monkey pox disease

मंकी पॉक्स रोग : - मंकी पॉक्स एक अत्यंत गंभीर एवं कष्टप्रद रोग है,जो मंकीपॉक्स नामक विषाणु से फैलता है। जानवरों की प्रजातियां ही मंकीपॉक्स वायरस के लिए उत्तरदाई है। इस वायरस का ट्रांसमिशन जंगली जानवरों से इंसानों में होता है और फिर इंसानों से इंसान में।वास्तव में यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में आया।वास्तव में जानवरों की प्रजातियाँ ही मंकी पॉक्स वायरस के लिए उत्तरदाई है। इस वायरस का पता सर्वप्रथम 1970 में कांगो में एक नौ वर्षीय बालक में पाया गया था, तत्पश्चात कांगो के अन्य स्थानों तथा मध्य एवं पश्चिमी अफ़्रीकी क्षेत्रों में फैला। आज वर्तमान में विश्व के लगभग भारत सहित 75 देशों में अपना पाँव पसार चुकी है। आगे आने वाले दिनों में ऐसा लगता है यह सम्पूर्ण विश्व को अपने आगोश में ले सकता है।  मंकी पॉक्स वायरस जानवरों एवं इंसानों दोनों को अपना शिकार बनाती है,जो उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन के क्षेत्रों में अधिकांशतः पाया जाता है। इस तरह के वन मध्य अफ्रीका तथा पश्चिमी अफ्रीका में पाया जाता है। पहली बार 1958 ईस्वी में यह बंदरों में पाया गया था। इसीलिये इसे मंकी पॉक्स के नाम से जाना जाता है। आज विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस वायरस को अत्यंत खतरनाक रोगों की लिस्ट शामिल किया है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति में इन्क्यूवेशन की अवधि 5 - 21 दिनों का होता है तत्पश्चात फिर इंसान अपने - आप ठीक होने लगता है। वैसे इस वायरस का संक्रमण समलैंगिकों में अधिक पाया गया है। यह एक डी एन ए वायरस है,जो हवा में नहीं फैलता है। यह मरीजों के संपर्क से,उसके ड्रॉप्लेट्स से एवं शारीरिक संसर्ग के कारण एक दूसरे में जाता है।

लक्षण : - बुखार,त्वचा में रैशेज,तेज सिरदर्द,मांसपेशियों में दर्द,कमजोरी,लिम्फ नोड्स की सूजन,मवाद भरे त्वचा पर दाने, गले में खराश,सांस लेने  में तकलीफ,आँखें लाल हो जाना आदि मंकी पॉक्स के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- पॉक्सविरडे फैमली का ऑर्थोपॉक्स वायरस,संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से,संक्रमित व्यक्ति के ड्रॉप्लेट्स से,मंकी पॉक्स से संक्रमित मरीज के साथ चुम्बन या सेक्स सम्बन्ध स्थापित करना आदि मंकी पॉक्स रोग के मुख्य कारण हैं । 

उपचार : - (1 ) पानी में नीम के पत्तों को उबाल कर छान लें और उससे स्नान करने से मंकी पॉक्स रोग में बहुत आराम मिलता है।  

(2 ) गाजर के रस का सेवन मंकी पॉक्स के रोगियों के अत्यंत लाभकारी है। 

(3 ) कीवी, नाशपाती,तरबूज आदि फलों का सेवन मंकी पॉक्स के रोग में बहुत लाभ पहुंचाता है। 

(4 ) मंकी पॉक्स के फफोले पर शहद लगाएं और कुछ देर में धोने से अत्यंत लाभ होता है। 

(5) नीम की पत्तियों को महीन पीस कर लेप करने से भी मंकी पॉक्स के फफोले में बहुत हितकर है। 

