सन्निपात ज्वर :- सन्निपात ज्वर एक अत्यंत गंभीर एवं जानलेवा ज्वर है,जिसमें कफ,वात और पित्त तीनों एक साथ कुपित हो जाता है।इसलिए सन्निपात ज्वर को कफ - वात - पित्त ज्वर के नाम से भी जाना जाता है।सन्निपात ज्वर की तीव्रता बहुत अधिक होने पर रोगी बेहोश भी हो जाता है और मरीज अपना सुध - बुध खो देता है एवं उसे कुछ भी याद नहीं रहता।वह जोर -जोर से बड़बड़ाने लगता है।यदि समय रहते उपचार न किये जाने पर जानलेवा साबित हो सकता है।सन्निपात ज्वर की अवधि 3 दिन से 21 दिन मानी गई है।सन्निपात ज्वर में बढ़े हुए दोष को घटाकर और घटे हुए दोष को बढ़ाकर कफ के स्थान में सन्निपात रोग की चिकित्सा आरम्भ करनी चाहिए।इस ज्वर में सर्वप्रथम आम और कफ का इलाज करना चाहिए क्योंकि कफ के क्षय होने एवं सुख जाने पर वात एवं पित्त अपने आप ही शांत हो जाते हैं।चूँकि सन्निपात ज्वर प्राणनाशक होता है,इसलिए यश ,कीर्ति एवं पुण्य प्राप्त करने की अभिलाषा रखने वाले वैद्य को सर्वप्रथम कफ को ही सुखाने का प्रयत्न करना चाहिए।कफ के बाद वात का शमन करना चाहिए।स्मरण रहे कि यदि पित्त बहुत बढ़ा हुआ हो तो उसे भी ठीक करने का प्रबंध कर किन्तु कफ और वात का शमन अत्यंत आवश्यक है।सबसे स्मरणीय तथ्य यह है कि पित्त को किसी भी सूरत में नष्ट नहीं होने देना चाहिए ; क्योंकि पित्त के शांत होते ही कफ और वायु मरीज की जान ले लेता है।सन्निपात ज्वर में सर्वप्रथम नियम पूर्वक रोगी को शरीर की क्षमता के अनुसार लंघन अथवा उपवास कराना चाहिए ,जिसकी सामान्य अवधि सात दिनों की है ;किन्तु दोषों की प्रबलता को ध्यान रखकर और दोषों के शांत होने के लक्षण को देखकर इसकी अवधि ज्यादा भी हो सकती है किन्तु शरीर में सहन करने की शक्ति हो यानि रोगी के बल की रक्षा का ध्यान भी रखना चाहिए।सन्निपत ज्वर में कफ से भरे हुए रोगी को पथ्य देता है वह उसका शत्रु समझा जाता है।बिना कफ के शमन हुए पथ्य कदापि नहीं देना चाहिए।सन्निपात ज्वर में उत्तम लंघन किये हुए रोगी को पहले कवल ( कुल्ला या गरारे कराना ) तेल आदि द्वारा देना चाहिए।ध्यान रहे सन्निपात के रोगी को अन्न,घी अथवा मांस कुछ भी नहीं देना चाहिए।सन्निपात के रोगी कि जठराग्नि को बढ़ाने वाले जवासा गोखरू अथवा कटेरी आदि के काढ़े में पकाया हुआ आहार अति उत्तम माना गया है।कुछ सिद्ध वैद्यों के अनुसार सन्निपात ज्वर के रोगी को दशमूल आदि के क्वाथ के साथ बनाया हुआ माड़ देना हितकर होता है क्योंकि यह गरम दीपन और पाचन है साथ ही पसीना लाने वाला भी है।जौ,वेर,कुल्थी,मूंग,और सोंठ समान भाग लेकर चार गुने पानी में क्वाथ बनाकर देना हितकारी होता है।
आयुर्वेदज्ञ सुश्रुत जी ने लिखा है कि सात,दस या बारह दिनों में सन्निपात ज्वर स्वाभाविक रूप से कुपित होकर या तो शांत हो जाता है या रोगी को मार डालता है।वात,पित्त एवं कफ की प्रबलता से ही क्रमानुसार 7 - 10 एवं 12 दिनों में धातु पाकी होकर मार देता है। अथवा मल पाकी होकर शांत हो जाता है।धातु और मल का पकना यह मरीज के भाग्य पर निर्भर रहता है।
लक्षण :- अत्यधिक शारीरिक दुर्बलता,आँखों में जलन व लाली,कानों में दर्द,सर्दी व गर्मी का अनुभव,खाने में अरुचि,जोड़ों में दर्द,आँखें धंस जाना,खांसी,बेहोशी,थकान,कान के पीछे सूजन,पसलियों में दर्द,मूर्च्छा,श्वास गलरोग,आँखों में भारीपन,शरीर में जड़ता,मिचली, आदि सन्निपात ज्वर के प्रमुख लक्षण हैं।
कारण :- अनियमित भोजन,मौसम एवं अरुचिकर भोजन करना,अधिक उपवास,विषाक्त पदार्थों का सेवन,अधिक परिश्रम,अधिक मैथुन,धूप में अधिक देर तक कार्य करना आदि सन्निपात ज्वर के मुख्य कारण हैं।
उपचार :- (1 ) समान भाग लेकर सोंठ,भारंगी,गिलोय एवं त्रिकुटा का काढ़ा पीने से सन्निपात ज्वर ठीक हो जाता है।
(2 ) समान भाग लेकर गिलोय, कुटकी,कटेरी,चिरायता,सोंठ,हरड़,भारंगी का काढ़ा बनाकर पीने से सन्निपात ज्वर दूर हो जाता है।
(3 ) आक की जड़,काली मिर्च,सोंठ,पीपल,सहजन ,कुटकी,बच सबको समान भाग लें और काढ़ा बनाकर सेवन करने से सन्निपात ज्वर ठीक हो जाता है।
(4 ) दशमूल एवं गिलोय का काढ़ा बनाकर सेवन करने से सन्निपात ज्वर ठीक हो जाता है।
(5 ) सेंधा नमक,काली मिर्च,पीपल और सोंठ के चूर्ण को अदरक के रस में मिलाकर मुंह में रखने से और बारम्बार थूकने से हृदय,पसली,कंठ एवं गले में जमा हुआ कफ निकल जाता है और संधियों ,पसलियों का दर्द,मूर्च्छा,श्वास गले का रोग,मिचली,शरीर की जड़ता,आँखों का भारीपन आदि दूर हो जाता है।
(6 ) कायफल,पुहकर मूल,काकड़ा सिंगी,सोंठ,काली मिर्च,धमासा और अजमोद का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चटाने से सन्निपात ज्वर का नाश हो जाता है।
(7 ) गिलोय के काढ़े में पिप्पली चूर्ण एवं शहद मिलाकर पिलाने से सन्निपात ज्वर के कारण शरीर के आंतरिक दाह और बाहर पसीना एवं शीतलता को दूर कर देता है।
(8 ) अतीस,सोंठ,नागरमोथा और पित्त पापड़े का काढ़ा पिलाने से सन्निपात ज्वर के अभ्यान्तरिक दाह का नाश हो जाता