eosinphilia disease

इस्नोफीलिया रोग : - इस्नोफीलिया एक अत्यंत कष्टप्रदायक रोग है,जो रक्त में या शरीर की कोशिकाओं में असामान्य रूप से अधिक बनने एवं इकट्ठा होने की वजह होता है। वास्तव में यह श्वेत रक्त कणिकाओं का ही एक किस्म है जो अस्थिमज्जा में निर्मित होकर रक्तप्रवाह एवं आँतों की परतों में पाया जाता है। यह शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होता है। हमारे रक्त में इस्नोफीलिया की एक निश्चित मात्रा होती है ;किन्तु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है तो इसे इस्नोफीलिया रोग के नाम से जाना जाता है। वास्तव में इस्नोफीलिया का प्रभाव मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर बहुत बुरा पड़ता है। समय पर उपचार की आवश्यकता होती है , यदि चिकित्सा न मिलने पर गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जा सकती है। 

लक्षण : - सांस लेने में कठिनाई,सांस लेने में सीटी की आवाज आना,पेट दर्द,अतिसार,बुखार,खांसी,त्वचा पर निशान,वजन में गिरावट,रात में पसीना,लसिका ग्रंथियों का बढ़ जाना,नसों के क्षतिग्रस्त होने पर झुनझुनी,गले के आसपास सूजन,थकावट,मांसपेशिओं में दर्द,बलगम निकालने में परेशानी,आदि इस्नोफीलिया रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

 कारण : - एलर्जी,अस्थमा,एक्जिमा,रायनाइटिस,गठिया रोग,पेनिसिलिंस,सल्फोनामाइस का अधिक प्रयोग,ज्यादा खट्टी - मीठी एवं तेल मसाले का उपयोग,परजीवी कीटाणुओं का संक्रमण,दोपहर को सोना आदि इस्नोफीलिया रोग के मुख्य कारण हैं। 


उपचार : - (1) पानी में नीलगिरी की कुछ बूंदें डालकर भाप लेने से जमा हुआ बलगम नरम होकर निकल आता है और इस्नोफीलिया में बहुत आराम मिलता है। 

(2) चाय में अदरक या अदरक की आधा चम्मच रस डालकर पीने से इस्नोफीलिया रोग ठीक हो जाता है। 

(3) काली मिर्च पाउडर एवं शहद का मिश्रण पानी में घोलकर सुबह - शाम सेवन करने से इस्नोफीलिया रोग दूर हो जाता है। 

(4) दो चम्मच मेथी दाने को पानी में उबालकर उससे गरारे करने से भी इस्नोफीलिया ठीक हो जाती है। 

(5) पर्याप्त मात्रा में जल के नियमित सेवन से भी इस्नोफीलिया में बहुत आराम मिलता है। 

(6) नीम की पत्तियों का रस एक - दो चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से खून शुद्ध होकर इस्नोफीलिया में बहुत राहत प्रदान करता है। 

(7) एक चम्मच यष्टि मधु को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर सेवन इस्नोफीलिया में अत्यंत लाभकर होता है। 

(8) एक गिलास पानी में एक चम्मच प्याज का रस मिलाकर सेवन करने से इस्नोफीलिया में बहुत में बहुत फायदा होता है। 

(9) एक चम्मच मेथी चूर्ण को एक गिलास गुनगुने जल में डालकर गरारे करने से इस्नोफीलिया में बहुत फायदा मिलता है। 

(10) शहद,हल्दी,काली मिर्च,अदरक,लहसुन आदि के सेवन से भी इस्नोफीलिया में बहुत लाभ होता है। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भस्त्रिका,भ्रामरी,शशकासन,वज्रासन,त्रिकोणप्रणायाम,सूर्य नमस्कार आदि। 




