कुष्ठ (कोढ़):-यह संसार की प्राचीनतम ज्ञात रोगों में से एक है ।चरक एवं सुश्रुत आदि चिकित्सा शास्त्रियों ने भी इसका विस्तृत विवेचन किया है ।यह बीमारी अधिकांशतः कर्क रेखा के आसपास गर्म देशों के उत्तरी एवं दक्षिणी पट्टी में ही सीमित है । यह अन्य देशों से लगभग उन्मूलित हो चूका है किन्तु भारत ,अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका मे यह रोग अधिक व्यापक रूप में है ।कुष्ठ एक संक्रामक रोग है, जो माइक्रो बैक्टीरियल लेप्रो नमक जीवाणु के त्वचा या साँस के द्वारा शरीर में प्रवेश करने के कारण होता है ।कुछ समय बाद त्वचा पर सूखापन लिए हुए लाल या सफ़ेद चकते उभर आते हैं ।इसके बढ़ने के साथ -साथ उँगलियों में विकलांगता आने लगती है और दर्द रहित घावों के साथ हाथों -पांवों की उँगलियाँ गल जाती हैं ।लोग आज भी जो अंधविश्वासी हैं , इसे ईश्वर का प्रकोप मानते हैं और मनुष्य के द्वारा किये गए पापों का परिणाम समझते हैं। इससे दूर रहना,घृणा करना,अपशगुन मानना आदिआज समाज में व्याप्त है ।
उपचार :-(1 )करंज, नीम,और खदिर के 100 -100 ग्राम पत्तों को पानी में उबालकर नहाने से कुष्ठ का नाश होता है ।
(2 )बाकुची,और टिल 3 -3 ग्राम लेकर मिलाकर थोड़ा पीसकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से कुष्ठ का नाश होता है ।
(3)आक की जड़ को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रखें और 2 रत्ती चूर्ण में 2 रत्ती सोंठ का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ का समूल नाश होता है।
(4 )बाकुची के बीज 25 ग्राम,सफ़ेद मूसली 25 ग्राम,और चित्रक 25 ग्राम लेकर सभी को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर 4 ग्राम चूर्ण शहद
के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से कुष्ठ का नाश हो जाता है ।
(5 )निर्गुण्डी की जड़ को छाया में सुखाकर कूट पीस चूर्ण बनाकर 3 ग्राम सुबह -शाम पानी के साथ सेवन से कुष्ठ का नाश हो जाता है ।
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