dysmenorrhea disease

कष्टार्तव रोग :- कष्टार्तव स्त्रियों का एक अत्यंत कष्टदायक बीमारी है।मासिक धर्म के दौरान स्त्रियाँ मामूली दर्द का अनुभव करती हैं ;किन्तु जब असहनीय दर्द के कारण क्रियाकलाप में बाधा उत्पन्न होने लगती है या इलाज की आवश्यकता पड़ जाती है तो इसे कष्टार्तव रोग के नाम से जाना जाता है।कष्टार्तव में माहवारी के दौरान महिलाएं गर्भाशय में असहनीय पीड़ा का अनुभव करती हैं।कष्टार्तव मासिक धर्म के कई दिनों पूर्व से हो सकता है या उसके साथ हो सकता है और मासिक धर्म के समाप्त होते ही धीरे-धीरे काम होकर समाप्त हो जाता है। 

प्रकार :- यह तीन प्रकार के होते हैं - (1) आसंकुचन जन्य कष्टार्तव:- यह गर्भाशय में संकोच के कारण होता है ।यह 13 -18 वर्ष की उम्र में 

                                                       ज्यादा होता है।

                                                 (2) झिल्ली जन्य :- गर्भाशय के अंदर की झिल्ली गर्भाशय से बाहर आ जाती है। 

                                                 (3) रक्ताधिक्य कष्टार्तव :- मासिक स्राव के रक्त में अस्वाभाविक बढ़ोतरी के कारण होता है ।

लक्षण :-पेट के निचले भाग में दर्द,नाभि के आसपास दर्द,पेट के दाहिने या बायीं ओर दर्द,उल्टी,दस्त,कब्ज,सिरदर्द चक्कर आना,ध्वनि,प्रकाश,  

            गंध के प्रति अतिसंवेदनशीलता, मूर्च्छा,थकान आदि कष्टार्तव के प्रमुख लक्षण हैं ।  

कारण :- प्रोस्टाग्लैंडिन का स्तर बढ़ जाना, गर्भाशय में संकुचन,प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के कारण,गर्भाशय में फाइब्रॉएड,श्रोणिसूजन की 

             बीमारी,एडिनोमायोसिस ( गर्भाशय की दीवार के अंदर वृद्धि ),गर्भाशय का छोटा होना,आनुवंशिक कारण,उम्र से पहले युवावस्था तक 

              पहुंचना आदि कष्टार्तव के मुख्य कारण हैं ।

उपचार:-   (1) अशोक की छाल पांच ग्राम की मात्रा लेकर आधा लीटर पानी में उबालें और छानकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से 

                     कष्टार्तव रोग दूर हो जाता है ।

               (2) त्रिफला चूर्ण चार ग्राम की मात्रा गुनगुने जल के साथ रात्रि सोते समय प्रतिदिन लेने से कष्टार्तव रोग का नाश हो जाता है ।

               (3) टंकण भस्म यानि सुहागा भस्म,प्रवाल पिष्टी,अशोक चूर्ण एवं चंद्रप्रभावटी का उपयोग कष्टार्तव में अत्यंत उपयोगी है ।

               (4) अजवाइन चूर्ण 50 ग्राम,गाय का घी 50 ग्राम,गुड़ 100 ग्राम ; पहले कढ़ाही में घी डालकर उसमें अजवाइन चूर्ण एवं गुड़ 

                     डालकर मिलाएं और उतारकर प्रातः काल रोगिणी को खिला दें ।यह तीन-चार दिनों तक प्रयोग करने से कष्टार्तव रोग ठीक हो 

                      जाता है ।

               (5) काले तिल कपास की कोपलें,बांस की कोपलें 200 ग्राम लेकर महीन चूर्ण बनाकर पुराने गुड़ में मिलाकर गूलर के समान गोली 

                     बनाकर रख लें और प्रतिदिन एक -एक गोली सुबह-शाम गर्म जल के साथ सेवन करने से कष्टार्तव रोग का नाश हो जाता है ।


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