typhus fever

टाइफस ज्वर:-टाइफस ज्वर एक बहुत ही सूक्ष्म जीव "रिकेट्सिया "के कारण होता है,जो सामान्यतः जूँ आदि कीड़ों की आहारनली में पाई जाती है।सन 1961 ईस्वी में इस बीमारी की खोज रिकेट्स और प्रोवाजेकी ने किया था।टाइफस ज्वर भीड़ -भाड़,गंदगी,गरीबी,सर्दी,क्षुधा आदि के कारण फैलती है।विशेषकर जेलों,युद्धों,जहाजों और अकाल के दिनों में फैलता था।अतः इसे जेल ज्वर भी कहा जाता था।चूँकि यह बीमारी संसार के सभ्य देशों में अब नहीं होता है।

लक्षण:-सर दर्द,भूख न लगना,तबियत का भारीपन महसूस करने के बाद अकस्मात ठण्ड लगकर ज्वर आना,सन्निपात,बेहोशी एवं ह्रदय की दुर्वलता प्रकट होना,ज्वर में चौथे से छठे दिन तक शरीर पर दाने निकलना,डेन के पास सूजन,रक्त संचार में दिक्क्तें और फेफड़ों में निमोनिया आदि होना टाइफस ज्वर के मुख्य लक्षण हैं।

उपचार:-(1)त्रिकुटा,सोंठ,भारंगी और गिलोय का काढ़ा पीने से टाइफस ज्वर नष्ट हो जाता है।

(2)गिलोय,कुटकी,कटेरी,चिरायता,सोंठ,कचूर,हरड़,भारंगी समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर सुबह -शाम पीने से टाइफस ज्वर का नाश हो जाता है।यह अनुभूत एवं अचूक औषधि है।

 (3)पुराना घी और देशी कपूर एक ग्राम मिलाकर रोगी के सर पर दिन में पाँच बार मालिश करने से टाइफस ज्वर में आराम मिलता है।

 (4)आक की जड़,काली मिर्च,सोंठ,पीपल,चीता,चेकदारु, पीला सहिजन,बच और अरंड सबको समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर काढ़ा बनाकर पीने से टाइफस ज्वर का नाश हो हो जाता है।

  (5)सिरस के बीज,पीपल,काली मिर्च तथा कला नमक लेकर काढ़ा बनाकर पीने से टाइफस ज्वर का नाश हो जाता है।


sandfly fever

बालूमाक्षिका ज्वर :-यह ज्वर फ़्लिबाटोमस पापाटेसाई नामक विषाणु के कारण होता है।बालू नामक मादा मक्खी जब इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को काटती है तो विषाणु रक्त के साथ मक्खी के उदर में पहुँच जाते हैं तथा सात से दश दिनों के अंदर इनका उद्भवन होता है तथा बालू मक्खी जीवनपर्यन्त रोगवाहिनी बनकर बालुमक्षिका ज्वर को फैलाती रहती है।यह रोगवाहक मक्खी जब स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तब इन विषाणुओं का समूह उसकी त्वचा के अंदर चला जाता है,जो पाँच दिनों के अंदर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है।

लक्षण :-मस्तक के अग्रभाग में तीव्र पीड़ा,आँखों के गोले के पीछे दर्द,मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द,चेहरा का लाल हो जाना,नाड़ी की गति तीव्र हो जाना,शारीरिक शिथिलता एवं दुर्वलता का आ जाना,जी मिचलाना,त्वचा क्षति आदि बालूमाक्षिका ज्वर के मुख्य लक्षण हैं।

उपचार :- (1)सुबह खाली पेट मूली के रस में सेंधा नमक मिलकर पीने से तिल्ली (प्लीहा)का बढ़ना बंद हो जाता है और कालाजार की बीमारी का नाश हो जाता है।

 (2)आंवला चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में सुबह -शाम खाने से प्लीहा का बढ़ना रूक जाता है और कालाजार का नाश हो जाता है।