 


bronchitis disease

श्वासनली में सूजन रोग : - श्वासनली में सूजन एक आम बीमारी है ,जो बाहरी कारणों से श्वासनलियों की श्लैष्मिक कला में सूजन के कारण होता है। वायुमंडल में धूलकणों की अधिकता,धुंआ,प्रदूषण,दुर्गन्ध,जहरीली गैसें आदि की वजह से श्वास नली में सूजन आ जाना एक गंभीर समस्या है। गर्म वातावरण से सर्दी के मौसम में आने से श्वास नली में सूजन आने की समस्या आमतौर पर ज्यादा देखने को मिलती है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति साँस लेने एवं छोड़ने में परेशानी अनुभव करने लगता है और छाती से घरघराहट की आवाज आती है। पर्याप्त ऑक्सीजन ग्रहण करने में फेफड़े अपने आपको असमर्थ पाते हैं। वास्तव में श्वासनली में सूजन की सूजन का समय रहते उपचार न कराने से जानलेवा साबित होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। अतः उपचार श्वासनली के सूजन के उपचार की सख्त आवश्यकता होती है और इसे नजरअंदाज करना जीवन को खतरे में डालने जैसा है। 

लक्षण :- हल्का बुखार,ठण्ड लगना,सुखी खांसी,साँस लेने में रूकावट,घर्र घर्र की आवाज आना,बलगम आना,गले में खराश,सीने में दर्द,साँस फूलना,आदि श्वासनली में सूजन रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- अधिक धूम्रपान करना,धूल - मिट्टी की एलर्जी,कोयले की खान में काम करना,चक्की पर कार्य करना,गर्म मौसम से अचानक सर्दी के मौसम में आ जाना,आनुवंशिक कारण आदि श्वासनली में सूजन रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1)अदरक स्वरस एवं शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से श्वासनली में सूजन रोग ठीक हो जाता है। 

(2) लहसुन की तीन - चार कलियों को काटकर दूध में उबालकर सोते समय रात्रि में पीने से श्वासनली में सूजन रोग ठीक हो जाता है। 

(3) एक चम्मच हल्दी दूध में डालकर उबालें और खाली पेट एक चम्मच देशी घी डालकर प्रतिदिन दो - तीन बार पीने से श्वासनली में सूजन रोग दूर हो जाता है। 

(4) यूकोलिप्टस ऑयल की कुछ बूंदें पानी में डालकर उबालकर स्टीम लेने से श्वासनली में सूजन रोग ठीक हो जाता है। 

(5) शहद के नियमित सेवन से भी श्वासनली में सूजन रोग दूर हो जाता है। 

(6) प्याज का रस एक चम्मच एवं शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से श्वासनली में सूजन रोग दूर हो जाता है। 

(7) नीम्बू या संतरे का जूस प्रतिदिन सेवन करने से श्वासनली में सूजन रोग दूर हो जाता है। 

(8) तिल व गुड़ के लड्डू के सेवन से भी श्वासनली में सूजन रोग दूर हो जाता है। 

 


snoring disease

खर्राटे रोग :- खर्राटे लेना एक बहुत ही आम समस्या है , जो सोते समय साँस के साथ तेज आवाज और बाइब्रेशन जैसी ध्वनि आती है।खर्राटे लेना सोते समय साँस में रुकावट आने के कारण होता है।गले के पिछले भाग के संकरा हो जाने के कारण ऑक्सीजन लेते समय आसपास के टिशू बाइब्रेट होते हैं , नतीजन साँस के साथ आवाज आने लगती है। यह एक अत्यंत विषम स्थिति साथ सोने वालों के लिए होती है।इसे ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया भी कहा जाता है।वास्तव में खर्राटे लेने को लोग नजरअंदाज करते हैं ;किन्तु इसे नजरअंदाज करना गंभीर बीमारी को आमंत्रण दे सकता है।विशेष कर हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाने की संभावना होती है।कभी - कभी तो साँस लेने में रूकावट हो आती है और जानलेवा साबित हो जाती है।इसलिये खर्राटे लेने पर उपचार कराने की आवश्यकता है।

लक्षण :- साँस लेने में परेशानी , नाक का बंद हो जाना , साँस लेते समय घर्र - घर्र की आवाज , पूरा दिन सुस्त एवं आलस्य पूर्ण होना , दिन में नींद आना , थकान महसूस करना आदि खर्राटे रोग के प्रमुख कारण हैं।

कारण :- मोटापा , वजन बढ़ना , साँस लेने वाली नली संकरी एवं कमजोर होना , थायराइड, टांसिल बढ़ना ,जीभ मोटी होना ,नाक की हड्डी का टेढ़ा होना आदि खर्राटे रोग के प्रमुख कारण हैं।

उपचार :- (1 ) एक गिलास जल में एक -  बूंदें पुदीने की तेल डाल कर प्रतिदिन सोने से पहले गरारे करने से खर्राटे लेना दूर हो जाता है।

