sandfly fever
बालूमाक्षिका ज्वर :-यह ज्वर फ़्लिबाटोमस पापाटेसाई नामक विषाणु के कारण होता है।बालू नामक मादा मक्खी जब इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को काटती है तो विषाणु रक्त के साथ मक्खी के उदर में पहुँच जाते हैं तथा सात से दश दिनों के अंदर इनका उद्भवन होता है तथा बालू मक्खी जीवनपर्यन्त रोगवाहिनी बनकर बालुमक्षिका ज्वर को फैलाती रहती है।यह रोगवाहक मक्खी जब स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तब इन विषाणुओं का समूह उसकी त्वचा के अंदर चला जाता है,जो पाँच दिनों के अंदर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है।
लक्षण :-मस्तक के अग्रभाग में तीव्र पीड़ा,आँखों के गोले के पीछे दर्द,मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द,चेहरा का लाल हो जाना,नाड़ी की गति तीव्र हो जाना,शारीरिक शिथिलता एवं दुर्वलता का आ जाना,जी मिचलाना,त्वचा क्षति आदि बालूमाक्षिका ज्वर के मुख्य लक्षण हैं।
उपचार :- (1)सुबह खाली पेट मूली के रस में सेंधा नमक मिलकर पीने से तिल्ली (प्लीहा)का बढ़ना बंद हो जाता है और कालाजार की बीमारी का नाश हो जाता है।
(2)आंवला चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में सुबह -शाम खाने से प्लीहा का बढ़ना रूक जाता है और कालाजार का नाश हो जाता है।
(3)पीपल का सेवन करने भी कालाजार की बीमारी दूर हो जाती है।
(4)नौसादर और चूना सामान मात्रा में लेकर रात में ओस में रख दें और सुबह तक वो द्रव्य में परिवर्तित हो जायेगा।उसे बताशे में डालकर रोजाना खाने से प्लीहा ठीक हो जाती है और कालाजार नष्ट हो जाता है।
(5)गिलोय के रस का सुबह -शाम सेवन करने से कालाजार का नाश हो जाता है।