achondroplasia disease

बौनापन या कद छोटापन की बीमारी :- कद का छोटापन आज के वर्तमान समय में एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में समाज में परिलक्षित होता है। बाल्यावस्था में एफजीएफआर - 3 नामक जीन में परिवर्तन से हड्डियों का बढ़ना अवरुद्ध हो जाने के कारण बौनापन की स्थिति बन जाती है।  कद के छोटेपन से पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही आपने - आप में हीन भावना के शिकार होकर अत्यंत दुःखी महसूस करते हैं। कद छोटा होना या लम्बाई कम होने से मनुष्य अपना आत्म विश्वास खो देता है और अपने - आप को कमजोर समझने लगता है और किसी भी कार्य में सम्पूर्ण रूप से अपने आपको नहीं लगा पाता है ,नतीजन सफलता नहीं प्राप्त कर पाता है। सामान्यतः 4 फ़ीट 10 इंच एवं इससे कम ऊंचाई वाले को बौनापन की श्रेणी में रखा गया है। बौनापन में शरीर का सामान्य से कम आकार का होना,छोटे - छोटे हाथ पैरों का होना,सिर का आकार शरीर की अपेक्षा बड़ा एवं चौड़ा तथा नाक का चपटा होना आदि। वास्तव में कद का छोटापन होना एक गंभीर स्थिति है,जिससे प्रभावित व्यक्ति हर पल घुटता रहता है और अपने आप को कोसता रहता है ; किन्तु कद किसी भी प्रतिभा के लिए मोहताज नहीं होता और कद का छोटा व्यक्ति भी सब कुछ कर सकने में समर्थ हो पाता है। फिर भी आयुर्वेदिक स्वामी का कुछ सार्थक प्रयास है कि छोटे कद का व्यक्ति कुछ आयुर्वेदिक प्रयोगों के द्वारा आपने कद में कुछ इजाफा कर पाने में समर्थ हो सकता है। 

लक्षण : - औसत आकार से कद कम होना,शारीरिक अंगों में असमानता,छोटा ढांचा,छोटी बाजुएं एवं टांग,चौड़ा और फूली हुई छाती,पिचके गाल,उम्र के हिसाब से लम्बाई कम होना,पीठ का झुकना,युवावस्था के लक्षणों में देरी,धीमी वृद्धि आदि बौनापन या कद के छोटेपन के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- माता - पिता का कद छोटा होना,आनुवंशिक कारण,टर्नर सिंड्रोम,ग्रोथ हार्मोन की कमी,पोषण की कमी,क्रोमोजोम का गायब होना,आंशिक या पूर्ण रूप से जीन की समस्याएं,ख़राब पोषण, संतुलित खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना आदि बौनापन या कद छोटापैन के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1)अश्वगंधा पाउडर दो चम्मच नियमित रूप से दूध के साथ सेवन करने से कद बढ़ना शुरू हो जाता है और साथ ही हड्डियां भी मजबूत हो जाती है। 

(2) मछली,दाल,अंडा,सोया मिल्क,सोयाबीन,मशरूम और बादाम आदि के नियमित सेवन से कद का छोटापन दूर हो जाता है 

(3) सूखी नागौरी, अश्वगंधा की जड़ समान भाग पीसकर चूर्ण बना लें और समान भाग खांड मिलाकर रख लें। रात में सोते समय प्रतिदिन दो चम्मच गाय के दूध के साथ सेवन करने से कद बढ़ जाती है। 

(4) दो ग्राम अश्वगंधा चूर्ण,दो ग्राम काला तिल,दो से चार खजूर 10 से 20 ग्राम घी के साथ एक महीने तक खाने से कद बढ़ना शुरू हो जाता है। 

(5) विटामिन ए युक्त आहार जैसे पालक,गाजर चुकुन्दर,दूध,टमाटर आदि के नियमित सेवन से कद का बढ़ना शुरू हो जाता है। 

(6) दो - तीन काली मिर्च,20 ग्राम मक्खन के साथ प्रतिदिन सेवन करने से कद का बढ़ना शुरू हो जाता है। 

(7) खनिज से भरपूर आहार जैसे पालक,हरी बीन्स,ब्रोकली,गोभी कद्दू,गाजर,दाल,मूंगफली,केले,अंगूर और आड़ू आदि के सेवन से कद बढ़ जाता है। 

