depression disease

डिप्रेशन रोग : - डिप्रेशन रोग एक मानसिक विकार है ,जिसमें मस्तिष्क तक सन्देश सुचारु रूप से नहीं पहुँचता है। वास्तव में डिप्रेशन एक विचित्र स्थिति होती है ,जिसमें मस्तिष्क तक सन्देश ले जाने हेतु जो न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं वह भलीभांति प्रकार से कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इनमें सेरेटोनिन मुख्य रूप से उत्तरदाई होता है। सेरेटोनिन की अल्पता ही डिप्रेशन की स्थिति उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है। सेरेटोनिन की कमी से नींद ठीक से नहीं आने से स्थिति और गंभीर हो जाता है। सेरेटोनिन के आलावा डोपामाइन को भी डिप्रेशन का करक माना गया है। डोपामाइन को ख़ुशी प्रदान करने वाला हार्मोन भी माना गया है। वास्तव में यूँ कहें कि इन सबके आलावा भी कई तरह के हार्मोन्स मानव शरीर में पाए जाते हैं , जो हमारी भावनाओं को नियंत्रण में रखते हैं। जब इनके स्तर में कमी आती है तो मानव चिड़चिड़ा,तनावयुक्त,उदास ,किसी कार्य में मन न लगना,बेचैनी आदि अनुभव करने लगता है। नतीजन उसके स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है और इसे डिप्रेशन की स्थिति मानी गई है। मानसिक अवसाद यदि 15  दिनों से अधिक रहे यानि स्थायी तनाव विद्यमान रहे तो तुरंत उपचार की आवश्यकता है एवं चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। 

लक्षण :- उदासी,किसी कार्य में मन न लगना,गुमसुम रहना,बेचैनी,चिड़चिड़ापन,अनिंद्रा,तनावग्रस्त,कमजोरी,थकान,एकांत में रहना,निराशा,आलस्य आदि डिप्रेशन रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- सेरेटोनिन,डोपामाइन आदि हार्मोन्स की कमी,आनुवांशिक,किसी प्रिय व्यक्ति के न रहने के कारण,एकांतवास,आर्थिक नुक़सान,दृढ  इच्छा शक्ति का अभाव, नकारात्मक सोच आदि डिप्रेशन रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1 ) बच को कूट पीस कर चूर्ण बनाकर घी के साथ चाटने से डिप्रेशन रोग में अत्यंत लाभ मिलता है। 

(2 ) अश्वगंधा चूर्ण के सेवन से भी डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है। 

(3 ) ब्राह्मी एवं शंखपुष्पी के सेवन से भी डिप्रेशन रोग में अत्यंत लाभ मिलता है। 

(4 ) शतावरी के काढ़े एवं पाउडर के सेवन से डिप्रेशन में बहुत लाभ होता है। 

(5 ) यष्टिमधु के पाउडर को घी के साथ सेवन करने से डिप्रेशन में बहुत लाभ मिलता है। 

(6 ) चन्दन के लेप को ललाट पर लगाने से डिप्रेशन में अत्यंत लाभकारी होता है। 

(7 ) अदरक,सोंफ,शतावरी,हरीतकी,एवं ब्राह्मी सबको मिलकर काढ़ा बनाकर सुबह शाम सेवन करने से भी डिप्रेशन में अद्भुत लाभ मिलता है। 

(8 ) इंद्रवारुणी (चित्रफल ),विभीतकी,आमलकी,बूरा,हल्दी,मंजिष्ठा,चन्दन सबको मिलकर घृत के साथ सेवन डिप्रेशन में अत्यंत लाभकारी है। 

(9 ) कमल,मंजिष्ठा,कांचनार,यष्टिमधु,अंगूर सबको मिलाकर काढ़ा बनाकर उसमें स्वादानुसार शक्कर मिलाकर सेवन करने से डिप्रेशन में लाभकारी है। 

