ketoacidosis disease

कीटोएसिडता रोग :- कीटोएसिडता रोग एक अत्यंत कष्टप्रद रोग है,जिसमें शरीर में कीटोन की अधिकता हो जाती है। वास्तव में मानव शरीर में दो प्रमुख अम्ल एसिटोएसिटिक एवं बीटा - हाड्रोक्सी - ब्युटीरेट ही कीटोएसिडता रोग के मुख्य घटक होते हैं। इन दोनों अम्लों की अधिकता से रक्त में अम्ल का निर्माण होने लगता है और यह शरीर के लिए अत्यंत घटक स्थिति पैदा कर देता है। समय रहते इलाज की आवश्यकता होती है;किन्तु उपचार न होने पर जानलेवा सिद्ध होती है। 

कीटोएसिडता रोग के प्रकार :- (1 ) मद्य जन्य (2 ) उपवास जन्य (3 ) मधुमेह जन्य 

कारण :- लम्बे समय तक मधुमेह रोग का होना,शराब का अत्यधिक प्रयोग, उपवास आदि कीटोएसिडता रोग के प्रमुख कारण हैं। 

उपचार :- (1 ) जामुन,अमरुद,नीम,तुलसी,बबूल के पत्तों का काढ़ा प्रतिदिन एक कप की मात्रा सुबह - शाम सेवन करने से कीटोएसिडता रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(2 ) करेले का जूस प्रतिदिन एक कप के मात्रा सुबह - शाम सेवन करने से कीटोएसिडता रोग में अत्यंत लाभकारी है। 

(3 ) दालचीनी के चाय प्रतिदिन पीने से कीटोएसिडता रोग में अत्यंत लाभ पहुंचाता है। 

(4 ) मेथी एक चम्मच प्रतिदिन रात में भिंगो दें और सुबह चबाकर खाने से कीटोएसिडता रोग में बहुत फायदा पहुंचता है। 

(5 ) अदरक की चाय पीने से भी कीटोएसिडता रोग में अत्यंत लाभप्रद है। 

(6 ) एलोवेरा जूस का प्रतिदिन सेवन कीटोएसिडता रोग में रामबाण सिद्ध होता है। 

(7 ) अखरोट,बादाम को पीसकर सुबह - शाम एक चम्मच शहद के साथ सेवन कीटोएसिडता रोग में अत्यंत लाभकारी है। 

योग एवं प्राणायाम : - कपालभाति,अनुलोम - विलोम,भ्रामरी,चक्रासन आदि। 


food allergy disease

खाद्य एलर्जी रोग : - कोई ख़ास तरह का खाना खाने के बाद शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता का बुरी तरह या खतरनाक तरीके से प्रतिक्रिया करना खाद्य एलर्जी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में खाद्य पदार्थों के प्रदूषित होने की वजह से भी शरीर द्वारा प्रतिक्रियास्वरूप जो एलर्जी होती है,इसे खाद्य एलर्जी कहा जाता है। यह आहार से होने वाली एलर्जी के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्य प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जो शरीर असहजता एवं परेशानी महसूस करता है और लक्षण दर्शाती है इसे खाद्य एलर्जी के तौर पर देखा जाता है। कभी - कभी यह एलर्जी अत्यंत घातक सिद्ध होता है एवं जानलेवा सिद्ध हो सकती है। इसे खाद्य प्रत्यूर्जता के नाम से भी जाना जाता है। 

लक्षण : - सिरदर्द,पेट दर्द,शरीर पर लाल चकत्ते,खुजली,गले में सूजन,साँस लेने में परेशानी,धड़कनों का तेज होना,पित्ती उछलना,पाचन समस्याएं,निम्न रक्तचाप,जी मिचलाना,जीभ में सूजन के कारण बोलने में परेशानी,नाक का बहना,नाक में जलन आदि खाद्य एलर्जी रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - प्रदूषित खाद्य पदार्थ का सेवन,शरीर का अति संवेदनशील होना,आनुवांशिक कारण,पर्यावरणीय बदलाव,वायरस,परजीवी,बैक्टीरिया का संक्रमण,दवाओं का प्रतिकूल प्रभाव, संतुलित खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना,विटामिन डी की कमी होना आदि खाद्य एलर्जी रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1 ) केला के प्रतिदिन सेवन करने से खाद्य एलर्जी रोग दूर हो जाती है। 

(2 ) आंवला के प्रयोग से खाद्य एलर्जी रोग दूर हो जाती है। 

(3 ) संतरा जूस,मौसमी जूस आदि के नियमित प्रयोग करने से खाद्य एलर्जी रोग दूर हो जाती है। 