(8) नियमित रूप से संतुलित खाद्य पदार्थों के सेवन से कुपोषण के दूर हो जाने से कद का बढ़ना शुरू हो जाता है। 

प्राणायाम एवं योग : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका आदि। 

 


cradle cap disease

पपड़ी या क्रैडल कैप रोग :- क्रैडल कैप नवजात शिशुओं में पायी जाने वाली एक सामान्य बीमारी है,जो सिर की त्वचा में स्थित सिबेशियम ग्रंथियों द्वारा उत्पादित तेल जैसी चिकनी पदार्थों के स्राव के कारण बनता है।इसे सेबोरिक डर्मेटाइटिस के नाम से भी जाना जाता है।यह सिर के अलावा चेहरे,गर्दन एवं घुटनों के पास दिखाई देता है।यह बिना चिकित्सा के भी कुछ दिनों में ठीक हो जाता है;किन्तु अधिक दिनों तक ठीक न होने पर चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

लक्षण :- सिर पर पपड़ी,खोपड़ी पर चिकने पीले,लाल एवं भूरे रंग की पपड़ी,परतदार पपड़ी का बनना खुजली होना,सख्त पपड़ी का बन जान आदि क्रैडल कैप या पपड़ी रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- त्वचा द्वारा स्रावित तेल जैसा पदार्थ,सिबेशियम ग्रंथियां,एलर्जी,बैक्टीरियल संक्रमण,सिबेशियम ग्रंथियों का अधिक क्रियाशील होना आदि क्रैडल कैप या पपड़ी रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार : - (1) पेट्रोलियम जेली द्वारा पपड़ी को मुलायम कर साफ करने से सिर पर बनी हुई पपड़ी या क्रैडल कैप दूर हो जाता है।

(2) सिर को बेसन एवं दही के साथ मिलाकर धोने से सिर पर क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।

(3) सिर की त्वचा पर बादाम तेल की मालिश करने से क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।

(4) मुल्तानी मिट्टी को पानी में भिंगो कर सिर को धोने से क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।

(5) सिर की त्वचा में जैतून के तेल की मालिश से क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।

(6) सिर पर एलोवेरा जेल की मालिश से क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।

(7) सरसों तेल की मालिश से भी क्रैडल कैप या पपड़ी दूर हो जाती है।


bed wetting disease

बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना :-बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना एक आम समस्या है।रात्रि में बच्चे सोते समय गहरी नींद में,होने,भयानक डरावना सपना देखने,मानसिक स्ट्रेस,मूत्राशय की मांसपेशियों में कमजोरी आ जाने के कारण,मूत्राशय का आकार छोटा होने की वजह से बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं।यह समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में ज्यादा पाई जाती है जो बढ़ती उम्र के साथ अपने -आप ठीक हो जाती है।कभी -कभी ठीक नहीं होना एक गंभीर बीमारी का भी संकेत हो सकता है।

लक्षण :- पेशाब के दौरान दर्द,बार -बार पेशाब आना,बदबूदार पेशाब,सोते हुए पेशाब करना आदि बिस्तर पर पेशाब करने के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- मूत्राशय का छोटा होना,किडनी या मूत्राशय में इन्फेक्शन होना,पेशाब ज्यादा देर तक न रोक पाना,आनुवंशिक कारण,दवाओं का प्रभाव,बार -बार बुखार,कम खाना,उल्टी,ज्यादा सोना,पेट में कीड़ा होना,कब्ज,डर या तनाव,कम उम्र का होना,ब्लैडर की कमजोरी,मूत्र मार्ग में संक्रमण,हार्मोन का असंतुलन,इमोशनल एवं मेन्टल स्ट्रेस,यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन,किसी बीमारी के कारण,गहरी नींद में होना आदि बिस्तर पर पेशाब करने के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) थोड़ा सा गुड़ एवं तिल दोनों को मिलाकर बच्चों को खिलाने से बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना ठीक हो जाता है।

              (2) पांच -छह मुनक्का बीज निकालकर प्रतिदिन बच्चों को खिलाने से बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है।

              (3) एक कटोरी में पानी डालकर उसमें थोड़े से किशमिश डाल दें और सुबह खाली पेट बच्चों को खिलाने से बिस्तर पर पेशाब 

