syphilis disease
उपदंश या सिफलिस :-उपदंश सिफलिस ट्रीपोनीमा पैलिडम बैक्टीरिआ के द्वारा फैलनेवाला एक संक्रामक बीमारी है,जो संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने पर फैलता है।प्रदुष्ट स्त्री के साथ सम्भोग करने पर दश दिन से दश सप्ताह के अंदर शिश्न पर एक छोटे बटन के आकार का कठिन,श्रावयुक्त वेदनारहित शोथ हो जाता है। इस बीमारी में योनि,गुदा,मलाशय,होंठ और मुँह में छाले भी होने की सम्भावना अधिक होती है। इसमें जननांगों,मलाशय,मुँह या त्वचा की ऊपरी सतह पर दर्द रहित छाला संक्रमण का प्रथम संकेत है।यह बीमारी चार चरणों में विभाजित की जा सकती है -प्राथमिक ,माध्यमिक अव्याप्त या छिपा हुआ और तृतीयक।प्रथम दो चरणों के समय यह संक्रामक दौर में होता है ;किन्तु छिपी हुई अवस्था में ही यह सक्रिय रहता है परन्तु इसका लक्षण नहीं दिखाई पड़ता है।यह छिपी हुई अवस्था दूसरों के लिए संक्रामक नहीं होता।तृतीयक अवस्था स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक होती है।इस अवस्था में शिश्न पर पाए जाने वाला व्रण की उचित चिकित्सा न होने पर सम्पूर्ण लिंग सड़-गलकर गिर जाता है और बिना शिश्न के अंडकोष रह जाता है,जो व्यक्ति के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्णऔर भयानक स्थिति कह सकते हैं।
लक्षण :-प्राथमिक -पीड़ारहित छोटे छाले।माध्यमिक -बिना खुजली वाले चकत्ते,लाल,खुरदरे,मुँह,गुदा एवं जननांगों में मस्से जैसे छाले,मांसपेशियों में दर्द,ज्वर,गले में खराश,लसिका ग्रंथियों में सूजन,बाल झड़ना,वजन कम होना,सिरदर्द आदि।अव्यक्त या छिपा हुआ -यह अवस्था कई वर्षों तक रह सकता हैं।तृतीयक - अंधापन,बहरापन,मानसिक बीमारी,याददास्त क्षीण या ह्रास,दिल की बीमारी,न्यूरोसिफलिस,जो मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में होने वाला संक्रमण,स्ट्रोक या मेनिंजाइटिस आदि उपदंश के मुख्य लक्षण हैं।
कारण :-बिना सुरक्षा के यौन सम्बन्ध बनाना,मुखमैथुन या ओरल सेक्स करना,ऋतुकाल में सम्भोग करना,गर्भावस्था में माँ के गर्भ से या प्रसव के दौरान शिशु में आना,एक से अधिक व्यक्तियों के साथ सेक्स सम्बन्ध रखना, पुरुष का पुरुष के साथ सम्बन्ध रखना,वेश्या गमन करना आदि कारणों से उपदंश या सिफलिस की बीमारी होने की सम्भावना ज्यादा रहती हैं।
उपचार :- (1) अमलताश,देशी नीम,हरड़,बहेड़ा,देशी आँवला और चिरायता से काढ़ा बनाकर उसमें खैरसार व विजयसार मिलाकर पीने से उपदंश की बीमारी का नाश हो जाता हैं।
(2)नीम की पत्तियाँ पानी में उबालकर घाव धोने से उपदंश की बीमारी में आराम होता हैं।
(3)15-25 ग्राम अरंडी के तेल को गिलोय के काढ़े में मिलाकर लगाने से उपदंश की बीमारी दूर हो जाती हैं।
(4)त्रिफला के काढ़े से उपदंश के घावों को धोने से ठीक हो जाता हैं।
(5)त्रिफला की राख में शहद मिलाकर लगाने से उपदंश की बीमारी नष्ट हो जाती हैं।
(6) रसकपूर,सफ़ेद कत्था,मुर्दा शंख,शंख जीरा तथा सुपारी की राख या त्रिफला की राख को मिलाकर मलहम बना लगाने से उपदंश की बीमारी दूर हो जाती हैं।अनुभूत औषधि हैं।
(7)कचनार की छाल,इन्द्रायण की जड़,बबूल की फली,जड़ तथा पत्तों सहित छोटो कटेरी तथा ईख का गुड़ २५० ग्राम;सबको चार लीटर पानी में डालकर मिट्टी की हांड़ी में पकाएं ,जब चौथाई रह जाए तो छान लें और इसे आठ खुराक के रूप सुबह -शाम सेवन करने से उपदंश की बीमारी समूल नष्ट हो जाती हैं।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि हैं।