 (3)पीपल का सेवन करने भी कालाजार की बीमारी दूर हो जाती है।

 (4)नौसादर और चूना सामान मात्रा में लेकर रात में ओस में रख दें और सुबह तक वो द्रव्य में परिवर्तित  हो जायेगा।उसे बताशे में डालकर रोजाना खाने से प्लीहा ठीक हो जाती है और कालाजार नष्ट हो  जाता है।

   (5)गिलोय के रस का सुबह -शाम सेवन करने से कालाजार का नाश हो जाता है।


black fever

कालाजार :- कालजार उष्ण प्रदेशों में विशेषतः बिहार,बंगाल,आसाम एवं श्रीलंका आदि में अधिक पाया जाता है।यह धीरे -धीरे विकसित होने वाला एक देशी बीमारी है,जो एक कोशीय परजीवी द्वारा होता है।यह परजीवी लिशमेनिया है,जो आमतौर पर संक्रमित मादा सैंड फ्लाई के शरीर में रहते हैं और जब यह मक्खी इंसान को काटती है तो लिशमेनियासिस उसके रक्त में मिल जाता है और वह व्यक्ति कालाजार से ग्रसित हो जाता है :किन्तु इसका लक्षण कई सालों बाद दिखाई देता है।

लक्षण :-प्लीहा का बढ़ जाना,यकृत का बढ़ जाना,नाक एवं मसूड़ों से रक्त स्राव होना,अधिकतर पेचिश,निमोनिया और अतिसार,कृशता,शरीर का रंग काला सा या मटमैला सा होना,कम रक्तचाप,रोगी के टखनों एवं पलकों में सूजन होना ,बेचैनी होना आदि कालाजार के लक्षण हैं।

उपचार :-(1)सुबह खाली पेट मूली के रस में सेंधा नमक मिलकर पीने से तिल्ली (प्लीहा)का बढ़ना बंद हो जाता है और कालाजार की बीमारी का नाश हो जाता है।

             (2)आंवला चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में सुबह -शाम खाने से प्लीहा का बढ़ना रूक जाता है और कालाजार का नाश हो जाता है।

              (3)पीपल का सेवन करने भी कालाजार की बीमारी दूर हो जाती है।

               (4)नौसादर और चूना सामान मात्रा में लेकर रात में ओस में रख दें और सुबह तक वो द्रव्य में परिवर्तित  हो जायेगा।उसे बताशे में डालकर रोजाना खाने से प्लीहा ठीक हो जाती है और कालाजार नष्ट हो  जाता है।

                (5)गिलोय के रस का सुबह -शाम सेवन करने से कालाजार का नाश हो जाता है।


 


yellow fever

पीत ज्वर :- पीत ज्वर एक संक्रामक बीमारी हैं ,जो अकस्मात् आरम्भ होता हैं।इसकी तीव्रता बहुत अधिक होती हैं। इसमें ज्वर जाड़ा देकर आता हैं।यह बीमारी स्टीगोमिया फेसियाटा जाति के मच्छरों के काटने पर एक सूक्ष्म विषाणु के द्वारा होता हैं।इस रोग से उत्पन्न विकृति के प्रभाव लीवर,गुर्दे और रक्तवाहनियों में परिलक्षित होते हैं।पीत ज्वर में वमन( कॉफी रंग का),नाड़ी की गति मंद,काले दस्त,मूत्र में एल्बुमिन की मात्रा,पित्तयुक्त मूत्र,रक्तस्राव,रक्तचाप की कमी एवं पीलिया के लक्षण पाए जाते हैं।

लक्षण :-तीव्र ज्वर आना,सिरदर्द,ठण्ड लगना,पीठ दर्द,गंभीर परिस्थिति में मुँह से खून आना,भूख न लगना,वमन,साँस लेने में तकलीफ आदि पीत ज्वर के मुख्य लक्षण हैं।

उपचार :-(1)आंवला,चीता की जड़,हरड़,पीपरी और सेंधा नमक सबको समान भाग लेकर चूर्ण बना लें और एक चम्मच सुबह -शाम खाकर गुनगुना पानी पीने से पीतज्वर का नाश हो जाता हैं।