                    करना ठीक हो जाता है।

              (4) गुड़ के साथ एक चम्मच अजवाइन चूर्ण को मिलाकर प्रतिदिन बच्चों को खिलाने से बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है।

              (5) जामुन की गुठलियों को दूध में सुखाकर चूर्ण की तरह पीस लें और रोजाना एक चम्मच की मात्रा पानी के साथ खिलाने से बच्चों 

                    का बिस्तर पर पेशाब करना ठीक हो जाता है।

                (6) छुहारे को दूध में उबालकर प्रतिदिन खिलाने से बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है।

                (7) धनिये के बीजों को भूरा होने तक तवे पर भूनें और उसमें एक चम्मच अनार के फूल,तिल एवं बबूल की गोंद मिलाकर मिश्रण 

                     बना कर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सोते समय आधा -एक चम्मच खिलाने से बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना दूर हो 

                     जाता है।


abdominal gas

पेट में गैस:- बच्चों के पेट में गैस बनना एक आम समस्या है।बच्चों की पाचन शक्ति ज्यादा मजबूत नहीं होती है और वे दूध पीते समय ज्यादा दूध पी लेते हैं और खाना खाते समय ज्यादा खाना खा लेते हैं।फलस्वरूप भोजन ठीक तरह से हजम नहीं होने से उल्टी एवं दस्त की स्थिति बन जाती है।पेट में गैस बन जाने से पेट में दर्द ,मरोड़ आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

लक्षण:- पेट में गैस,पेट का फुला होना,मंदाग्नि,अरुचि,कब्ज,दर्द,मरोड़,चिड़चिड़ा होना,दूध पीना छोड़ देना,साँस लेने में परेशानी,उल्टी आदि प्रमुख लक्षण हैं।

उपचार:- (1) अदरक का रस एक चम्मच,नीम्बू का रस आधा चम्मच और शहद को डालकर खिलाने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है।

             (2) मूली और कला नमक मिलाकर चटनी बनाकर खाने से गैस,अरुचि,भोजन का न पचना आदि ठीक हो जाता है।

             (3) बेल के पत्ते 4 और हरसिंगार की पत्तियां 4 लेकर एक कप पानी में डालकर उबालें और उसमें कला नमक मिलाकर पीने से पेट की गैस तत्क्षण दूर हो जाती है।

             (4) जीरा,बच.सोंठ और भुनी हुई हींग को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें और चार ग्राम की मात्रा                       गुनगुने जल के साथ सेवन से पेट की गैस में बहुत आराम हो जाता है।

            (5) अजवाइन और काला नमक को छाछ के साथ मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस में आराम                    होता है। 


mouth-sores

मुख व्रण या मुँह का छाला रोग:-बच्चों में मुख व्रण या छाला रोग बहुत ही कष्टप्रदायक रोग है।यह कब्ज और पेट की गर्मी के कारण होते हैं। इसमें मुँह के अंदर होठों,जीभ या मसूड़ों पर सफ़ेद रंग का छोटे आकार का फोड़ा हो जाता है,जो चारों ओर लालिमा युक्त जलन पैदा करनेवाला होता है।बच्चा अच्छी तरह से न तो बोल पाता है और न ही खा पाता है ,जो बच्चों के लिए बहुत ही दर्दनाक और परेशानियों वाला होता है।

लक्षण:- मुँह में दर्द,जलन होना,बोलने,खाने -पीने में परेशानी,दाँतों को साफ करते समय फोड़े से खून आना,भूख कम हो जाना आदि मुख व्रण के प्रमुख लक्षण हैं।

उपचार:- (1) बच्चों को दूध पिलाते समय पहले स्तन के निप्पल को अच्छी प्रकार गर्म जल से धोकर एवं उसपर 

                  शहद लगाकर स्तनपान करने से मुख व्रण या छाले बहुत जल्द ठीक हो जाते हैं।

             (2) एलोवेरा जेल को मुख के छाले पर लगाने से मुख व्रण ठीक हो जाते हैं।

             (3) तुसी के पत्तों को पीस कर लगाने से या खाने से भी मुख के छाले ठीक हो जाते हैं।

             (4) दही में शहद मिलकर खिलाने से मुँह के छाले दूर होते हैं।

             (5) छाछ के सेवन से भी मुँह के छाले ठीक हो जाते है ,क्योंकि इसमें लैक्टिक एसिड होता है जो 