(2 ) जैतून तेल और शहद समान भाग लेकर मिला लें और प्रतिदिन रात को सोने से पहले सेवन करने से खर्राटे लेना दूर हो जाता है।

(3 ) टी ट्री तेल दो -तीन चम्मच एक कटोरे गर्म जल में डालकर सर को तौलिये से ढँक कर गहरी साँस लेने से नाक के अंदर जमा हुआ पदार्थ निकल जाने से खर्राटे में बहुत आराम होता है।

(4 ) गुनगुना घी की कुछ बूंदें नाक में प्रतिदिन रात को सोने से पहले और सुबह उठने के तुरंत बाद लेने से खर्राटे लेना दूर हो जाता है।

(5 ) एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर प्रतिदिन रात में सोने से पहले सेवन करने से खर्राटे लेने में बहुत आराम मिलता है।

(6 ) एक गिलास पानी में एक या आधा चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर प्रतिदिन रात में सोने से आधा घंटा पहले सेवन करने से खर्राटे लेना दूर हो जाता है।

(7 ) जैतून के तेल की एक या दो घूंट प्रतिदिन सेवन करने से खर्राटे की समस्या समाप्त हो जाती है।

(8 ) अडूसा के पंचांग की 10 ग्राम की मात्रा 400 ग्राम जल में उबालें और जब एक चौथाई शेष रहे तब छानकर पीने से खर्राटे में बहुत आराम मिलता है।

(9 ) अडूसा की पत्तियों का रस निकाल कर नाक में दो - तीन बूंदें डालने से खर्राटे लेना दूर हो जाता है।


corona virus infection disease

 कोरोना वायरस संक्रमण रोग :- कोरोना वायरस संक्रमण रोग आज सम्पूर्ण विश्व में एक महामारी के रूप में अपना पांव पसार चुकी हैं।यह महामारी चीन के वुहान शहर से उत्पन्न होकर आज पूरे विश्व को अपने आगोश में ले चुकी है और इस बीमारी का कहर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।इस वायरस को वुहान कोरोना वायरस के नाम से भी जाना जाता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने इस वायरस को नोबेल COVID - 19 नाम दिया है। कोरोना वायरस का आकार मुकुट की तरह और उस पर उभरे हुए कांटे की जैसी संरचना की तरह दिखाई देने के कारण इसका नामकरण हुआ है।यह वायरस कई प्रकार के वायरसों का एक समूह है,जो खास कर जीवित या मृत पशुओं,पक्षियों, स्तनधारियों,समुद्री जीवों आदि के बेचने और खरीदने साथ ही भक्षण से मानव में आया और वहीं से पूरे विश्व में फ़ैल गया है।यह वायरस चमगादड़ में पाया जाता है ।यह वायरस चमगादड़ से पेंगोलिन में आया और पेंगोलिन से मानव में आया।तत्पश्चात संक्रमित मनुष्य में और फिर संक्रमित मनुष्य से उसके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति इससे संक्रमित होकर इस कड़ी को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहा है।कोरोना वायरस एक बड़े गोलाकार कणों के रूप में लगभग 120 नैनोमीटर के आकार में एक झिल्ली जो चर्बी और प्रोटीन युक्त आवरण की संरचना से बना होता है,जो इसका सुरक्षा कवच का काम भी करता है।।इस वायरस में एकल RNA से युक्त जीनोम होता है ,जिसका आकार 27 - 34 किलो बेस के आसपास पाया जाता है।बड़े विश्वास के साथ कहा जा रहा है कि इस वायरस का जीनोम बिलकुल चमगादड़ में पाए जाने वाले जीनोम से मिलता - जुलता ही पाया गया है। इसी कारण कोरोना वायरस का उद्गम चमगादड़ से माना जाना ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है।  यह वायरस आज अपना तांडव इस कदर बरपा रहा है कि अमरीका,स्पेन,इटली,फ़्रांस जैसी महाशक्तिशाली देश भी इस बीमारी के सामने बेवश नजर आ रहा है।आज तक इस कोरोना वायरस महामारी ने लगभग 18 लाख लोगों  को संक्रमित कर दिया है और लगभग एक लाख से अधिक लोग काल कवलित को गए हैं और ऐसा लग रहा है कि इस महामारी से मरने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन और भी अधिक होने की सम्भावना है।