(4 ) केस्टर ऑयल की चार - पांच बूंदें एक कप पानी में डालकर पीने से खाद्य एलर्जी समाप्त हो जाती है। 

(5 ) जैतून का तेल,ब्रोकली,सूरजमुखी तेल,पालक,बादाम,समुद्री खाद्य पदार्थों के सेवन से भी खाद्य एलर्जी दूर हो जाती है। 

(6 ) अलसी या अलसी के तेल के प्रयोग से खाद्य एलर्जी में अत्यंत फायदा होता है। 

(7 ) एक चम्मच नीम्बू रस एवं एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से भी खाद्य एलर्जी में अत्यंत लाभकारी है। 

(8 ) गाजर का रस एवं चुकुन्दर का रस मिलाकर पीने से खाद्य एलर्जी ठीक हो जाता है। 

(9 ) विटामिन बी - 5 के सेवन से भी खाद्य एलर्जी ठीक हो जाता है। 

(10 ) नोनी जूस के सेवन से खाद्य एलर्जी एवं इससे होने वाले दुष्प्रभावों से पूरी तरह से बचा जा सकता है। 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,ॐ कार का उच्चारण,सूर्य नमस्कार आदि 


hernia disease

पेट का हर्निया रोग : - पेट का हर्निया रोग एक अत्यंत जटिल एवं कष्टकारी बीमारी है,जो देहगुहा को ढ़कने वाली झिल्ली या आवरण के फ़ट जाने या क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण होती है।हर्निया के कई प्रकार हैं; किन्तु जब हम हर्निया की बात करते हैं तो उदार यानि पेट की हर्निया से ही मतलब होता है। वैसे तो जिस अंग में हर्निया निकलता है उसी अंगों के नाम से जाना जाता है। वास्तव में हर्निया शरीर के अंदर की मांसपेशी  के आवरण से बहार आना ही हर्निया कहलाता है। अधिकांश हर्निया ज्यादा घातक नहीं होते हैं;किन्तु इसे उपचार द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।  कभी - कभी इसे आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है और जिसे टाला नहीं जा सकता। 

लक्षण : - गोल उभार का होना,कुछ उतरने जैसा आभास होना,छूने पर आवाज का अनुभव,दर्द,गांठ होना,सूजन, पेट निचले भाग में कुछ नीचे की ओर अंगों का सरकने जैसा अनुभव होना आदि पेट के हर्निया के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - आघात,लम्बी अवधि तक खांसी होना,जन्मजात विकार,कब्ज, भरी वजन उठाना,जलोदर रोग,मोटापा,गर्भावस्था,आनुवंशिक आदि पेट के हर्निया रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) फाइवर युक्त आहार जैसे - पालक,गाजर,मशरूम,चुकुन्दर,शलगम,कद्दू,ब्रोकली,बीन्स आदि के नियमित सेवन से पेट के हर्निया रोग में बहुत लाभ होता है। 

(2) नट्स एवं ड्राई फ्रूट्स के नियमित सेवन से भी पेट के हर्निया रोग में बहुत लाभ होता है। 

(3) फलों के नियमित सेवन ( सेब,केला,आड़ू,नाशपाती ) से पेट के हर्निया में बहुत फायदा होता है। 

(4) साबुत अनाज जय या गेहूं का दलिया,ब्राउन राईस आदि के सेवन से भी पेट के हर्निया रोग में बहुत लाभ होता है। 

(5) वजन यानि मोटापा को नियंत्रित रख कर भी पेट के हर्निया रोग से बचा जा सकता है। 

(6) मल त्याग एवं उत्सर्जन क्रिया के समय जोर नहीं लगाना चाहिए जिससे पेट के हर्निया रोग में बहुत लाभ रहता है। 

(7) संतुलित आहार एवं स्वस्थ आहार के सेवन से भी पेट के हर्निया रोग में अत्यंत फायदा होता है। 

(8) दैनिक जीवन में हर्निया के रोगी को वजन उठाने से भी हमेशा बचना चाहिए जिससे हर्निया के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। 

