jaundice disease

पीलिया,कामला या पाण्डु रोग :-मानव शरीर के रक्त में लाल रक्त कण पाए जाते हैं,जिनकी आयु 120 दिनों की होती है। तत्पश्चात लाल रक्त कण नष्ट होकर बिलीरुबिन में परिवर्तित हो जाता है।चूँकि शरीर के अंगों द्वारा इसे शरीर के बाहर उत्सर्जी अंगों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। ऐसी स्थिति होती है जब इन पदार्थों का भलीभांति प्रकार से शरीर से बाहर नहीं निकलना और बिलीरुबिन का रक्त में अधिक हो जाना ही पीलिया का मुख्य कारण है।बिलीरुबिन के बढ़ जाने से शरीर के अंगों में पीलापन आने के कारण ही इस बीमारी का नाम पीलिया है।सर्वप्रथम यह बीमारी पाण्डु को हुआ था,इसलिए इसे पाण्डु रोग भी कहा जाता है।

कारण एवं लक्षण:-(1)वातज -वादी अन्न आदि के सेवन करने एवं उपवास आदि करने के कारण वायु कुपित होने 

                             से कष्टदायक पीलिया हो जाती है।इसमें शरीर का रंग पीला,रुखा एवं कला रंग मिला सा हो 

                             जाता है।शरीर में दर्द होना,सुई चुभने जैसा दर्द होना,मॉल का सूख जाना,सूजन,कमजोरी एवं 

                              अफारा होना मुख्य लक्षण हैं। 

                          (2)पित्तज -पित्तकारक आहार -विहार से पित्त कुपित होने से रक्तादि धातुओं के दूषित होने से 

                               पाण्डु रोग हो जाता हैं।इसमें नेत्रों में पीलापन लिए हुए ललाई रहती हैं। इसमें रोगी का रंग 

                               पीला,ज्वर,दाह,वमन,मूर्छा और प्यास तथा मल-मूत्र का पीला होना,मुँह का कड़ुआ 

                               रहना,भूख न लगना,खाने की इच्छा न होना,खट्टी डकारें आना,मल पतला होना,बदन से 

                               बदबू आना,आँखों के सामने अँधेरा छाना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। 

                           (3)कफज-क:फकारी पदार्थों के सेवन से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को दूषित कर कफ पीलिया या पाण्डु 

                रोग पैदा करता है।भारीपन,तन्द्रा,वमन,सफ़ेद रंग होना,लार गिरना,रोएँ खड़े होना,थकान मालूम 

                होना,बेहोशी,भ्रम,आलस्य,अरूचि,गला बैठना,आवाज रुकना,मूत्र,नेत्र और मल सफ़ेद होना,कड़ुवे,खट्टे 

                पदार्थों का अच्छा लगना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। 

(4)सन्निपात:-यह सब प्रकार के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य को होता है।इसमें तीन दोषों का कुपित होना अत्यंत 

                  असह्य घोर कष्टप्रद होता है।इनमें तन्द्रा,आलस्य,सूजन,वमन,खाँसी,पतले दस्त,ज्वर,मोह,प्यास,ग्लानि 

                  और इन्द्रियों की शक्ति का नाश आदि लक्षण होते हैं।

(5)मिट्टी खाने से पाण्डु:-मिट्टी खाने से उत्पन्न पाण्डु रोग में वाट,पित्त और कफ दूषित हो जाता है कसैली मिट्टी से 

                    वायु कुपित होती है।खारी मिट्टी से पित्त और मीठी मिट्टी से कफ कुपित हो जाती है।पेट में 

                     मिट्टी जाकर रसादि धातुओं को रुखा कर देती है।फलस्वरूप व्यक्ति का शरीर रुखा हो जाता 

                      है,शरीर की कांति और ओज क्षीण हो जाती है तथा पाण्डु रोग हो जाता है। 

उपचार:-(1)फूल फिटकरी २० ग्राम चूर्ण लेकर उसकी 21 पुड़िया बना लें और एक पुड़िया की आधी दवा सुबह 

                 मलाई निकले दही में चीनी मिलाकर ख़ाली पेट और इसी प्रकार रात्रि में सोते समय आधी बची पुड़िया 

                 खा लें।इस प्रकार २१ दिनों तक लगातार दवा खाने से पीलिया रोग सही हो जाता है।यह अचूक एवं 

                 अनुभूत औषधि है।(नोट ५० ग्राम फिटकरी गर्म तवा पर डालें और पानी सुख जाने पर पीस कर रख लें)

              (2)घी के साथ वंग भस्म की चने की दाल के बराबर मात्रा मिलाकर सेवन करने से पीलिया या पाण्डु रोग 

                  का समूल नाश हो जाता है।

               (3)पीपल की जड़  को पानी में भिंगों कर रखें और उसमें पीसी हुई काली मिर्च और कला नमक एवं 

                    निम्बू का रस मिलाकर पीने से पाण्डु रोग नष्ट हो जाता है। 

               (4)आक के पौधे की जड़ दो ग्राम की मात्रा लेकर पीस लें और उसमें थोड़ी सी शहद मिला कर खाने से 

                    पाण्डु रोग का समूल नाश हो जाता है। 

                (5)आंवला,सोंठ,हल्दी,काली मिर्च और लौह भस्म समान भाग लेकर चूर्ण बना लें और सुबह -शाम 1.5 

                     ग्राम की खाने से पीलिया रोग का नाश हो जाता है।  

 

 


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