लक्षण :- सर्दी,जुकाम,सूखी खांसी और कुछ देर तक लगातार खांसी,तेज बुखार,नाक बहना,साँस लेने में दिक्कत,गले में खराश,गले में दर्द,सिरदर्द,डायरिया,खाने में स्वाद का आभाव,गंध को महसूस करने में भी परेशानी,संक्रमित होने के लक्षणों में 5 से 14  दिनों का समय,फेफड़ों में गंभीर संक्रमण, ठंड का अनुभव करना,मांसपेशियों में दर्द,थकान,शरीर के अंगों का काम करना बंद कर देना,शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति का ह्रास आदि कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- चमगादड़,सांप,पशुओं,पक्षियों का भक्षण करना,समुद्री जीवों का भक्षण,शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति का काम होना,किसी क्रोनिक बीमारियों से ग्रसित होना,चमगादड़ से पेंगोलिन में संक्रमण का आना,पेंगोलिन से संक्रमण मनुष्य में आना,गंदगी युक्त परिवेश में रहना आदि कोरोना वायरस के संक्रमण के मुख्य लक्षण हैं।

सावधानियां :- (1)सर्दी जुकाम होने पर खांसते और छींकते समय टिशू पेपर का प्रयोग करना और उस पेपर को डस्टबिन में डाल देना ।

                   (2) अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोना और सेनिटाइजर 60 प्रतिशत से अधिक अल्कोहल वाला प्रयोग करना ।

                   (3) नाक और मुँह पर मास्क से ढँकना।

                   (4) संक्रमित लोगों से दूरी बनाकर रहना।

                   (5) संक्रमित लोगों द्वारा इश्तेमाल की गई वस्तुओं से परहेज रखना।

                   (6) घर को स्वच्छ रखना एवं फिनायल और ब्लीचिंग पाउडर से सफाई करना।

                   (7) घर से बाहर लाये गए चीजों को संक्रमित समझ कर अच्छी तरह से धोना।

                   (8) नॉनवेज खासकर समुद्री भोज्य पदार्थों को भक्षण करने से बचना।

                   (9) नाक,आँखों और मुँह को बार - बार छूने से बचना।

                   (10) सक्रमित लोगों को अलग - थलग रखना।

उपचार :- (1) समुद्री फ़ूड खाने से परहेज करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।

(2) साफ़ - सफाई युक्त परिवेश में रहने एवं पानी से नहीं साबुन या हैंडवॉश करके भोजन करने से भी कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।

(3) यात्रा के दौरान नाक एवं मुँह को ढंककर रखने से भी कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।  

(4) अनार की सुखी या ताज़ी पत्तियां,तुलसी की पत्तियां एवं काली मिर्च को पानी में डालकर उबालें और छानकर पीने से कोरोना वायरस की 

      संक्रमण से बचाव हो जाता है।

(5) अनार की कलियों को सुखाकर चूर्ण बनालें और एक चम्मच चार कप पानी में डालकर उबालें ,जब एक कप शेष रह जाये तो छानकर पीने से कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है।

( 6 ) गिलोय की डंडी एक फुट की लम्बाई का,हल्दी पाउडर घर में पीसी हुई एक चम्मच या कच्ची हल्दी पांच ग्राम,दस से पंद्रह पत्ती तुलसी,अदरक पांच से दस ग्राम,काली मिर्च तीन चार सबको दो गिलास पानी में डालकर धीमी आंच में पकाएं और जब एक चौथाई रह जाय तो छानकर सुबह शाम पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति इतनी प्रबल हो जाएगी कि कोरोना ही नहीं अन्य भी कोई बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी।


lung cancer

फेफड़ों का कैंसर रोग :- फेफड़ों का कैंसर एक अत्यंत गंभीर रोग है,जो फेफड़ों में होता है और यह लिम्फ नोड्स या शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है।इस रोग में फेफड़ों के ऊतकों में अनियंत्रित वृद्धि होने लगती है।अधिकतर मामलों में यह फेफड़ों के वायु मार्गों में शुरू होता है और उसमें सूजन,साँस लेने में परेशानी,खांसी के साथ वल्गाम में खून आना आदि प्रमुख लक्षण हैं।फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान एवं पर्यावरण जनित प्रदूषण है।वैश्विक परिदृश्य में सभी कैंसर का 19 फीसदी पर्यावरण को जिम्मेदार माना गया है।व्यावसायिक स्थल पर कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ के संपर्क में आने से भी होता है।