(9) अंकुरित अनाज जैसे - गेहूं,मूंग,चना आदि सेवन से भी पेट के हर्निया रोगी को बहुत लाभ होता है। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम, कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,शलभासन आदि। 


malnutrition disease

कुपोषण रोग : - कुपोषण एक गंभीर बीमारी है,जो किसी व्यक्ति के आहार में संतुलित पोषक पदार्थों की कमी के कारण होने वाली स्थिति है। वास्तव में शरीर को आवश्यक संतुलित पोषक तत्त्वों का नहीं मिलना ही कुपोषण कहलाता है जो भारत जैसे देश के लिए एक गंभीर चुनौती का विषय है। भारत में कुपोषण दर 55 % है एवं मरने वाले 10 लाख से भी अधिक बच्चे है और स्त्रियां कुपोषण के कारण अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते है। आज के वर्तमान समय में संतुलित भोजन न मिलना एक समस्या नहीं है किन्तु भागदौड़ एवं अनुचित खान - पान जैसे जंक,फ़ास्ट फ़ूड के अत्यधिक उपयोग में लाने एवं प्रयोग करने के कारण उत्पन्न विकृति है।  आज पुरे विश्व में लगभग 190 करोड़ वयस्क अधिक वजन रखते हैं एवं 46 करोड़ वयस्क अल्प वजन यानी अंडरवेट वाले है। साथ 41 लाख बच्चे जिसकी उम्र 5 वर्ष या कम उम्र वाले बच्चे मोटापा से ग्रसित है और डेढ़ करोड़ कम ऊंचाई के हैं। 5 करोड़ बालक कुपोषित हैं। वास्तव में संतुलित भोजन न मिलना ही कुपोषण के मुख्य कारण हैं,जिससे उसका विकास रुक जाता है चाहे वो मानसिक हो या शारीरिक। 

लक्षण : - कम वजन एवं कृशकाय होना,साँस लेने में दिक्कत,अल्प रक्तचाप,प्रजनन क्षमता का ह्रास,सुखी त्वचा,गाल पिचके,आँखें धंसी हुई,बाल रुखे एवं कम घने,मानसिक रुप से कमजोर,पाचन सम्बन्धी दोष,बच्चों एवं महिलाओं में खून की कमी,घेघा रोग,बच्चों में सूखा रोग, रतोंधी आदि कुपोषण के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - संतुलित भोजन नहीं मिलना,पोषक तत्त्वों का शरीर द्वारा अवशोषण नहीं कर पाना,अत्यधिक शराब पीना,मानसिक रोग,पाचन विकार,शरीर में खून की कमी,अनुचित खान - पान,प्रदूषित भोज्य पदार्थों का सेवन,आनुवंशिक कारण आदि कुपोषण के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) ब्रेड,चावल एवं आलू के नित्य प्रतिदिन सेवन करने से धीरे - धीरे कुपोषण का विकार ठीक हो जाता है। 

(2) दूध एवं डेयरी खाद्य पदार्थों के नियमित सेवन से कुपोषण का दोष ठीक हो जाता है। 

(3) फलों एवं हरी सब्जियों के नियमित सेवन से कुपोषण कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है। 

(4) कैल्सियम युक्त भोज्य पदार्थों जैसे - दूध प्रोडक्ट,सोयाबीन,ब्रोकली,दाल आदि के सेवन से कुपोषण दूर हो जाता है। 

(5) चुकुन्दर,गाजर,पालक आदि के नियमित सेवन से कुपोषण दूर हो जाता है। 

(6) फॉस्फेट,जिनक एवं विटामिन युक्त खाद्य पदर्थों के सेवन से कुपोषण ठीक हो जाता है। 

(7) मांस,मछली,अंडे आदि के प्रचुर मात्रा में नियमित सेवन से कुपोषण दूर हो जाता है। 

(8) ड्राई फ्रूट जैसे छुहारा,किशमिश,खजूर,अंजीर आदि के सेवन से कुपोषण के दोष दूर हो जाते हैं 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,उज्जयी अग्निसार आदि। 


appendicitis disease

उपांत्र शोथ या एपेंडिक्स रोग :  - उपांत्र शोथ एपेंडिक्स की सूजन की अवस्था है। एपेंडिक्स एक छोटी सी ट्यूब की तरह का अंग होता है,जो बड़ी आंत से जुड़ा हुआ रहता है और पेट के दायीं ओर होता है। वास्तव में एपेंडिक्स एक तरफ से खुला हुआ और दूसरी तरफ से बंद होता है। जब एपेंडिक्स में रुकावट,दवाब और सूजन बढ़ जाती है तो इसमें इंफेक्शन हो जाता है जिसके फट जाने पर जानलेवा साबित होती है;इसलिए इसे आपातकालीन चिकित्सा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। पेट के दायीं भाग में दर्द रहने पर एपेंडिक्स की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि इसके फट जाने से अत्यंत खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 