योग एवं प्राणायाम : - भ्रामरी,कपालभाति,अनुलोम - विलोम  आदि। 


sleep paralysis disease

निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात रोग : - निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात एक घातक एवं अत्यंत विचित्र बीमारी है जो अक्सर उन लोगों को प्रभावित करता है,जिसे  बहुत अधिक नींद आने या सोते समय श्वसन कार्य बाधित होता है। ऐसी स्थिति आमतौर पर एक या दो मिनट का होता है,जो अत्यंत भयावह होता है। वास्तव में जागते या सोते,बोलने या चलने में अस्थायी अक्षमता का मुख्य कारण नींद पक्षाघात है। इस बीमारी में व्यक्ति सोते समय एवं निंद्रा से निकलते समय कुछ समय के लिए बोलने,चलने,हिलने या यौं कहिये किसी भी तरह की प्रतिक्रिया करने में असमर्थता महसूस करता है। निंद्रा लकवा वास्तव में सोने और जागने के बीच की अवस्था होती है,जिसमें मानसिक तौर पर जगा रहता है किन्तु शारीरिक दृष्टि से कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में होती है। 

लक्षण : - चलने या गति करने में असमर्थता,काल्पनिक वस्तुओं को सुनना,अनुभव करना,देखना या सूंघना,साँस लेने में कठिनाई का अनुभव,असहाय की स्थिति महसूस करना,डर या भयभीत होना,मतिभ्रम,सोते या जागते समय कुछ समय तक शरीर को हिलाने - डुलाने में असमर्थता आदि निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - आनुवंशिक कारण,तनाव एवं चिंता,पीठ के सहारे सोना,नींद का कोई समय न होना,ज्यादा जागते रहना,मौसम में एकाएक आये हुए बदलाव,वयः संधि,शराब का अधिक सेवन आदि निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) रात को सोने से पूर्व हल्का एवं सुपाच्य भोजन करें और औषधीय चाय का सेवन करेने से निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात में बहुत आराम मिलता है। 

(2) रात को सोने से पूर्व फल एवं सब्जियों का सेवन निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात में बहुत फायदा होता है। 

(3) भोजन के स्थान पर दूध पीकर सोने से निंद्रा लकवा में अत्यंत लाभ होता है। 

(4) नींद का समय चक्र निर्धारित करें और उसी के अनुसार सोने से निंद्रा लकवा में बहुत आराम मिलता है। 

(5) नींद पर्याप्त लेने से निंद्रा लकवा में बहुत फायदा होता है। 

(6) पीठ के बल नहीं सोने से कुछ दिनों में नींद पक्षाघात या निंद्रा लकवा में आराम आने लगता है। 

(7) करवट लेकर सोने से भी निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात में बहुत आराम मिलता है। 

(8) सुबह खाली पेट कुछ दिनों तक वीट ग्रास का जूस पीने से निंद्रा लकवा या नींद पक्षाघात ठीक हो जाता है।  

(9) ॐ कार का नियमित जाप करने से भी निंद्रा लकवा में आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। 

(10) दूध में जायफल,हल्दी,अश्वगंधा पाउडर मिलाकर सेवन करने से निंद्रा लकवा दूर हो जाता है। 

(11) शंखपुष्पी,ब्राह्मी एवं बच के सेवन से भी निंद्रा लकवा ठीक हो जाता है। 

(12) रात में हैवी भोजन करने से निंद्रा लकवा के मरीज को बचना चाहिए और हमेशा हल्का भोजन का सेवन करना चाहिए। 

(13) चॉकलेट,कॉफी,अल्कोहल,तम्बाकू,के सेवन से बचना चाहिए। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम-विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,हलासन,ॐ कार का उच्चारण आदि। 