 (2 )तुलसी के पत्तों को एक लीटर पानी में उबालें ,जब आधा लीटर रह जाए तो एक छोटा चम्मच काली मिर्च चूर्ण और तीन- चार चम्मच शहद डालकर काढ़ा बना लें।दिन में सुबह -दोपहर -शाम दो -दो चम्मच पीने से पीतज्वर नष्ट हो जाता हैं।

 (3)जौ एक पाव को एक लीटर जल में डालकर धीमी आंच पर गरम करें ,जब आधा लीटर जल शेष रहे तो छान कर रख लें और इसे सुबह -शाम सेवन करने से पीतज्वर समूल नष्ट हो जाता हैं। 

 


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मोतीझरा,टाइफाइड या मियादी बुखार :-मोतीझरा,टाइफाइड या मियादी बुखार एक तीव्र ज्वर है,जो सालमोनीला टाइफोसा नामक जीवाणु द्वारा फैलता है।यह जीवाणु मनुष्य शरीर में परजीवी है, जो रोगी के मल एवं मूत्र के साथ बाहरआता है। इसलिए यह बीमारी दूषित भोज्य एवं पेय पदार्थों के माध्यम से फैलता है।चूँकि इस रोग में मनुष्य की त्वचा पर मोती के समान दाने निकलते हैं,इसलिए इसे मोतीझरा के नाम से जाना जाता हैं।

लक्षण :-ज्वर,सिर पीड़ा,भूख न लगना,सुस्ती,आलस्य,धीरे-धीरे ज्वर का बढ़ना,सन्निपात,त्वचा पर मोती के समान दानों का निकलना,आँतों में घाव होना एवं घावों से रक्तस्राव,पेट की झिल्ली में सूजन,निमोनिया एवं मस्तिष्क दाह आदि मोतीझरा,टाइफाइड या मियादी बुखार के मुख्य लक्षण हैं। 

कारण :-स्वच्छता का ध्यान नहीं रखना,खुले में रखी खाद्य पदार्थों का सेवन करना,टाइफाइड से पीड़ित व्यक्ति का झूठा भोजन खाना,संक्रमित व्यक्ति का रक्त चढ़ाना,सीवरेज की लाईनऔर पीने के पानी की पाइप लाईन का पास होना इस बीमारी के मुख्य कारण हैं,क्योंकि इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति के मल में बैक्टीरिया होता हैं,जो मक्खी -मच्छर के उस पर बैठने से उसके द्वारा खुले हुए खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो जाते हैं और स्वस्थ व्यक्तियों द्वारा खाने से उन्हें मोतीझरा,टाइफाइड या मियादी बुखार हो जाता हैं।  

उपचार :-(1)एक गिलास ताजा छाछ में एक चम्मच धनिया पट्टी का का रस मिलकर दिन में सुबह-शाम पीने से इनमें आराम मिलता हैं।

 (2)तुलसी के पत्ते आठ -दश और तीन-चार काली मिर्च लेकर बारीक पीस लें और इसमें थोड़ा पानी मिला लें।आधा गिलास पानी के साथ सुबह-शाम लेने से आराम मिलता हैं।

 (3)दो ग्राम खूबकला,चार अंजीर और दश मुनक्का (बीज निकाल कर)पीसकर चटनी बनाकर सुबह-शाम खाने से टाइफाइड की बीमारी का नाश होता हैं।(4) बंग भस्म चने के दाल के बराबर मात्रा लेकर पिप्पली चूर्ण एवं शहद के साथ सेवन करने से मियादी बुखार का नाश होता हैं।

 (5)काली तुलसी,बन तुलसी और पोदीना को समान भाग लेकर पीस कर सेवन करने से टाइफाइड में आराम मिलता हैं।

 (6)दश पत्ते तुलसी तथा जावित्री आधा से एक ग्राम लेकर पीसकर शहद के साथ चाटने से टाइफाइड का नाश होता हैं।                         

 (7) महा सुदर्शन चूर्ण के सुबह शाम सेवन से सभी तरह के पुराण से पुराण बुखार दूर हो जाता है,साथ ही इम्युनिटी को भो बढ़ाता है।


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