लक्षण : - मध्य पेट में नाभि के आसपास दर्द,बुखार,उल्टी,मांसपेशियों में ऐंठन,खांसने से दर्द में वृद्धि,भूख न लगना,ठण्ड लगने जैसा लक्षण,पेट में दर्द का स्थान बार - बार बदलना,पेट से वायु निकलने में परेशानी,जीभ की सतह पर सफ़ेद रंग जमा होना आदि उपांत्र शोथ रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - मल के टुकड़े का एपेंडिक्स में फंस जाना और अवरोध पैदा करना,संक्रमण के कारण,एपेंडिक्स में सूजन,एपेंडिक्स का फूलापन एवं पीप की उत्पत्ति,बैक्टीरिया का बढ़ जाना, दाँतों में पायरिया होना आदि उपांत्र शोथ रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) लहसुन की 3 - 4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से एपेंडिक्स की सूजन या संक्रमण से बचा जा सकता है। 

(2) अदरक के टुकड़ों को दो कप पानी में उबालें और जब एक कप पानी शेष रहे तो छानकर उसमें एक चम्मच शहद डालकर प्रतिदिन पीने से एपेंडिक्स की सूजन दूर हो जाती है। 

(3) मेथीदाना दो चम्मच लेकर एक कप पानी में उबालें और छानकर प्रतिदिन दिन में दो बार सेवन करने से एपेंडिक्स की सूजन दूर हो जाती है। 

(4) एक मुट्ठी तुलसी के पत्ते,एक चम्मच अदरक के छोटे - छोटे टुकड़े को एक कप पानी में उबालकर दिन में दो बार पीने से एपेंडिक्स की सूजन समाप्त हो जाती है। 

(5) एक चम्मच ताजे पुदीने की पत्ती एक कप खौलते पानी में डालकर उबालें और छानकर उसमें कच्ची शहद मिलाकर हफ्ते भर दिन में दो बार पीने से एपेंडिक्स की सूजन दूर हो जाती है। 

(6) रोजाना छाछ में काला नमक मिलाकर पीने से एपेंडिक्स में बहुत राहत मिलती है। 

(7) पुनर्नवा,हरड़,नीम की छाल,दारू हल्दी,कुटकी,गिलोय,पटल के पत्ते एवं सोंठ 4 -4 ग्राम लेकर जौ कूटकर आधा लीटर जल में काढ़ा बनाकर पीने से उपांत्र शोथ या एपेंडिक्स की सूजन एवं दर्द आराम हो जाता है। 

(8) सोंठ, हरड़,श्वेत जीरा,पीपल,काली मिर्च,अजवाइन,लोंग,चीता,नागरमोथा,सोया बच,छोटी इलायची,दालचीनी,सोंफ,हींग भुनी,सुहागा समान भाग तथा काला नमक एवं सेंधा नमक 6 - 6 ग्राम चूर्ण बना दिन में तीन बार जल के साथ सेवन करने से उपांत्र शोथ या एपेंडिक्स के सूजन, इंफेक्शन एवं दर्द समाप्त हो जाती है। 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम विलोम ,कपालभाति,भ्रामरी,उज्जायी ,सर्वांग आसन आदि। 


dehydration disease

शरीर में पानी की कमी का रोग या डिहाइड्रेशन रोग : - शरीर में पानी कमी का रोग यानि डिहाइड्रेशन एक गंभीर स्थिति है,जिसमें पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने एवं अत्यंत तेज धूप और गर्मी के कारण हो जाती है। शरीर में पानी की कमी को चिकित्सीय भाषा में डिहाइड्रेशन कहा जाता है। मानव शरीर में लगभग 60  प्रतिशत,मस्तिष्क में 85 प्रतिशत,खून में 79 प्रतिशत एवं फेफड़ों में लगभग 80 प्रतिशत भाग जल होता है। वास्तव में शरीर में पानी के कमी का असर अत्यंत बुरा होता है एवं शरीर की क्रियाशीलता में बहुत अधिक कमी आ जाती है।साथ ही शरीर के प्रमुख अंगों में तालमेल का अभाव हो जाने के कारण शरीर क्षीण होने लगता है एवं खून का प्रेशर अत्यंत कम हो जाता है जिसका हृदय,फेफड़ों एवं मस्तिष्क पर अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ता है। उपचार न हो पाने की स्थिति में जानलेवा साबित हो जाती है। 