anorexia nervosa disease

क्षुधा अभाव रोग :- क्षुधा अभाव रोग एक गंभीर मानसिक रोग है,जो एक प्रकार का आहार सम्बन्धी विकार है।इस रोग में व्यक्ति अपने आपको स्वस्थ शारीरिक वजन बनाये रखने से इंकार एवं मोटा या स्थूलकाय हो जाने के डर से ग्रसित रहता है।ऐसा पूर्वाग्रहों से ग्रसित अपनी विकृत मानसिकता के कारण होता है।फलस्वरूप व्यक्ति अपने शरीर,भोजन एवं खाने - पीने की आदतों के बारे में सोचने - समझने की क्षमता में परिवर्तन ले आते हैं।क्षुधा अभाव ( एनोरेक्सिया नर्वोज़ा ) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1873 ईस्वी में महारानी विक्टोरिया के निजी चिकित्सकों में से एक सर विलियम गल द्वारा किया गया था,जिसका अर्थ है भोजन करने की इच्छा का अभाव।वास्तव में क्षुधा अभाव रोग एक मनोवैज्ञानिक स्थिति के कारण पीड़ित व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति कुछ ज्यादा ही जागरूक हो जाता है। यह अति जागरूकता के कारण वह अपना हित की जगह अहित करना शुरू कर देता है,जो उस व्यक्ति के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होता है।

लक्षण :- वजन बढ़ जाने के डर से भयभीत रहना,शीघ्रता से नाटकीय रूप से वजन घटना,भोजन पकने के विभिन्न तरीकों में संलग्न रहना,गले में उँगली डालकर उल्टी करना,दुबला एवं कम वजन होने के बावजूद कुछ न खाना,मोटे हो जाने के डर से अति जागरूकता, लगातार व्यायाम करना,दूसरों के दुर्बल बताने पर भी स्थूलकाय अपने आपको समझना,मानसिक अवसाद,सुस्त रहना,ढीले वस्त्र पहनना मोटा दिखने के लिए,भूख घटाने वाली औषधियों का सेवन करना,चेहरे पर भ्रूण रोम का उगना,दन्त खोखला होकर गिर जाना,जोड़ों में सूजन,कुपोषणजन्य समस्याएं आदि क्षुधा अभाव रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- नाड़ी के अंतःस्रावी तंत्र में परिवर्तन होने,उपवास के कारण वजन की हानि होने के कारण,परजीवी संक्रमण,दवाओं का कुप्रभाव,शल्य क्रिया के कारण वजन हानि के कारण,प्रसूति समस्याएं,रक्ताल्पता,मधुमेह,आनुवंशिक कारण,मस्तिष्कीय विकार,जीन सम्बन्धी विकार,लेप्टिन एवं घ्रेलिन हार्मोन्स के कारण,जस्ते की कमी,मस्तिष्क में रक्त का कम प्रवाह होना,पोषण की कमी,पर्यावरणीय कारण,स्वपरायणता आदि क्षुधा अभाव के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) खजूर की चटनी बनाकर और उसमें नीम्बू का रस मिलाकर प्रतिदिन खाली पेट खाने से क्षुधा अभाव रोग दूर हो जाता है।

(2) इलायची के दाने को एक गिलास पानी में उबालकर रखें और ठंडा कर प्रतिदिन पीने से क्षुधा अभाव रोग ठीक हो जाता है।

(3) एक कप टमाटर का जूस,एक कप गाजर का रस और एक चम्मच अदरक का रस मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से क्षुधा अभाव रोग दूर हो जाता है।

(4) इमली को पानी में मसलकर छान लें और उसमें एक चुटकी सफ़ेद नमक एवं एक चुटकी काली मिर्च का पाउडर डालकर प्रतिदिन पीने से क्षुधा अभाव रोग दूर हो जाता है।

(5) पुदीने की चटनी एवं शहद का मिश्रण क्षुधा अभाव रोग का नाश कर देता है।

(6) एक गिलास जल में थोड़ा सा काला नमक, सेंधा नमक और एक चम्मच जीरा पिसा हुआ मिलाकर पीने से क्षुधा अभाव रोग दूर हो जाता है। 