                 जीवाणुओं को रोकने में मदद करता है।

             (6) मुँह के छाले पर देशी घी लगाने से भी बहुत जल्द आराम होता है।

             (7)शहद और हल्दी मिलाकरलगाने से मुँह के छाले जल्द ठीक हो जाते हैं।

             (8) मुँह के छाले पर नारियल तेल लगाने और नारियल के दूध से गरारे करने से छाले बहुत जल्द आराम 

                  हो जाते हैं।


child weeping

बच्चों का बहुत रोना :-सभी शिशु रोते हैं ,यह बिलकुल सामान्य बात है।अधिकांश शिशु प्रत्येक दिन कुल एक घंटे से लेकर तीन घंटे तक के समय के लिए रोते हैं ;किन्तु जब शिशु ज्यादा रोये और चुप नहीं हो तो यह समझना चाहिए कि बच्चों को कुछ परेशानी है,शिशु तो बता नहीं सकता।वैसी स्थिति में जिस अंग को बालक बार -बार स्पर्श करे अथवा जिस स्थान को दबाने से बच्चा ज्यादा रोये ,वही स्थान पीड़ा का हो सकता है ,यह समझना चाहिए और उसका समुचित उपचार करना चाहिए। 

उपचार :-पीपर और    त्रिफला का चूर्ण घी तथा शहद (असमान भाग ) के साथ चटाने से बच्चों का रोना और चौंकना आराम हो जाता है । 


sukha rog

सूखा रोग :- सूखा रोग बच्चों का एक गंभीर रोग है ,जो विटामिन डी एवं कैल्सियम की कमी के कारण होता है। सूखा रोग विटामिन डी की कमी के अतिरिक्त कुपोषण एवं संतुलित आहार न मिल पाना भी एक प्रमुख कारण है। वास्तव में सूखा रोग अस्थियों का रोग है ,जो अधिकांशतः बच्चों में पाया जाता है। इस बीमारी में बच्चों की हड्डियाँ नरम एवं कमजोर हो जाती हैं। परिणामस्वरूप अस्थि विकार के कारण पैरों में टेढ़ापन एवं मेरुदंड में मोड़ आ जाता है। बच्चों के शरीर में हड्डयों का ढांचा ही नजर आता है और शरीर एकदम दुबला - पतला कृशकाय नजर आता है। 

लक्षण :- कंकाल विकृति,अस्थि भंगुरता,विकास में बाधा,हड्डियों का दर्द,पेशीय कमजोरी आदि सूखा रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- विटामिन डी की कमी,कैल्सियम की कमी,पाचन तंत्र में विकार,माता का गलत खान - पान,अधिक चीनी का सेवन,फास्फोरस की कमी,संतुलित एवं पौष्टिक भोजन न मिलना आदि सूखा रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) बिदारिकाण्ड ,गेहूँ ,और जौ का आटा घी में मिलाकर खिलाना चाहिए और दूध -मिश्री या शहद -दूध पिलाना चाहिए ।

 (2) सुबह - शाम दो -तीन चम्मच पपीते का रस पिलाने से सूखा रोग धीरे - धीरे ठीक हो जाता है। 

(3) आधा चम्मच सेब के सिरके में एक चम्मच जामुन का रस मिलकर दिन में तीन बार पिलाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है। 

(4) छोटी पीपल को सौंफ के अर्क में घिसकर चटाने से सूखा रोग दूर हो जाता है। 

(5) पीपरामूल,अजवाइन,चीता,यवक्षार एवं छोटी पीपल 5 - 5 ग्राम की मात्रा लेकर चूर्ण बनाकर दही के पानी के साथ तीन रत्ती पिलाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है। 

(6) दो रत्ती अपामार्ग के क्षार के साथ में दही मिलकर खिलाने से सूखा रोग दूर हो जाता है। 