लक्षण : - कमजोरी,बुखार,सिरदर्द,अधिक चक्कर आना,अधिक भूख एवं प्यास लगना,पेशाब में जलन,मुंह से दुर्गन्ध आना,मांसपेशियों में ऐंठन,साँस लेने में परेशानी,थकान,स्किन ड्राई होना,त्वचा पर रैशेज,खुजली,त्वचा का सख्त हो जाना,होठों पर पपड़ी,यूरिन का पीला एवं गाढ़ा होना आदि शरीर में पानी काम हो जाने के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - काम पानी का सेवन करना,तेज धूप में बाहर निकलना,उल्टी अधिक होना,डायरिया होना,दवा का कुप्रभाव,भूखे घर से बाहर जाना और अधिक देर तक भूखा रहना,अधिक पसीना निकलना आदि शरीर में पानी कम होने के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) नमक,चीनी एवं नीम्बू युक्त घोल बनाकर पीने से शरीर में पानी के कमी को दूर कर देता है। 

(2) नेचुरल इलेक्ट्रोलाइट युक्त पदार्थों जैसे - मौसमी सब्जियों,फलों,सत्तू,चावल,अदर। सोंफ और जीरे के सेवन से शरीर में पानी के कमी का रोग ठीक हो जाता है। 

(3) मट्ठा,लस्सी या बेल के शरबत का सुबह - सुबह सेवन भी शरीर में पानी की कमी के रोग को दूर कर देता है। 

(4) नीम्बू पानी एवं नारियल पानी,शिकंजी,पुदीने का पानी पीने से शरीर में पानी की कमी को दूर बहुत जल्दी कर देता है। 

(5) सुबह - शाम नारियल पानी पीने से भी शरीर में पानी की कमी को दूर कर देता है। 

(6) फ़ास्ट - फूड्स एवं स्ट्रीट फूड्स के सेवन से परहेज कर भी शरीर में पानी की कमी होने से बचे रह सकते हैं। 

(7) सुबह - सुबह जौ से बनी सत्तू के सेवन से भी शरीर में पानी की कमी को दूर किया जा सकता है। 

(8) कच्चे आम को आग में पकाकर उसे अच्छी तरह मसलकर एक गिलास पानी में डालकर उसमें काला नमक मिलाकर पीने से पानी की कमी से शरीर में होने वाली क्षति को बहुत जल्दी दूर हो जाता है। 

योग एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,शीतली प्राणायाम,भ्रामरी आदि। 




 


indigestion disease

अजीर्ण रोग :- अजीर्ण रोग पाचन तंत्र की एक गंभीर बीमारी है ,जो उदर में पित्त के बिगड़ने से उत्पन्न होता है। अजीर्ण रोग में भोजन हजम नहीं होता है यानि पचने में बहुत अधिक समय लगाता है ,जिसके कारण पेट में गैस,दस्त,दर्द,शूल,वमन जैसी समस्या एवं अन्य कई तरह के विकार उत्पन्न होने लगते हैं। आयुर्वेद के अनुसार अजीर्ण के छः भेद बताये गए हैं - 

(1) आनाजीर्य - इसमें खाया गया अन्न बिना पचे कच्चा ही निकल जाता है। 

(2) विदग्धाजीर्ण - इसमें अन्न एवं जल दोनों बिना पचे निकल जाता है। 

(3) बिष्टधाजीर्ण - इसमें अन्न के गोटे या कंडे बँधकर पेट में कष्ट उत्पन्न करता है। 

(4) रसशेषाजीर्ण - इसमें अन्न पानी की तरह पतला होकर निकल जाता है। 

(5) दिनपाकी अजीर्ण - इसमें खाया हुआ अन्न दिनभर पेट में बना रहता है और भूख नहीं लगती है। 

(6) प्रकृत्याजीर्ण - यह सामान्य अजीर्ण की तरह होता है। 

वास्तव में अजीर्ण चाहे कैसा भी हो पाचन तंत्र की खराबी के कारण ही होता है। इसमें शरीर की सारी क्रियाएं असंतुलित होकर मनुष्य के शरीर पर घातक प्रभाव डालती है एवं विभिन्न प्रकार की समस्याओं को जन्म देती है ,जिससे कमजोरी,खून की कमी,चक्कर आना,लिवर में विकार आ जाना आदि संभव है। 