लक्षण :- खांसी रक्तयुक्त,सीने में दर्द,साँस लेने में घरघराहट की आवाज,वजन घटना,थकान,भूख न लगना,आवाज कर्कश होना,निगलने में परेशानी आदि फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- धूम्रपान,अत्यधिक शराब का सेवन,प्रदूषित वायु,आनुवांशिक कारण,अप्रत्यक्ष धूम्रपान,एस्बेस्टस,रेडान गैस,तम्बाकू का सेवन,अपूर्ण दहन,रबर उत्पादित धूल आदि फेफड़ों के कैंसर के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) तालाब की मछलियाँ जैसे-रेवा,चचेड़ा,मांगुर एवं समुद्र की प्रवण आदि मछलियों का सेवन करने से 

                   फेफड़ों का कैंसर रोग का नाह हो जाता है।

(2) नोनी जूस के सेवन से भी फेफड़ों का कैंसर ठीक हो जाता है।

(3) ग्रीन टी के नियमित शहद, इलायची और नीम्बू डालकर सेवन करने से फेफड़ों का कैंसर दूर हो जाता है।

(4) रेस्वेराट्रोल रेड वाइन प्रतिदिन रात में भोजन के साथ दो-तीन औंस पीने से फेफड़ों का कैंसर दूर हो जाता है।

(5) हल्दी,दारू हल्दी,अम्बा हल्दी समान भाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम एक चम्मच 

     ताजे जल के साथ सेवन करने से फेफड़ों का कैंसर ठीक हो जाता है।

(6) समुद्री सिवार ( seaweed )के सेवन से फेफड़ों का कैंसर रोग दूर हो जाता है।

(7) लहसुन की दो -तीन कलियाँ प्रतिदिन खाने से भी फेफड़ों का कैंसर रोग का नाश हो जाता है।


cold and cough disease

सर्दी जुकाम रोग :-सर्दी जुकाम श्वसन तंत्र का एक आम विकार है,जो नासिका को प्रभावित करता है।यह मनुष्यों में बहुत आसानी से फैलने वाला एक संक्रामक रोग है,जो राइनोवायरस के कारण होता है।वैसे तो कुल मिलाकर दो सौ से अधिक वायरस जुकाम से सम्बंधित माने गए है;किन्तु राइनोवायरस सामान्य जुकाम के कारक हैं,जो आरएनए युक्त वायरस होता है और यह पाइकोर्नावाईराइड परिवार से सम्बंधित है।इसके अतिरिक्त कोरोनावायरस,रेस्पिरेटरी सिनसिशल वायरस,इन्फ्लुएंजा और पैरेंफ्लुएंजा अन्य ऐसे वायरस है जिनकी वजह से सर्दी जुकाम हो सकता है।सर्दी- जुकाम का लक्षण आमतौर पर सात दिन से दश दिन के भीतर समाप्त हो जाता है ;किन्तु कुछ लक्षण तीन सफ्ताह तक भी रह सकते है।जब मानव शरीर में इनका संक्रमण होता है तब हमारी प्रतिरक्षा की प्रणाली की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप सर्दी -जुकाम के लक्षण प्रकट होते हैं।फिर संक्रमित व्यक्ति के छींकने,खांसने से वायरस छोटी-छोटी बूंदों के द्वारा,अन्य व्यक्तियों में साँस के द्वारा और मुंह के द्वारा या संक्रमित नासिका के म्यूकस के संपर्क में आने से फैलता है।साथ ही हाथों से नाक एवं मुंह छूकर हाथ मिलाने से,एक दूसरे के पास बैठने से भी सर्दी- जुकाम का संक्रमण होता है।

लक्षण:-नाक का बहना,छींकें आना,नासिका मार्ग में अवरोध होना,गले की खराश,माँसपेशोयों का दर्द,थकन का अनुभव,सर में दर्द,भूख का कम होना,खांसी,कफ,बुखार आना,आँखों में पानी आना,आँखें लाल होना,सूंघने में परेशानी होना आदि सर्दी- जुकाम के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- वायरस का संक्रमण,सर्दी,ठण्ड,और बरसात का मौसम होना,संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहना,प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना,मानव का शरीर संवेदनशील होना आदि सर्दी- जुकाम के मुख्य कारण कारण हैं।