(7) एक चम्मच मकोय का रस एवं उसमें एक रत्ती कपूर मिलाकर सुबह - शाम चटाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है।    


pasli harfa

पसली ( पांजारा ) डब्बा और हरफा रोग : - पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग बच्चों को होने वाली एक अत्यंत गंभीर रोग है,जो मौसम के बदलाव या परिवर्तन के कारण होता है। अधिकतर यह रोग सर्दी के मौसम में होता है; किन्तु अन्य मौसम में भी हो सकता है। इस बीमारी में बच्चा दूध पीना बंद कर देता है और बहुत ज्यादा रोता है। पसली चलना या हांफना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है।  गंभीर स्थिति हो जाने पर निमोनिया का हो जाना इसकी अगली स्थिति होती है ,जो जानलेवा साबित हो सकती है। अतः प्रारंभिक स्थिति में उपचार की आवश्यकता होती है जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। 

लक्षण :- सर्दी - जुकाम,नाक से पानी चलना,छींक आना,साँस की गति तेज होना,बहुत सुस्त हो जाना,बार - बार रोना,बुखार,खांसी,पसलियां चलना,साँस लेने में कठिनाई आदि पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- सर्दी - जुकाम एवं खांसी,श्वसन तंत्र में संक्रमण,मौसम में परिवर्तन,कमजोर इम्यून सिस्टम,माता का गलत खान - पान आदि पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग के मुख्य कारण है। 

उपचार :-(1) जब बालक का पाखाना और पेशाब बंद जाये ,बुखार तेज हो और सांस चले तो गोंद बबूलऔर मुसब्बर समान भाग घी कुवार के रस में मिलाकर पेट पर गुनगुना लेप करना चाहिए ।   

(2) कबीला -८ भाग और हींग -१ भाग दोनोंको बारीक पीसकर दही के तोड़ के साथ गोली मिर्च के समान बना कर गर्म जल के साथ देने से रोग नष्ट होता है ।

 (3) पीपली चूर्ण थोड़ा सा शहद के साथ चटाने एवं पसलियों पर लेप करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग  ठीक हो जाता है। 

(4) बच्चे के उदर पर एरंड के तेल की मालिश करें और बकायन के पत्ते को हल्का सा गरम करके बांधने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(5) सरसों के तेल को गर्म करें और उसमें थोड़ा सा नमक डालकर उतार लें और ठंडा करके एक शीशी में रख लें। पसली की सिंकाई एवं मालिश करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग दूर हो जाता है। 

(6) मुनक्का एक दाना,आधा रत्ती दालचीनी पाउडर,एवं काकड़ासिंगी तीन रत्ती शहद के साथ मिलाकर बच्चों को चाटने से खांसी ,कफ व पसली चलना ठीक हो जाता है। 

(7) बेल की जड़, छाल एवं पत्ते,त्रिफला,नागरमोथा,एवं कटेरी 5 - 5 ग्राम की मात्रा लेकर 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर एक चम्मच 15 - 15  मिनट के अंतराल पर बच्चों को पिलाने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(8) देशी घी में अजवाइन को हल्का गर्म कर उससे बच्चों की छाती पर मालिश करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(9) दूध एवं फलों का रस मिलाकर पिलाने से भी पसली ( पांजरा ) डब्बा एवं हरफा रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(10) बच्चों की पेडू पर मिटटी की पट्टी करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग दूर हो जाता है। 


afra vayu

अफरा एवं वायु रोग : - अफरा एवं वायु रोग बच्चों का एक अत्यंत कष्ट प्रदायक रोग है ,जो वायु के अधिक बन जाने से उदर फूल जाता है एवं साँस लेने में परेशानी का अनुभव करने लगता है। यह पेट में वायु यानि गैस रुक जाने,न निकल पाने की वजह से होता है। वास्तव में अफरा एवं वायु बच्चों के लिए आंतों एवं अमाशय में गैस भर जाने की स्थिति में पेट फूल जाता है और अफरा जैसी स्थिति बन जाती है। कभी - कभी तो बच्चों के लिए यह बीमारी जानलेवा साबित होती है ;क्योंकि बच्चा अपनी परेशानी बता पाने में असमर्थ होता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है। 
लक्षण : - पेट में दर्द,हृदय एवं गले में दर्द,अरुचि,अत्यधिक प्यास,होंठ सूखना, पेट में आवाज होना,बेचैनी,पेट का फूलना,गैस का न निकलना,बार - बार पेशाब आना एवं कष्ट होना आदि अफरा एवं वायु रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 
कारण : - अस्वस्थ आहार,अधिक मात्रा में दूध का पी लेना,माता द्वारा बासी भोजन खाना यानि माता का गलत खान - पान,पाचन मार्ग में जीवाणुओं का संक्रमण आदि अफरा एवं वायु रोग के मुख्य कारण हैं। 
उपचार : - (1) सेंधा नमक,सोंठ,हींग एवं भारंगी का चूर्ण घी के साथ चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(2) एक चम्मच अजवाइन पानी में डालकर गर्म करें और एक चौथाई रहने पर छानकर पिलाने से अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(3) हरड़ चूर्ण थोड़ा सा लेकर उसे शहद के साथ चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(4) काली मिर्च,सुखी अदरक एवं इलायची का चूर्ण बनाकर 1 /4 चौथाई चम्मच बच्चों को सेवन कराने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(5) अजवाइन,जीरा,छोटी हरड़ एवं काला नमक सबका चूर्ण बनाकर थोड़ा सा बच्चों को खिलाएं और पानी पिलाने से अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(6) नारियल पानी पिलाने से भी अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(7) सेब का सिरका आधा चम्मच पानी में मिलाकर पिलाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(8) भुनी हुई हींग थोड़ा सा और काला नमक मिलाकर चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 

