amoebic dysentery disease
रक्तातिसार रोग :- रक्तातिसार अतिसार का ही एक रूप है,किन्तु इसमें मल के साथ रक्त आता है,इसलिए इसे रक्तातिसार कहा जाता है।यह बहुत ही कष्ट दायक एवं भयंकर रोग है।इस रोग में व्यक्ति बहुत दुर्बल हो जाता है।चलने-फिरने की शक्ति तक नहीं रहती है।बार-बार दस्त जाने पर मरोड़ के साथ मल कम रक्त एवं आँव की मात्रा अधिक होती है।
लक्षण :- मल में आँव के साथ रक्त का आना,बुखार का आना,जीभ का लाल होना,नाड़ी की गति क्षीण होना,आँतों में प्रदाह,शरीर में पानी की कमी होना,बार-बार प्यास लगना,शरीर में जलन होना,बेहोशी,गुदापाक आदि रक्तातिसार के प्रमुख लक्षण हैं।
कारण :- कब्ज,अधिक मीठा खाना,आंत की सूजन,गर्म मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन,तली भुनी हुई चीजों का अधिक प्रयोग,आँतों में गंभीर संक्रमण,फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक प्रयोग आदि रक्तातिसार रोग के मुख्य कारण हैं।
उपचार :- (1) चिरायता चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह शाम सेवन करने से रक्तातिसार दूर हो जाता है।
(2) छोटी हरड़,सोंफ,सोंठ,बेलगिरी और पोस्तदाना को कूट पीसकर कपड़छान कर घी में भून लें और
उसमें 250 ग्राम मिश्री मिलाकर प्रतिदिन दो -दो ग्राम की मात्रा ताजे जल के साथ सेवन करने से
रक्तातिसार दूर हो जाता है।
(3) सोंठ और गिलोय समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पिने से रक्तातिसार ठीक हो
जाता है।
(4) इन्द्र जौ और नगर मोथा के साथ काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से
रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
(5) छोटी हरड़ भुनी 2 ग्राम,जीरा सफ़ेद भुनी हुई 2 ग्राम और सोंफ 2 ग्राम तीन तीन घंटे पर देने से
रक्तातिसार का नाश हो जाता है।
(6) हरीतकी चूर्ण में 2 - 3 ग्राम गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से रक्तातिसार ठीक हो जाता है।
(7) पत्थर चट्टा के पत्तों का रस 3 से 5 मिलीलीटर को 10 ग्राम घी एवं जीरे के साथ सेवन करने से
रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
(8) चावल के धोवन में 20 ग्राम चन्दन घिसकर मिश्री एवं शहद मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार नष्ट
हो जाता है।
(9) कदम के पेड़ की छाल के 10 -20 मिलीलीटर रस में जीरा और मिश्री का चूर्ण मिलाकर सेवन करने
से रक्तातिसार दूर हो जाता है।
(10) गूलर के दूध को बताशे में डालकर खाने से रक्तातिसार दूर हो जाता है।