लक्षण - भूख न लगना,पेट फूलना,कब्ज,खट्टी डकारें,पेट में जलन,पेट में भारीपन,छाती में तेज जलन,अधिक पसीना,धड़कन तेज,अनिद्रा,ज्वर एवं मूर्च्छा,भोजन में अरुचि,सिर में भारीपन,भ्रम आदि अजीर्ण रोग की प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण - पाचन क्रिया की खराबी,असमय भोजन,बिना चबाये खाना,आलस्य,फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक प्रयोग,मैदा आदि से बानी चीजों का ज्यादा प्रयोग,असंतुलित आहार,अत्यधिक चाय - कॉफी का सेवन,आँतों में संक्रमण,मानसिक विकार,अत्यधिक पित्त वृद्धि,शराब का अत्यधिक सेवन आदि अजीर्ण रोग की मुख्य कारण हैं। 

उपचार - (1) भुनी हींग,अजमोद,श्वेत जीरा,सोंठ,लौंग,छोटी इलायची,काला नमक,सेंधा नमक,सूखा पोदीना 10 -10 ग्राम समान मात्रा में लेकर कूट पीस कपड़छान कर रख लें और दो ग्राम की मात्रा ताजे जल के साथ खाना खाने के बाद सेवन करने से अजीर्ण रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। 

(2) त्रिफला चूर्ण की 5 ग्राम की मात्रा गर्म दूध के साथ प्रतिदिन रात में सोते समय एक महीने तक सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर हो जाता है। 

(3) अजवाइन एवं काला नमक खाना खाने के बाद प्रतिदिन सेवन करने से अजीर्ण की समस्या से निजात मिल जाती है। 

(4) सोंफ 6 ग्राम,छोटी हरड़ 3 ग्राम,सोंठ 3 ग्राम की मात्रा कूट पीसकर चूर्ण बनाकर गर्म दूध के साथ रात में सोते समय प्रतिदिन सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर हो जाता है। 

(5) अदरक स्वरस एक चम्मच और उसमें थोड़ा सा सेंधा या काला नमक मिलाकर खाना खाने से कुछ देर पहले सेवन करने से अजीर्ण रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। 

(6) अजवाइन एक चम्मच एक गिलास पानी में डालकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन पीने से अजीर्ण रोग का नाश हो जाता है। 

(7) समुद्री नमक 20 ग्राम,10 ग्राम अनारदाना,सेंधा नमक, पीपल,काला जीरा,पीपलामूल,तेजपत्ता,तालीसपत्र,नागकेशर,अम्लबेत सभी 5 - 5 ग्राम,जीरा,कालीमिर्च,सोंठ 2 - 2 ग्राम,इलायची,दालचीनी 1 - 1 ग्राम सबको कूट पीस कपड़छान कर रख लें और प्रतिदिन रात को सोते समय गुनगुने जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग का नाश हो जाता है। 

(8) हरड़,पिप्पली और सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर ताजे जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग का नाश हो जाता है। 

(9) एक चुटकी हरड़ चूर्ण शहद के साथ चाटने से अजीर्ण रोग दूर हो जाता है। 

(10) हरड़,अजवाइन, सोंठ समान भाग और थोड़ा सा काला नमक चूर्ण बनाकर रत को सोते समय गुनगुने जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग का नाश हो जाता है। 

(11) चित्रक मूल का काढ़ा बनाकर खली पेट पीने से अजीर्ण रोग का नाश हो जाता है। 


sannipataj diarrhea disease

सन्निपातज अतिसार रोग :- सन्निपातज अतिसार एक गंभीर रोग है,जो वात, पित्त एवं कफ के कुपित होने पर होता है।इस बीमारी में मल सूअर की चर्बी की तरह सफ़ेद या मांस को धोने के बाद के पानी जैसा होता है।सन्निपातज अतिसार के कारन शारीरिक दुर्बलता बहुत अधिक बढ़ जाती है और भूख नहीं लगती है।दिन में नींद आती है और रात में नींद नहीं आती है।इस बीमारी में उपचार की अत्यंत आवश्यकता होती है।

लक्षण :- दस्त में मल सूअर की चर्बी की तरह सफ़ेद आना,मांस के धोबन के रंग जैसा मल आना,मल में खून आना,उल्टी,पसीना आना,पेट में दर्द,पेट में ऐंठन ,बुखार,अधिक नींद दिन में आना,रात में अनिद्रा,बेहोशी,भूख की कमी या नहीं लगना,प्यास अधिक लगना आदि सन्निपातज अतिसार के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- खान - पान में गड़बड़ी,एलोपैथिक दवाओं का कुप्रभाव,जठराग्नि का मंद पड़ जाना,कफ,वात एवं पित्त का कुपित होना,सन्निपात ज्वर का होना आदि सन्निपातज अतिसार के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1 ) बड़ी हरड़,मुनक्का,सोंफ एवं गुलाब के पुष्प को पीसकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से सन्निपातज अतिसार ठीक हो जाता है।