योग एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,भ्रामरी,भस्रिका आदि। 


langya virus disease

लैंग्या वायरस रोग : - लैंग्या वायरस रोग एक अत्यंत संक्रामक रोग है, जो जानवरों से इंसानों में फैलता है। अभी कुछ दिनों से सर्वप्रथम इस वायरस का पता चीन में लगा है। वैसे तो यह वायरस चीन के सेन्डोंग प्रान्त में जनवरी 1919 में देखने को मिला था। लैंग्या वायरस हेनिपावायरस का ही अन्य रूप है। यह वायरस उन लोगों में पाया गया है,जिनका पालतू पशुओं से सीधा संपर्क था। यूँ कहें कि वो जानवरों के साथ ज्यादा समय बिताता था। वास्तव में लैंग्या वायरस इंसानों में जानवरों से ही पहुंचा है, जैसा कि शोध से पता चला है। इस वायरस का वाहक छछूंदरों को विशेष रूप से माना जा सकता है। कुत्तों एवं बकरियों में भी पाया गया है ऐसा विशेषज्ञों का मत है। लैंग्या वायरस का जीनोम मोजियांग हेनिपावायरस के अधिक नजदीक माना गया है। यह वायरस फिलहाल ज्यादा परेशानी वाला नहीं है,किन्तु भविष्य में अपना रूप बदलकर अधिक खतरनाक हो सकता है, इस बात से विशेषज्ञों ने इंकार नहीं किया है। 

लक्षण: - बुखार,थकान,खांसी,भूख न लगना,मांसपेशियों में दर्द,सिरदर्द,उल्टी,लिवर में संक्रमण,किडनी में परेशानी आदि लैंग्या वायरस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - हेनिपावायरस की प्रजाति,जानवरों के संपर्क में अधिक समय बिताना,गंदगी युक्त वातावरण में रहना,कच्चे - अधपके मांसों का भक्षण,रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम होना,आद्रता युक्त जगहों पर निवास होना आदि लैंग्या वायरस रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - लैंग्या वायरस रोग का वैसे तो कोई उपचार अभी तक नहीं खोजै गया है,किन्तु पीड़ितों के शारीरिक लक्षणों के आधार पर जैसे बुखार,खांसी,थकान,सिरदर्द,उल्टी आदि का उपचार किया जाता है - 

(1) गिलोय,तुलसी,छोटी इलायची,दालचीनी को एक गिलास जल में डालकर उबालें और जब एक चौथाई रह जाये तो छान कर सुबह - शाम पीने से लैंग्या वायरस रोग में अद्भुत लाभ मिलता है। 

(2) एक चम्मच काली मिर्च का चूर्ण,दो चम्मच शहद,एक चम्मच अदरक स्वरस मिलाकर सुबह - शाम सेवन करने से लैंग्या वायरस रोग दूर हो जाता है। 

(3) गिलोय,लौंग,काली मिर्च, कच्ची हल्दी,अदरक को लेकर काढ़ा बनाकर सुबह - शाम सेवन करने से लैंग्या वायरस रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(4) कच्ची हल्दी को कूट कर दूध में डालकर उबालें और गुनगुना सुबह - शाम पीने पर लैंग्या वायरस रोग में अत्यंत लाभकारी है। 

(5) तुलसी,दालचीनी,काली मिर्च,शुंठी एवं मुनक्का से बानी काढ़ा सुबह - शाम पीने से लैंग्या वायरस रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। 

योग एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी आदि। 


mucormycosis disease

ब्लैक फंगस रोग : - ब्लैक फंगस एक अत्यंत खतरनाक एवं दुर्लभ किस्म का फंगल संक्रमण रोग है,जिसमें व्यक्ति वातावरण में मौजूद म्यूकॉर्मिसेट्स नामक सूक्ष्मजीवों की चपेट में आने से संक्रमित हो जाता है। वास्तव में ब्लैक फंगस संक्रमण कोरोना वायरस से संक्रमित होने से व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर यानि रोगों से लड़ने की शक्ति अत्यंत क्षीण पड़ जाती है। परिणामस्वरुप ब्लैक फंगस की चपेट में आ जाता है। विशेषकर जो कोरोना संक्रमित व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी जैसे - मधुमेह,कैंसर,एड्स आदि से पीड़ित हो साथ ही आई सी यू एवं वेंटिलेटर सपोर्ट पर हों,उसे ब्लैक फंगस से संक्रमण का खतरा बहुत अधिक होता है। इसके अतिरिक्त कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्ति जिसका ऑक्सीजन कन्संट्रेटर की सहायता से उपचार हो रहा हो,उसे कन्संट्रेटर में स्टेराइल जल देना पड़ता है,किन्तु अज्ञानतावश या जानकारी न होने की वजह से सामान्य जल का प्रयोग करते है। परिणामस्वरूप व्यक्ति फंगस से संक्रमित हो जाता है,जिसे ब्लैक फंगस रोग के नाम से जाना जाता है। कोरोना से संक्रमित होने पर दवाइयां व स्टेरॉयड का सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को अत्यंत दुर्बल बना देता है ,जो फंगस संक्रमण के खिलाफ लड़ने में सक्षम नहीं हो पाता। अंततः फंगस की चपेट में आने से मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठता है। इसलिए ब्लैक फंगस संक्रमण को हल्क़े में नहीं लेना चाहिए और शीघ्रता पूर्वक चिकित्सक से परामर्श एवं उपचार करवाना चाहिए। 