depression disease

अवसाद या डिप्रेशन रोग :- अवसाद या डिप्रेशन एक मनोरोग है,जो मनुष्य के भावनाओं,विचारों,कार्यकलापों एवं व्यवहारों से दृष्टिगोचर होता है।यह मानसिक विकार वास्तव में एक गंभीर मनोवैज्ञानिक स्थिति है ,जिसमें मनुष्य अपने - आपको असहाय,लाचार एवं अकेला महसूस करने लगता है।किसी के प्रति अत्यधिक लगाव ,आकर्षण, कोई हादसा या किसी प्रियजन से बिछुड़ना आदि इसका सबसे प्रमुख कारण  माना जाता है।सही  मायने में मनुष्य के दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स के अभाव या कमी के कारण होता है,जो रसायन दिमाग एवं शरीर के विभिन्न भागों में तारतम्य स्थापित करते हैं।इनके अभाव की स्थिति में शरीर की संचार व्यवस्था बाधित होती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण देखने को मिलता है।मन में भय,चिंता,भ्रम की स्थिति में मन व्याकुल हो जाता है और कभी - कभी तो इतना भ्रमित हो जाता है कि उसकी जीने की इच्छा समाप्त हो जाती है और आत्महत्या जैसे कदम उठा लेता है।आजकल मंदी एवं कॉम्पिटिशन के दौर में व्यापारीगण एवं परीक्षाओं एवं प्रतियोगिता में असफल होने पर विद्यार्थीगण अवसाद से ज्यादा पीड़ित देखे जा सकते हैं।

लक्षण :- किसी काम में मन न लगना,रूचि का अभाव,स्वयं को लाचार एवं निराश महसूस करना,स्वभाव उग्र हो जाना,नींद न आना,भय,भ्रम,चिंता युक्त होना,गुमसुम रहना,निर्णय न ले पाना,आलस्य से भरा हुआ लगना,चिड़चिड़ापन,तनावग्रस्त,अशांत मन वाला,कभी - कभी गाली- गलौज करना,अत्यधिक रोना आदि अवसाद या डिप्रेशन के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- जैव रसायनों में बदलाव,आनुवांशिक कारण,हार्मोनल,मौसम,तनाव,किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होना,धूम्रपान,नशा,अप्रिय स्थितियों में अधिक संजय तक रहना,अनिंद्रा,विफल हो जाना या विफल होने का भय,कुपोषण,गंभीर आघात,प्रियजन से बिछुड़ना,नकारात्मक चिंतन,शारीरिक रुप से कमी आदि अवसाद या डिप्रेशन के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) बच,शंखपुष्पी एवं शतावर को समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(2) अश्वगंधा पाउडर का सेवन देशी घी के साथ प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(3) बच,मुलेठी,शतावरी,ब्राह्मी,अश्वगंधा समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(4) शिलाजीत रसायन कल्प के सेवन से भी अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(5) ब्राह्मी चूर्ण को देशी घी के साथ सेवन करने से अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(6) चन्दन का लेप सिर पर करने से भी अवसाद या डिप्रेशन रोग दूर हो जाता है।

(7) अदरक,सोंफ,शतावरी,हरीतकी,ब्राह्मी के चूर्ण को जल में डालकर उबालें और छानकर सेवन करने से अवसाद रोग दूर हो जाता है।

(8) कल्याणघृत को गर्म दूध के साथ सेवन करने से अवसाद रोग दूर हो जाता है।

(9) ब्राह्मी आरक के सेवन से भी अवसाद रोग दूर हो जाता है।

(10) सारस्वतारिष्ट के सेवन से अवसाद रोग दूर हो जाता है।

(11) चंदनासव के से सेवन से अवसाद रोग दूर हो जाता है।

(12) इंद्र वारुणी,चित्रफल,बिभीतकी,आमलकी,तगार,हरिद्रा,मंजिष्ठा,चन्दन सबको जल में उबालें और छानकर पीने से अवसाद रोग दूर हो जाता है।


mental disorder disease

मनोविकार रोग :- मनोविकार मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से होने वाला एक अत्यंत गंभीर बीमारी है।मनोविकार किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह अवस्था है,जिसमें वह किसी स्वस्थ मानव से तुलना करने पर सामान्य नहीं कहा जाता है।सामान्य तौर पर मनोविज्ञान में मानवों के लिए असामान्य एवं अनुचित व्यवहारों को ही मनोविकार कहा जाता है।वास्तव में मनोविकार मनोभाव,सोच एवं व्यवहार की स्थितियों की विस्तृत शृखंला ही कहा जाता है।