उपचार :- (1) अदरक का रस और शहद 5-5 ग्राम की मात्रा मिलाकर सेवन करने से सर्दी -जुकाम की बीमारी का नाश हो जाता है ।

              (२) काली मिर्च,सोंठ और छोटी पीपल समान भाग लेकर कूट पीस कर उसमें चौगुना गुड़ मिलाकर बड़ी मटर के समान गोली 

                    बनाकर दो -तीन गोलियां गरम जल के साथ सेवन करने से सर्दी- जुकाम नष्ट हो जाता है । 

              (3) हल्दी 5 ग्राम,काली मिर्च 1 ग्राम और थोड़ा सा कला नमक आधा लीटर जल में उबालें और आध रह जाने पर छानकर गरम - 

                   गरम पीने से सर्दी- जुकाम नष्ट हो जाता है ।    

              (4) कद्दू के बीज,पोस्ट दाना,अजवाइन,कत्था और जावित्री समान भाग लेकर अदरक के रस में घोंट कर चने के बराबर गोली 

                   बनाकर एक- दो गोली चूसने से सर्दी -जुकाम की बीमारी नष्ट हो जाती है।

             (5) दही में सफ़ेद बूरा मिलाकर प्रातः काल पीने से जुकाम ठीक हो जाता है ।

             (6) अनार के फल का रस,दूब का रस और गुलाब जल मिलाकर नाक को तर रखने से भी सर्दी -जुकाम का नाश हो जाता है ।

             (7) दालचीनी,तेजपात,इलायची,नागकेशर,बच,बायबिडंग,हींग और कला जीरा समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर उसे कपडे की 

                  पोटली में रख कर सूंघने से सर्दी -जुकाम ठीक हो जाता है ।

 


tuberculosis disease

 

क्षय रोग: - क्षय रोग एक गंभीर एवं बैक्टीरिआ से फैलने वाली बीमारी है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को संक्रमित करती है।यह मैकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होती है।यह रोग मुख्य रूप से श्वसन मार्ग से संक्रमण होने वाला रोग है,जो संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से फैलता है;जैसे छींकने,खांसने या हवा के माध्यम से अपना लार संचारित कर देते हैं और उससे श्वसन के द्वारा स्वस्थ व्यक्ति ग्रसित हो जाता है।यह रोग दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में अधिक फैलने वाला रोग है।

लक्षण:- सूखी खांसी,अजीर्ण,मितली,उल्टी,भूख की कमी,थकान,अधिक प्यास,छाती में दर्द,साँस लेने में कष्ट का अनुभव,जुकाम,स्वर भांग,रात्रि में अधिक पसीना,जीभ मैली,नाड़ी की गति तेज,कुछ दिनों के बाद पीला बलगम निकलना,वजन में कमी,अतिसार एवं शोथ आदि क्षय रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- प्रदूषित वायु का सेवन,अधिक परिश्रम,रक्त की अधिकता या कमी,अत्यधिक मैथुन में लिप्त होना,बार-बार गर्भ धारण,दुर्बलता,जीर्ण ज्वर,वीर्य दोष,खांसी का समुचित इलाज न होना आदि क्षय रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार:- (1) अडूसा के पत्ते का काढ़ा बनाकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से क्षय रोग का नाश हो जाता है।

             (2) मुलहठी चूर्ण,शहद,मिश्री और घृत( घृत असमान )समान भाग लेकर सबको मिलाकर सुबह पेट भर सेवन करें।दोपहर में भूख 

                   लगने पर भोजन करें।इससे क्षय रोग के सभी विकारो से मुक्ति मिल जाती है।

             (3) श्वेत या हरी कोमल दूब का स्वरस में बराबर शहद मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।

             (4) जावित्री,जायफल,लौंग,तेजपात,नागकेशर,दालचीनी,कमलगट्टा की मिंगी और छोटी इलायची के बीज 20 -20 ग्राम,मुनक्का 

                  बीजरहित एक किलोग्राम,मिश्री तीन किलोग्राम और केसर पांच ग्राम लेकर सबको कूट पीस कर चूर्ण बनाकर कांच के बरतन में 