(2 ) पके हुए बेल का शरबत के सेवन से भी सन्निपातज अतिसार ठीक हो जाता है।

(3 ) कच्चे बेल का गूदा एवं सोंठ का चूर्ण समान भाग लेकर उसमें दुगुना गुड़ मिलाकर सेवन करें और ऊपर से लस्सी पीने से सन्निपातज अतिसार दूर हो जाता है।

(4 ) मैनफल पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से सन्निपातज अतिसार ठीक हो जाता है।

(5 ) नीम्बू को काटकर उसमें चने की दाल के बराबर हींग डालकर आग पर सेंके और उसे चूसने से सन्निपातज अतिसार ठीक हो जाता है।

(6 ) गिलोय,सोंठ,मोथा एवं अतीस समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर पीने से सन्निपातज अतिसार दूर हो जाता है।

(7 ) अनार के रस में जायफल,लौंग एवं सोंठ का चूर्ण एवं शहद मिलाकर सेवन करने से सन्निपातज अतिसार ठीक हो जाता है। 


malbandha disease

उदावर्त या मलबन्ध रोग :- उदावर्त या मलबन्ध पाचनतंत्र का एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। इसमें पेट की गैस गुदा मार्ग से न निकलकर पेट की ऊपर की ओर चली जाती है , इसलिए उसे उदावर्त या मलबन्ध कहते हैं।यह रोग क्षुधा तृषा यानि भूख की इच्छा ,मल - मूत्रादि के वेगों को रोकने से , कषाय ,तिक्त ,कटु और रुक्ष भोज्य पदार्थों के सेवन से एवं अधारणीय वेग धारण करने, अभोज्य, अति मैथुन से पक्वाशय कुपित होकर अपान वायु अधोगामी स्त्रोतों का अवरोध कर विष्टा , वात और मूत्र को रोक देता है ।फ़लस्वरूप भयंकर उदावर्त रोग का जन्म होता है और बस्ती , हृदय कुक्षि एवं उदर तथा पीठ में दारुण पीड़ा होती है क्योंकि मल - मूत्रादि रुक जाती है।

लक्षण :- भोजन का न पचना , जी मिचलाना , हृदय एवं पेट में व्याकुलता ,जी घबराना , कैंची से काटने जैसी पीड़ा होना ,सुई चुभोने जैसी पीड़ा अग्नि मान्द्य सर दर्द, पेट में भारीपन , प्यास , खांसी ,डकार पेट का फूल जाना ,साँस लेने न दिक्कत आदि उदावर्त या मलबन्ध रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- अपथ्य भोज्य पदार्थों का सेवन , मल -मूत्र के वेगों को रोकना कषाय ,तिक्त ,कटु एवं रुक्ष भोजन के सेवन , अधिक मैथुन करना ,धूम्रपान  एवं शराब का अत्यधिक सेवन, मांसाहार एवं गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का ज्यादा उपभोग आदि उदावर्त या मलबन्ध रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1 ) दो चम्मच इसबगोल की भूसी को रात में गर्म जल के साथ सोने से पहले प्रतिदिन सेवन करने से उदावर्त या मलबन्ध रोग दूर हो जाता है।

(2 ) दूध के साथ गुलकंद के प्रतिदिन सेवन करने से उदावर्त या मलबन्ध रोग का नाश हो जाता है।

(3 ) छोटी हरड़ को घी में भूनकर कूट पीस कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन दो  बार गर्म जल के साथ सेवन करने से उदावर्त या मलबन्ध रोग दूर हो जाता है।

(4 ) गर्म दूध के साथ गुड़ के सेवन से उदावर्त या मलबन्ध रोग में बहुत आराम मिलता है।

(5 ) अमलताश के फल के गूदे को एक गिलास जल में रात को भिंगो दें और सुबह छानकर ख़ाली पेट पीने से उदावर्त या मलबन्ध रोग का नाश हो जाता है।यह एक अनुभूत एवं निरापद है।

(6 ) हींग , शहद और सेंधा नमक के  मिश्रण को रुई में बत्ती बनाकर घी में चुपड़ कर गुदा के अंदर कुछ देर रहने  दें और फिर निकल दें ।ऐसा करने से कुछ दिनों में ही उदावर्त या मलबन्ध रोग ठीक हो जाता है।