लक्षण :- तनाव,सहनशीलता का आभाव,कमजोर व्यक्तित्त्व,बेचैन रहना,मन में उदासी,डिप्रेशन में चला जाना,चुपचाप रहना,अधिक बोलना,अत्यधिक गुस्सा करना,आदि मनोविकार के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- आनुवांशिक कारण,नशीली चीजों का अत्यधिक सेवन,मनोवैज्ञानिक कारण जैसे - आपसी संबंधों में तनाव,किसी प्रिय की मृत्यु,सम्मान को ठेस,आर्थिक हानि,विवाह,तलाक,परीक्षा में फेल होना,प्यार में धोखा आदि,सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण जैसे - अकेलापन,प्राकृतिक दुर्घटनाएं जैसे -लूट,आतंक,भूकंप,अकाल,बाढ़,महंगाई,बेरोजगारी आदि,शारीरिक कारण जैसेमोटापा,किशोरावस्था,युवावस्था,वृद्धावस्था,गर्भधारण आदि मनोविकार के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) प्याज एवं प्याज के रस के नियमित सेवन से मनोविकार रोग दूर हो जाता है।

(2) हरी पत्तेदार सब्जियों,अंकुरित अनाज,आदि के सेवन से भी मनोविकार रोग दूर हो जाता है।

(3) आंवले का मुरब्बा प्रतिदिन एक नग खाने से मनोविकार रोग ठीक हो जाता है।

(4) नियमित रूप से शाम को गुलकंद एक चम्मच खाकर ऊपर से गुनगुना दूध पीने से मनोविकार रोग ठीक हो जाता है।

(5) लहसुन की चार - पांच कलियों को दूध में पकाकर नियमित रूप सेवन करने से मनोविकार रोग दूर हो जाता है।

(6) सेब,अंगूर,अंजीर,खजूर एवं संतरा के नियमित सेवन से मनोविकार रोग दूर हो जाता है।

(7) ब्राह्मी स्वरस के सेवन से भी मनोविकार रस ठीक हो जाता है।

(8) 20 ग्राम अखरोट,10 ग्राम किशमिश या अंजीर के साथ नियमित सेवन से भी मनोविकार रोग ठीक हो जाता है।

(9) शंखपुष्पी स्वरस के सेवन से भी मनोविकार रोग ठीक हो जाता है।

(10) तुलसी के 10 - 15 पत्ते नियमित सेवन करने से भी मनोविकार रोग ठीक हो जाता है।


hysteria disease

हिस्टीरिया :-यह एक दिमागी बीमारी है,जो ज्यादातर स्त्रियों को होने वाला रोग है। यह रोग स्त्री के गर्भाशय में खराबी होने, पति से स्वाभाविक प्रेम न होने से अत्यंत वियोग से अथवा बिधवा होने के कारण,दुःख या शोक से युवती स्त्रियों को एक प्रकार का अपस्मार होता है,जिसे योषापस्मार अथवा हिस्टीरिया कहते हैं।यह स्त्रियों का मानसिक रोग भी कहा जाता है,जो मस्तिष्क की मज्जा तंतुओं में खराबी के कारण ही होता है। 

लक्षण :-हिस्टीरिया में स्त्रियों को मिर्गी के समान ही बेहोशी के दौरे आते हैं देखना,सुनना बंद हो जाता है,मुँह से आवाज निकलनी बंद हो जाती है,कुचेष्टाएँ तथा अजीब हरकत करने लगती हैं,हाथ पैर कांपने लगता है,बेहोशी समाप्त होने पर पेशाब आता है,प्रसङ्गेक्षा अत्यंत बढ़ी हुई होती है,गला घुटता हुआ महसूस होता है,जम्भाई लेती है,जोर -जोर से बिना कारण हँसने लगना,या रोने लगना आदि इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं।

कारण :- अश्लील फिल्म देखना या साहित्य को पढ़ना,गलत खान - पान, फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक भक्षण,मन में हमेशा गलत विचारों का आना,सेक्स के बारे में हमेशा प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन,मूत्र मार्ग में संक्रमण,अत्यधिक मैथुन क्रिया,मस्तिष्क के न्यूरो ट्रांसमीटर का असामान्य स्तर,घबराहट,तनाव, सेक्स की अधूरी इच्छाएं,यौन शोषण की समस्याएं,आत्म विश्वास का अभाव,मस्तिष्क की तंतुओं में विकार हिस्टीरिया के प्रमुख कारण हैं।   