                  रख दें और प्रतिदिन सुबह-शाम 10 ग्राम की मात्रा दूध के साथ सेवन करने से क्षय रोग का समूल नाश हो जाता है।

             (5) गोखरू चूर्ण,पुराण गुड़ एवं देशी खांड 250 ग्राम की मात्रा लेकर एक लीटर जल में घोलकर कांच के पात्र में रखकर चार दिनों 

                  तक धूप में रख दें और छानकर प्रतिदिन सुबह-शाम 20 मिलीलीटर की मात्रा सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।


measles disease

खसरा रोग:- खसरा रोग एक अत्यंत संक्रामक रोग है,जो श्वसन प्रणाली का एक वायरल संक्रमण होता है।यह संक्रमित बलगम और लार के संपर्क के कारण फैलता है।संक्रमित व्यक्ति जब खांसता या छींकता है तो बैक्टीरिया वायु में फ़ैल जाता है और निकट में रहने वाल व्यक्ति आसानी से इस बीमारी से संक्रमित हो जाता है।खसरे का मुख्य कारण रूबिओला  वायरस होता है जो संक्रमित व्यक्ति के द्वारा खांसने,छींकने,अपने मुँह या नाक और आँख छूने,संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने या उसके साथ रहने से अन्य व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है।

लक्षण:- सर्दी-जुकाम होना,नाक बहना,सूखी खांसी,गले में खराश,आँखों में सूजन,चेहरे पर दानेदार चकत्ते,खोपड़ी में दर्द, स्वर बैठ जाना आदि खसरा रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने,संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने,उसके साथ रहने,सोने आदि के कारण खसरा रोग हो जाते हैं।

उपचार:- (1) नीम की निबौली,बहेड़े की गुठली और हल्दी समान भाग लेकर कूट पीस कर जल की सहायता से गोली बनाकर प्रतिदिन सुबह- 

                  शाम एक से तीन गोली सेवन करने से खसरा रोग का नाश हो जाता है।

             (२) हरड़,बहेड़ा,आंवला,गिलोय,नीम की छाल,कत्था की छाल,अडूसा की छाल,अडूसा के पत्ते और पटल के पत्ते का काढ़ा बनाकर 

                  प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से खसरा रोग नष्ट हो जाता है।

             (3) बासी जल में शहद मिलाकर पीने से खसरा के कारण आने वाला बुखार ठीक हो जाता है।

             (4) गर्म जल में सुहागा मिलाकर कुल्ला करने से खसरा के कारण मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।

             (5) अडूसा और मुलहठी का काढ़ा बनाकर पीने से खसरा में खांसी का नाश हो जाता है।


pneumonia disease

फुफ्फुस प्रदाह रोग:-यह एक अत्यंत खतरनाक एवं गंभीर रोग है,जो फेफड़ों के वायु के थैलियों (अल्विओली या कुपिका )के संक्रमण के कारण होता है।इसमें फेफड़े के थैलियों को द्रव या मवाद से भरकर सूजा देता है,जिससे बलगम या मवाद वाली खांसी,ज्वर,साँस लेने में परेशानी,ठण्ड लगना,जैसी दिक्क्तें महसूस होती है।यह बीमारी शिशुओं,युवाओं एवं साठ साल से अधिक आयु के व्यक्तियों को अधिकांशतः होता है।फुफ्फुस प्रदाह रोग या निमोनिया विशेष तौर पर स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों के लिए अधिक हानिप्रद सिद्ध होता है।ज्यादातर किस्म के निमोनिया संक्रामक होने के कारण वायरल एवं वैक्टेरियल निमोनिया छींकने या खांसने से अन्य व्यक्तियों में भी फ़ैल जाता है ;किन्तु कवक निमोनिया इस प्रकार से नहीं फैलता है।

लक्षण:- बलगम वाली खांसी,पसीना युक्त कंपकंपी वाली बुखार,साँस लेने में परेशानी एवं तेजी से साँस के कारण, लेना,बेचैनी,सीन में दर्द,भूख काम लगना,खांसी में खून आना,मितली,उल्टी आदि फुफ्फुस प्रदाह या निमोनिया के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:-विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं के संक्रमण के कारण,वैक्टीरिया या वायरस के कारण,इन्फ्लुएंजा ए,रेस्पिरेटरी सिनसिटियल वायरस के कारण,कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण,एड्स आदि फुफ्फुस प्रदाह के प्रमुख कारण हैं।