लक्षण : - तीव्र बुखार,आँखों में लालिमा,आँखों में सूजन,आँख एवं नाक के नीचे सूजन,चेहरे पर सूजन,चेहरे का सुन्न हो जाना,पेट में दर्द,साँस लेने में परेशानी,मल में खून आना,नाक एवं मुँह से खून आना,उल्टी,तेज खांसी,जबड़े की हड्डी गल जाना,आँखों से कम दिखाई देना या धुंधलापन दिखाई देना,चेहरे के एक तरफ दर्द,दांत दर्द,गाल की हड्डी में दर्द,मुँह के अंदर सूजन आदि ब्लैक फंगस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - कोरोना रोग से पीड़ित होना,मधुमेह,कैंसर,अंग प्रत्यारोपण ,सफ़ेद रक्त कणों का कम होना,कुपोषण,सही समय पर इलाज न मिलना,स्टेरॉइड का सेवन,ड्रग्स का सेवन,एड्स,समय से पूर्व प्रसव,लम्बे समय तक आई सी यू में उपचार,एंटी फंगल उपचार कराना,दूषित जल का सेवन,मिट्टी एवं धूल के संपर्क में रहना,कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली,ऑक्सीजन कन्संट्रेटर में स्टेराइल जल का प्रयोग नहीं करना आदि ब्लैक फंगस रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) गिलोय एवं तुलसी के पत्ते का काढ़ा नियमित सुबह - शाम एवं सप्ताह में एक बार गिलोय,तुलसी,हल्दी कच्ची या पाउडर,अदरक,एक - दो लौंग का काढ़ा के सेवन से कोरोना के कारण रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि कर ब्लैक फंगस को दूर करने में अत्यंत लाभदायक होता है। 

(2) आग पर फूली हुई फिटकरी,हल्दी एवं सेंधा नमक सबको मिलाकर गरारे या जबड़े की मालिश करने से ब्लैक फंगस के प्रभाव से होने वाले जबड़े,मुँह के अंदर की सूजन आदि दूर हो जाते हैं। 

(3) वातावरण में मौजूद धूलकणों एवं मिट्टी के सम्पर्क से दूर रह कर साथ ही मास्क लगाकर ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है। 

(4) कोरोना के संक्रमण के कारण रोगों से लड़ने की शक्ति के कम हो जाने की स्थिति में ब्लैक फंगस के संक्रमण से बचने के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत एवं शक्ति प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन द्वारा भी ब्लैक फंगस के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। 

(5) आधा चम्मच हल्दी,एक चुटकी काली मिर्च चूर्ण,लवंग,पीपर एवं दालचीनी के सेवन से इम्युनिटी पावर के बढ़ने से ब्लैक फंगस से संक्रमित होने से बचा जा सकता है। 

(6) नियमित रूप से ताजे फल,सब्जियों के सेवन से भी ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है। 

(7) स्टेरॉइड एवं ऑक्सीजन सपोर्ट के लिए बिना डॉक्टर की सलाह से स्वयं अपने आप सेवन नहीं करने से भी ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है। 

(8) ऑक्सीजन चैंबर में प्रयुक्त होने वाले जल को बदलते रहने एवं स्टेराइल जल के ही प्रयोग करने से ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है। 

(9) कोरोना के संक्रमण से मुक्त होने के बाद मधुमेह के रोगी को अपने शुगर लेवल पर अत्यंत निगरानी रखकर भी ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है यानि शुगर को कंट्रोल में रखकर ब्लैक फंगस के संक्रमण से बचा जा सकता है। 

(10) अपने शरीर को हमेशा स्वच्छ एवं नमी युक्त मौसम और नमी वाले जगहों से बचा कर रखने से भी ब्लैक फंगस से बचा जा सकता है। 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भस्त्रिका,भ्रामरी,ॐ का उच्चारण आदि। 