उपचार :-(1 )जटामांसी की जड़ का चूर्ण 4 चम्मच, बच का चूर्ण 4 चम्मच और काला नमक 1 चम्मच सबको मिलाकर आधा चम्मच शहद के साथ प्रतिदिन सुबह -दोपहर -शाम तीन बार एक सप्ताह तक लेने से हिस्टीरिया की बीमारी का नाश हो जाता है।

 (2 )मुलेठी 8 तोला लेकर पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर एक कलईदार कढ़ाई में लुगदी तथा गाय का घी एक सेर और आंवले का रस 16 सेर डालकर आग पर चढ़ा कर मंदी आंच से घी सिद्ध करें,केवल घी बांकी रहने पर घी छान कर रख लें।इस घी का सेवन करने से हिस्टीरिया की बीमारी जड़ से नष्ट हो जाती है।


madness disease

पागलपन :-आज भौतिकवादी युग में लोगों का जीवन भाग -दौड़ से परिपूर्ण है।परिणामस्वरूप लोगों में अवसाद,उलझन,घबराहट,शरीर के कई भागों में दर्द आदि होना बीमारियां हैं;जिन्हें सामान्य मानसिक विकृति(विकार)कहते हैं।इस तरह की बीमारी जिसका कोई शारीरिक कारण नहीं होता है ;किन्तु सामान्य तौर पर इन्हें शारीरिक विकार बोलते हैं।ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में लक्षण एक ही तरह के होते हैं ;जैसे अवसाद की बीमारी जो ज्यादा प्रचलित है।अवसाद में नींद नहीं आती है,भूख नहीं लगती है,शरीर का वजन कम हो जाता है,मन दुखी रहता है,नकारात्मक बातें मन में आतीं हैं,किसी से मिलने का मन नहीं करता है,मैं कोई कार्य नहीं कर सकता हूँ इस तरह के विचार मन में आते हैं।यही विचार जब आगे बढ़ जाती है तो मन में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं,कुछ लोगों को अँधेरे में डर लगता हैं,कुछ लोगों को लिफ्ट में जाने से डर लगता हैं। ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए ,उसका इलाज करना चाहिए ;परन्तु हमारे देश भारत में बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हैं ,जिसमें लोग मानसिक रोगों को छिपाने का प्रयत्न करते हैं,मानसिक चिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं। इसका नतीजा बहुत ही भयानक और भयंकर होता हैं और बीमारी पागलपन का रूप धारण कर चुकी होती हैं। 

उपचार :-(1 )कपास के दो सेर फूलों को पानी में या गुलाब जल में औटाओ(गरम करना),चौथाई शेष रहने पर छान 

                  कर उसमें आधा सेर गुड़ मिलाकर शरबत बना लें। इसे प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से ह्रदय 

                   बलवान हो जाता है,चित्त को प्रसन्न कटरा है और पागलपन दूर हो जाता है। 



 


sleep walking disease

निद्राचारित रोग :-यह एक विचित्र प्रकार की भयानक एवं गंभीर मनोवैज्ञानिक रोग है,जिसमें रोगी नींद में बिस्तर पर सोते हुए जगकर चलने लगता है। कभी सोते हुए जगकर कार्य कर देता है और उसे पता ही नहीं चलता है कि वो रात को क्या कर रहा था।यह एक स्नायुविक गड़बड़ी के कारण होता है।मनोबैज्ञानिक के अनुसार यह 5 -12 वर्ष उम्र के बच्चों में पाई जाती है। नींद में चलना मस्तिष्क के तंत्रिका -तंत्र के विकार के कारण होता है ।

