की राख में शहद मिलाकर लगाने से उपदंश की बीमारी नष्ट हो जाती हैं।

 (6) रसकपूर,सफ़ेद कत्था,मुर्दा शंख,शंख जीरा तथा सुपारी की राख या त्रिफला की राख को मिलाकर मलहम बना लगाने से उपदंश की बीमारी दूर हो जाती हैं।अनुभूत औषधि हैं। 

 (7)कचनार की छाल,इन्द्रायण की जड़,बबूल की फली,जड़ तथा पत्तों सहित छोटो कटेरी तथा ईख का गुड़ २५० ग्राम;सबको चार लीटर पानी में डालकर मिट्टी की हांड़ी में पकाएं ,जब चौथाई रह जाए तो छान लें और इसे  आठ खुराक के रूप सुबह -शाम सेवन करने से उपदंश की बीमारी समूल नष्ट हो जाती हैं।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि हैं।


gonorrhoea disease

सुजाक :-सुजाक एक यौन संक्रामक बीमारी है ,जो नीसेरिया गानोरिया नामक जीवाणु के कारण होता है।यह जीवाणु महिला एवं पुरुषों के प्रजनन मार्ग के गर्म एवं गीले क्षेत्रों में बहुत शीघ्रता से बढ़ती है।यह जीवाणु मुँह,गला,आँख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं। मुख्य रूप से यह रोग संक्रमित व्यक्ति से यौन सम्बन्ध स्थापित करने पर होता है।इसमें लिंग या योनि के अंदर घाव हो जाता है और पस या रक्त निकलता है।यह लिंग,योनि,मुँह या गुदा के संपर्क से भी फ़ैल सकता है और प्रसव के दौरान माँ से बच्चे को भी हो सकता है।महिलाओं में गोनोरिया के लक्षण बहुत ही कम मिलते हैं ;किन्तु उन्हें प्रारम्भ में पेशाब में के दौरान दर्द की अनुभूति या जलन होना शुरू होने लगता है। इसके अतिरिक्त योनि से अधिक मात्रा में स्राव का होना एवं मासिक धर्म के समय के पहले बीच में भी रक्त स्रावित होने जैसे लक्षण दृष्टिगोचर होना आम समस्या है। 

लक्षण :-पेशाब करते समय जलन,लिंग से सफ़ेद,पीला या हरा स्राव,कभी-कभी अण्डग्रन्थि में दर्द या सूजन,गले में गांठ और दर्द भी सुजाक के लक्षण हो सकते हैं।महिलाओं में सुजाक के लक्षण बहुत कम होते हैं।महिला को पेशाब करते समय दर्द या जलन,योनि से अधिक मात्रा में स्राव निकलता है या मासिक धर्म के बीच में योनि से रक्त निकलता है,योनि मार्ग में पीप दिखाई देता है,योनिशोथ या मूत्रमार्ग दबाने से दर्द,सफ़ेद पानी आना,तथा डिस्चार्ज में योनि में काफी खुजलाहट होती है।

कारण : - नीसेरिया गोनोरिया जीवाणु,अत्यधिक मैथुन,गुदा मैथुन,मुख मैथुन,संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आना,संक्रमित महिला के प्रसव के दौरान संपर्क में आना आदि सुजाक रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) बेलगिरी के गूदे को एक गिलास दूध में डालकर मिला लें फिर छानकर उसमें एक चम्मच चीनी डालकर सेवन करने से सुजाक की बीमारी दूर हो जाती है।

 (2)खीरे के एक गिलास रस में 5 ग्राम कलमी शोरा मिलकर पीने से सुजाक की बीमारी का नाश हो जाता है। 

 (3)खरबूज के बीज को छीलकर पीस लें और उसे पानी में मिलाकर उसमें दश-बारह बूँद चन्दन क  तेल डालकर पीने से सुजाक का समूल नाश होता है।

 (4)पके केले के फूल को सूखा कर चूर्ण बना उसमें पंद्रह ग्राम कलमी शोरा मिलाकर डेढ़ लीटर पानी मिट्टीके बर्तन में डालकर रात भर रख कर सुबह दूध में मिलाकर सेवन करने से सुजाक का नाश 

       हो जाता है। 

 (5) तरबूज लेकर उसके कठोर आवरण हटा कर उसमें आठ ग्राम कलमी शोरा और 60 ग्राम मिश्री  मिलाकर मिट्टी के बर्तन में ढक दें।अगले दिन रस निकाल कर पीने से सुजाक का नाश होता है। 

     अनुभूत एवं अचूक है।

(6) आम की छाल को कूटकर पीसकर कपड़छान कर रख लें और प्रतिदिन एक डेढ़ चम्मच सुबह - शाम सेवन करने से प्रमेह,सुजाक या गोनोरिया की बीमारी बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। 

(7) आम के कोमल पत्ते पीसकर प्रतिदिन सुबह- शाम जल के साथ सेवन करने से सुजाक या गोनोरिया एवं प्रमेह रोगों में अत्यंत आश्चर्यजनक सुधार आता है। 

(8) जामुन के पत्ते को पीस कर पानी के साथ प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से सुजाक या गोनोरिया बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। 

(9) बबूल की कच्ची फलियों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और उसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलकर प्रतिदिन सुबह - शाम एक से डेढ़ चम्मच ताजे जल के साथ सेवन करने से बहुत जल्दी आराम हो जाता है। 

(10) बरगद के आठ से दस बून्द दूध को बताशे में रखकर प्रतिदिन सुबह खाने से सुजाक या गोनोरिया में आश्चर्य जनक लाभ होता है। 

(11) गूलर के कच्चे फल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनालें और उसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर एक से डेढ़ चम्मच ताजे जल के साथ सुबह सेवन करने से सुजाक या गोनोरिया में अद्भुत लाभ मिलता है। 

(12) कतीरा,ढाक या पलाश का गोंद,बबूल का गोंद,सेमल का गोंद,लाजबन्ती के बीज,बंशलोचन,इसबगोल की भूसी,चिकनी सुपाड़ी सबको पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह,सुजाक या गोनोरिया शत -प्रतिशत दूर हो जाता है। 

सावधानियां : - इलाज के दौरान यानि संक्रमण की स्थिति में अपने जीवन साथी के साथ यौन गतिविधि से दूर रहें ताकि उन्हें भी संक्रमण से बचाया जा सकें।  साथ ही मुख मैथुन एवं गुदा मैथुन से दूर रहें। 


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