उपचार:- (1) बेलगिरी,अजवाइन,भारंगी,पुष्पकरमूल,पीपल,सोंठ और दशमूल सबको मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से फुफ्फुस प्रदाह या 

                 निमोनिया की बीमारी दूर हो जाती है।

             (२) मुलहठी 10 ग्राम,तुलसी के पत्ते 20 ग्राम,बहेड़े की छाल 3 ग्राम,पोहकर की जड़ 3 ग्राम,अडूसा के पत्ते 10 ,और मिश्री एक तोला 

                  सबको कूट पीस कर चूर्ण को आधा लीटर जल में डालकर काढ़ा बनाकर पीने से फुफ्फुस प्रदाह की बीमारी दूर हो जाती है।

             (3) इलायची और लौंग एक पाव पानी में में डालकर काढ़ बना कर पीने से यह बीमारी दूर हो जाती है।

             (4) गिलोय की डंडी,तुलसी के पत्ते,लौंग,छोटी पीपल सबको लेकर काढ़ा बनाकर पीने से फुफ्फुस प्रदाह की बीमारी दूर हो जाती है।

             (5) गाजर,पालक एवं चुकुन्दर का रस पीने से भी फुफ्फुस या निमोनिया की बीमारी दूर हो जाती है।


cough disease

खांसी रोग:- खांसी -जुकाम मानव शरीर की एक रक्षात्मक प्रणाली है,जो वायुमार्ग से बलगम,धूल,धुआं,गैस आदि को दूर कर शरीर को स्वस्थता प्रदान करती है।गले या साँस की नालियों में रुकावट को साफ करने के लिए हवा बाहर निकलने पर अचानक आने वाली तेज खरखराहट जैसी आवाज को ही खांसी कहा जाता है।खांसी,गले और वायु मार्ग को प्रभावित करने वाला आम वायरल संक्रमण है।खांसी को गंभीर बीमारी का संकेत भी मन जाता है।इसे ट्यूसिस के नाम से भी जाना जाता है।

लक्षण:- बुखार,ठण्ड लगना,शरीर में दर्द,गले में खराश,मितली,उल्टी,सिरदर्द,नाक बहना,रात्रि में पसीना आना आदि खांसी के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- धूम्रपान,सर्दी लगना,पसीने में पानी पीना,स्निग्ध चीजें खाने के बाद पानी पीना आदि खांसी के सामान्य लक्षण हैं।

उपचार:- (1) एक चम्मच अदरक के रस में एक चम्मच शहद मिला कर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।

             (2) दालचीनी,बड़ी इलायची,छोटी पीपल,वंशलोचन एवं मिश्री सबको समान भाग लेकर कूट पीस कर चूर्ण बना कर सुबह -शाम सेवन 

                  करने से खांसी नष्ट हो जाती है।

             (3) मुलहठी चूर्ण दो ग्राम की मात्रा प्रतिदिन तीन बार सेवन करने से खांसी का नाश हो जाता है।

             (4) लौंग,जायफल,काली मिर्च,छोटी पीपल,सोंठ और देशी खांड समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर दो ग्राम की मात्रा प्रतिदिन सुबह -शाम 

                  सेवन करने से खांसी जड़ से समाप्त हो जाती है। 

             (5) कटेरी,गिलोय,सोंठ,लौंग,काली मिर्च,एवं छोटी पीपर का काढ़ा बना कर प्रतिदिन सुबह -शाम पीने से खांसी का नाश हो जाता है।


  बच्चों के रोग

  पुरुषों के रोग

  स्त्री रोग

  पाचन तंत्र

  त्वचा के रोग

  श्वसन तंत्र के रोग

  ज्वर या बुखार

  मानसिक रोग

  कान,नाक एवं गला रोग

  सिर के रोग

  तंत्रिका रोग

  मोटापा रोग

  बालों के रोग

  जोड़ एवं हड्डी रोग

  रक्त रोग

  मांसपेशियों का रोग

  संक्रामक रोग

  नसों या वेन्स के रोग

  एलर्जी रोग

  मुँह ,दांत के रोग

  मूत्र तंत्र के रोग

  ह्रदय रोग

  आँखों के रोग

  यौन जनित रोग

  गुर्दा रोग

  आँतों के रोग

  लिवर के रोग