उपचार:-जटामांसी चूर्ण मात्रा एक ग्राम सुबह -शाम सेवन करने से नींद में चलने कि बीमारी का नाश हो जाता है।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि है।


alzheimer disease

अल्जाइमर या विस्मृति रोग:-अल्जाइमर वृद्धावस्था का एक असाध्य किस्म का रोग है।इस बीमारी की शुरुआत मस्तिष्क के स्मरण -शक्ति को नियंत्रित वाले भाग में होती है और जब यह मस्तिष्क के दूसरे भागों फ़ैल जाता है तब व्यक्ति के हाव -भावों एवं व्यव्हार की क्षमता को प्रभावित करने लगता है ।इसे भूलने का या विस्मृति रोग भी कहते हैं ।इस रोग का सही कारण ज्ञात नहीं है ,किन्तु इस बीमारी के बारें में सर्वप्रथम डॉक्टर ओलोरा अल्जीमीर ने बताया था ;इसलिए उसी के नाम पर इस बीमारी का नाम अल्जीमर रखा गया है।

लक्षण:-इस बीमारी में अपना नाम अथवा संख्या का भूलना,घबड़ाहट,उलझन,अस्त -व्यस्त होना,कपड़े उल्टे पहनना,मूत्र -शौच आदि ध्यान न रहना,भोजन,सोना,आदि का ध्यान न रहना,खुद ही चीजों को रखकर भूल जाना,खुद से बातें करना,अपने ही घर में खो जाना,छोटी -छोटी बातों पर चौंक जाना,कार्य के न करने पर भी उसे लगना कि कार्य मैंने किया है आदि इस बीमारी प्रमुख लक्षण हैं। 

उपचार:-(1 )  शंखपुष्पी के प्रतिदिन सेवन से इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है।

            (2 )ब्राह्मी के सेवन करने इस बीमारी का नाश हो जाता है।

            (3 )पीपल की अंतर छाल के चूर्ण का प्रतिदिन प्रातः -सायं जल के साथ सेवन करने से इस बीमारी से मुक्ति मिलती है। 

            (4 )अश्वगंधा चूर्ण का प्रतिदिन प्रातः -सायं दूध के साथ सेवन करने से इस बीमारी से मुक्ति मिल जाती है।

            (5 )हल्दी चूर्ण के प्रतिदिन प्रातः -सायं गुनगुने दूध या जल के साथ सेवन करने से इस बीमारी का नाश हो जाता है। 

            (6 )बच चूर्ण के प्रतिदिन घी के साथ सेवन करने से इस बीमारी को दूर किया जा सकता है। 

                                    उपर्युक्त सारी औषधि अचूक एवं अनुभूत है।


autism disease

आटिज्म,स्वलीनता ,आत्म विमोह रोग :-आटिज्म एक मस्तिष्कीय विकार की बीमारी है ,जो तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ियों के कारण होती है।इसका लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था के पहले तीन वर्षों में ही दृष्टिगोचर होने लगता है।इसमें व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और सम्प्रेषण दक्षता वाधित हो जाती है।जिन बच्चों में यह बीमारी होती है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है।वे देरी बोलते हैं ,वह अपने आप में खोये रहते हैं,एक बात को बार -बार दोहराते हैं ,स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं ;जैसे -सिर पटकना आदि,समन्वय की भी समस्याएं होतीं हैं, कुछ भी सीखने में और सामाजिक कार्य -कुशलता में पीछे रहते हैं और ऐसा जीवनपर्यन्त बना रहता है।

कारण:-(1 )आनुवंशिक ।(2 )पर्यावरणीय कारक (3 ) समय से पहले जन्म लेना।(4 )ज्यादा उम्र के माता-पिता से जन्म लेना।(5 )गर्भावस्था के दौरान माता का धूम्रपान या मद्यपान करना।(6 )रासायनिक असंतुलन के कारण आदि इस बीमारी के कारण हैं ।

उपचार:-(1 )आटिज्म की बीमारी में रोगी को ऊंटनी के दूध का सेवन करने से बहुत राहत मिलती हैं।

            (2 )शतावर के चूर्ण के सेवन से भी इस बीमारी में बहुत फायदा होता हैं।

            (3 )अश्वगंधा चूर्ण का सेवन प्रतिदिन सुबह शाम गुनगुने दूध के साथ करने से आशातीत फायदा होता हैं।

                          इसके साथ ही बच्चों का आक्युपेशनल थेरेपिस्ट ,स्पीच थेरेपी स्पेशल एडुकेटर के द्वारा ट्रेनिंग देने से रोगी में`सुधार होता हैं।

 


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