mahapadmak

महापद्मक रोग :- महापद्मक बालकों को होनेवाला एक गंभीर रोग है,जो मूत्राशय एवं मस्तक में होता है। यह एक प्रकार का विसर्प रोग है,जिसमें विषाणु के संक्रमण से त्वचा की ऊपरी परत के द्वारा अपना स्रोत बना देता है। इस रोग में ज्वर इतना तीव्र हो जाता है कि मरीज की संज्ञा नष्ट हो जाती है और पीड़ित अत्यंत बेचैन हो जाता है। शरीर पर दाने लाल मिश्रित बुझे हुए अंगारे के समान,तो किसी में पीली एवं सफ़ेद फुंसियां शोथ युक्त होती है। इसमें चमड़े का फटना,पकना,ग्लानि,अरुचि आदि उपद्रव होते हैं। 

लक्षण : - अत्यधिक लाली युक्त त्वचा,सूजन,जलन,त्वचा पर छाले,तीव्र दर्द,अत्यधिक बुखार,सिरदर्द,जी मिचलाना,त्वचा की चमड़ी के नीचे फोड़ा,बेचैनी, बच्चों का लगातार रोना,शरीर व चेहरे पर छोटे -छोटे दाने,बच्चे की साँस असामान्य होना ,बच्चों का दूध न पीना आदि महापद्मक रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - विषाणु का संक्रमण,सेप्टीसीमिया कीटाणु महापद्मक रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) 10 ग्राम चन्दन पाउडर,घी एवं कपूर 25 - 25 ग्राम सबको खरल कर दिन में तीन बार प्रभावित जगहों पर मालिश करने से महापद्मक रोग ठीक हो जाता है। 

(2) मुलहठी,खस,पद्माख समान भाग लेकर जल के साथ पीसकर दिन में तीन बार लेप करने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(3) बरगद,पीपल,गूलर,शिरीष एवं पाकड़ की छाल 10 - 10 ग्राम पीस कर दिन में तीन बार लेप करने से महापद्मक रोग ठीक हो जाता है। 

(4) हल्दी,दारु हल्दी,लाल चन्दन,शिरीष की छाल, छोटी इलायची,मुलहठी 5 - 5 ग्राम लेकर जल के साथ पीस कर उसमें घी मिलाकर लगाने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(5) नीम,बावची,एरंड के बीज एवं जड़,अंकोल समान भाग लेकर पीसकर छान लें और बकरी के मूत्र में खरल करके लेप करने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(6) त्रिफला,चिरायता,नीम के पत्ते,बांस के पत्ते, कुटकी,परबल के पत्ते,श्वेत चन्दन  2 - 2 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर पिलाने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(7) बड़,गूलर ,पीपर ,पाकड़ ,वेंत ,जामुन ,मुलेठी ,मजीठ ,चन्दन खाश और पद्माख को बारीक पीसकर लेप करने से रोग नष्ट हो जाता है 

 बच्चों का लगातार रोना,शरीर व चेहरे पर छोटे -छोटे दाने,बच्चे की साँस असामान्य होना ,बच्चों का दूध न पीना आदि महापद्मक बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। 

 


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