(7 ) निशोथ 5 ग्राम , छोटी पीपल 2 ग्राम और मिश्री 40 ग्राम सबको कूट पीस कर चूर्ण बनाकर 5 ग्राम की मात्रा शहद में मिलाकर भोजन से पहले खाने से उदावर्त या मलबन्ध रोग दूर हो जाता है।

(8 ) छोटी हरड़, मरोड़ फली ,जबाखार और निशोथ समान भाग लेकर चूर्ण बना लें और 4 -  5 ग्राम की मात्रा घी में मिलाकर चाटने से उदावर्त या मलबन्ध रोग दूर हो जाता है।

(9 ) मरोड़ फली के चूर्ण को ताजे जल के साथ सेवन करने  से उदावर्त या मलबन्ध रोग का समूल नाश हो जाता है।

(10 ) त्रिफला चूर्ण के सेवन से भी उदावर्त या मलबन्ध रोग दूर हो जाता है ।


anorexia disease

भष्मक रोग :- भष्मक रोग एक विचित्र किस्म की बीमारी है,जिसमें रोगी हमेशा खाने की इच्छा करता है और जितना भी खाना खा ले उसे लगता है कि उसने कुछ खाया ही नहीं है।उसकी भूख शांत नहीं होती है साथ ही थोड़ी - थोड़ी देर के बाद वह कुछ न कुछ खाता रहता है।नतीजन उसका वजन बढ़ने लगता है।यह रोग अधिक सूखे भोजन करने से शरीर में स्थित धातु कुपित हो जाता है और पित्त काफी बढ़ जाता है।परिणामस्वरूप जठराग्नि अत्यंत तीव्र हो जाने के कारण भोजन को थोड़ी देर में ही भष्म कर देता है और तुरंत भूख लग जाती है।इसीलिये इसे भष्मक रोग कहा जाता है।

लक्षण :- अधिक भूख लगना,थोड़ी - थोड़ी देर पर खाने को माँगना,भूख शांत नहीं होना,उल्टी होना,वजन बढ़ जाना,खुद पर नियंत्रण न होना,जल्दीबाजी में कार्य करना,शरीर में पानी की कमी,चिंतित रहना,बदबूदार साँस,सीने में जलन आदि भष्मक रोग के प्रमुख कारण हैं।

कारण :- जठराग्नि तीक्ष्ण हो जाना,पित्त अत्यधिक बढ़ जाने के कारण,शरीर के धातु का कुपित हो जाना,अत्यधिक तनावग्रस्त जीवन आदि भष्मक रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) पके हुए मीठे आम के रस में 30 ग्राम घी एवं 70 ग्राम खाण्ड मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(2) भष्मक रोग में पहले एनीमा द्वारा पेट साफ करना चाहिए और इसके बाद दिन में दो बार कटिस्नान करना चाहिए।

(3) चिरचिटा के बीजों को दूध से बने खीर में मिलाकर खाने से भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(4) नारियल की जड़ का चूर्ण दूध के साथ लेने से अग्निमांद्य होकर भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(5) काली मिर्च पीसकर एक - एक ग्राम की मात्रा सुबह - शाम पानी के साथ सेवन करने से भष्मक रोग दूर हो जाता है।

(6) सहजन के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह - शाम पीने से भष्मक रोग दूर हो जाता है।

(7) छोटी इलायची का चूर्ण एक ग्राम की चौथाई भाग सुबह - शाम सेवन करने से भष्मक रोग दूर हो जाता है।

(8) बेर के बीजों का चूर्ण दो - दो ग्राम की मात्रा सुबह - शाम ताजे जल से नियमित सेवन करने से भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(9) चित्रक एवं चीता की जड़ का रस दो ग्राम की मात्रा सुबह - शाम छाछ के साथ सेवन करने से भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(10) गूलर के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें और सुबह - शाम ताजे जल से सेवन करने से भष्मक रोग ठीक हो जाता है।

(11) भष्मक रोगी को आसमानी रंग की बोतल में सूर्य तप्त जल को 60 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 7 बार सेवन करने से रोगी ठीक हो जाता है।

(12) भष्मक रोग से पीड़ित मरीज कि कमर पर भींगी पट्टी लगाकर कुछ समय रखना चाहिए।ऐसा करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

(12) अपामार्ग के बीजों का चूर्ण और समान भाग मिश्री मिलाकर सुबह - शाम सेवन करने से भष्मक रोग ठीक हो जाता है।


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