 


filariasis disease

फाइलेरिया या हाथी पांव रोग : - फाइलेरिया या हाथी पांव अत्यंत गंभीर रोग है ,जिसमें पैरों वृषण कोषोंतथा शरीर के अन्य भागों में सूजन हो जाती है। इस रोग में हाथों या पैरों में बहुत ज्यादा सूजन हो जाने से अत्यंत मोटा हो जाने के कारण ही हाथी पांव रोग के नाम से भी लोग पुकारते है। फाइलेरिया रोग बैंक्रोफ्टाई नामक कृमि से होता है,जिसका संचारण क्यूलेक्स मच्छरों के काटने से होता है। फाइलेरिया परजीवी द्वारा होने वाला एक संक्रामक उष्ण कटिबंधीय निमेटोड के द्वारा फैलने वाला रोग है ,जो लसिका ग्रंथि और नाड़ियों को प्रभावित करता है एवं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को क्षतिग्रस्त करती है। वास्तव में फाइलेरिया या हाथी पांव रोग अत्यंत कष्ट एवं दर्द प्रदायक बीमारी है। 

प्रकार :- (1) लिम्फेटिक फाइलेरिया - यह लिम्फ ( लसिका )प्रणाली एवं लिम्फ नोड को प्रभावित करता है। 

(2) सब क्यूटेनियम फाइलेरिया - यह त्वचा के नीचे की परत को प्रभावित करता है। 

(3) सीरियस केविटी फाइलेरिया - यह पेट की सीरियस केविटी को प्रभावित करता है। 

लक्षण :- सिरदर्द,बुखार एवं गिल्टियाँ हो जाना,ठण्ड लगना,पैरों में सूजन होना,दर्द,त्वचा की परत एवं त्वचा की परत के नीचे ऊतकों का मोटा हो जाना,स्तन एवं जननांगी क्षेत्र का आकार सामान्य से बढ़ जाना,त्वचा पर लाल चकत्ते,पेट में दर्द,नसों का फूल जाना,जांघ में गिल्टी होना आदि फाइलेरिया या हाथी पांव के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :-  बैंक्रोफ्टाई नामक कृमि, लिम्फेटिक फाइलेरिया संक्रमित मच्छर के काटने से,क्यूलेक्स,एडिस एवं एनोफिलिस के द्वारा संचारण आदि फाइलेरिया रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) लौंग की चाय पीने से फाइलेरिया परजीवी पनपने में रोकथाम करती है और रक्त से नष्ट कर देती है। 

(2) काळा अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन - चार बूंदें डालकर पीने से फाइलेरिया के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। 

(3) लहसुन,अनानास,मीठे आलू,शकरकंदी,गाजर एवं खुबानी आदि आहार में शामिल करने से फाइलेरिया के जीवाणुओं का नाश हो जाता है।

(4) आंवला के प्रतिदिन सेवन से फाइलेरिया रोग में बहुत फायदा होता है। 

(5) अश्वगंधा पाउडर के प्रतिदिन सेवन से फाइलेरिया रोग दूर हो जाता है। 

(6) ब्राह्मी को पीसकर फाइलेरिया से प्रभावित अंगों पर लेप करने से सूजन कम हो जाता है। 

(7) अदरक का पाउडर या सोंठ का प्रतिदिन गरम पानी के साथ सेवन करने से शरीर में मौजूद परजीवी का नाश हो जाता है। 

(8) शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर प्रभावित अंगों पर लेप लगाने से सूजन समाप्त हो जाती है। 

(9) अश्वगंधा एवं शिलाजीत के सेवन से फाइलेरिया ठीक हो जाती है। 

(10) कुटज,विडंग,हरीतकी,गिलोय एवं मंजिष्ठा आदि के सेवन से भी फाइलेरिया रोग दूर हो जाता है। 

(11) कल्क के पत्तियों के पेस्ट फाइलेरिया प्रभावित स्थानों पर लगाने से फाइलेरिया रोग दूर हो जाता है। 

(12) धतूरा,एरंड,निर्गुन्डी,सहजन की छाल सफ़ेद पुनर्नवा सबको सरसों के के तेल में मिलाकर लगाने से भी फाइलेरिया में बहुत आराम मिलता है। 



 


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