tinnitus disease

कान का बजना रोग : - कान का बजना श्रवण तंत्र का विकार है,जो श्रवण तंत्र को प्रभावित करने वाली समस्याओं का प्रमुख कारण मन जाता है। इसमें लोगों को एक कान या कानों में अंदर आवाज सीटी की तरह या भिनभिनाने जैसी सुनाई देती है। यह अलग - अलग व्यक्तियों के द्वारा सुनी जाने वाली ध्वनि अलग - अलग हो सकती है ; किन्तु इनमें एक समानता होती है कि यह आवाज का स्त्रोत बाहरी नहीं होता है। इसमें सुनने की क्षमता कमजोर हो सकती है और यह समस्या आपके एक कान या फिर दोनों कानों में हो सकती है। वास्तव में कान के बजने की समस्या को नजर अंदाज करना एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर सकती है और श्रवण शक्ति का ह्रास होना शुरू हो जाता है। इसलिए शुरुआत में ही चिकित्सा की आवश्यकता होती है ताकि गंभीर समस्या उत्पन्न न हो ,साथ ही कान के बजने की समस्या को समाप्त किया जा सके। 

लक्षण : - कान में आवाज आना,कान में फुसफुसाहट की आवाज,कान में भिनभिनाने जैसी आवाज,श्रवण शक्ति में ह्रास,कान में तेज दर्द,कान में वैक्स इकट्ठा होना, कान की हड्डी का बढ़ जाना आदि कान का बजना रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - कान की कोशिकाओं की क्षति,कान में मैल का होना,हार्मोनल असंतुलन,थायराइड,सिरदर्द,श्रवण शक्ति का ह्रास,कान में आघात,कान के अंदर नसों में विकार,ट्यूमर ब्रेन में,उम्र का बढ़ना,कान में पस,कान के पर्दे में छेद,सर्दी - जुकाम,सिर में चोट,अचानक विस्फोट या गोलियों की आवाज,उच्च रक्तचाप,अत्यधिक धूम्रपान एवं शराब का सेवन आदि कान का बजना रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) धनिया के बीजों की चाय सुबह - शाम पीने से कान का बजना ठीक हो जाता है। 

(2) लहसुन की कलियों को तेल में भून कर खाने से कान का बजना रोग ठीक हो जाता है। 

(3) संतुलित भोज्य पदार्थों के सेवन कान का बजना दूर हो जाता है। 

(4) धूम्रपान एवं शराब के अत्यधिक प्रयोग से परहेज से भी कान का बजना ठीक हो जाता है। 

(5) नमक का प्रयोग सीमित एवं कैफीन वाले पेय पदार्थों के निषेध द्वारा भी कान का बजना दूर हो जाता है। 

(6) अनानास के ताजे फल के सेवन से कान का बजना ठीक हो जाता है। 

(7) सूखे फल एवं मेवों के नियमित सेवन से भी कान का बजना दूर हो जाता है। 

(8) कच्चे फल,हरी सब्जियों एवं पकी फलियों के सेवन करने से प्राकृतिक तरीके से कान का बजना रोग ठीक हो जाता है। 

(9) समय - समय पर कान की सफाई करते रहने से भी कान का बजना रोग से मुक्त रह सकते हैं। 

(10) प्रतिदिन कान में सरसों तेल की एक - दो बूंदें डालने से कान का बजना रोग से बचे रह सकते हैं। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,ॐ का उच्चारण आदि। 


otalgia disease

कान दर्द रोग :- आज वर्तमान समय में कान दर्द एक आम समस्या के रूप में देखने को मिलता है,जो कान के अंदरुनी हिस्से में रिसाव या संक्रमण के कारण होता है। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि कोई बीमारी ही हो ; परन्तु कान दर्द के दीर्घ अवधि तक या बार - बार होने पर चिकित्सा की आवश्यकता है। प्राथमिक दर्द कान के अंदरुनी भागों में होता है। कान के बाहरी भागों में दर्द बाद में दृष्टिगोचर होता है। कान के अंदर मध्य से लेकर गले तक एक युस्टेशियन ट्यूब होती है, जो एक तरह का तरल पदार्थ का उत्सर्जित करती है और तरल पदार्थ के अवरुद्ध होने की स्थिति में यह जब कान के परदे पर दवाब बनाती है तो दर्द होने का कारण भी कभी - कभी होता है। वात,कफ एवं पित्त के कुपित होना भी कान दर्द का कारण बन जाता है। वास्तव में कान दर्द को अनदेखा कभी भी नहीं करना चाहिए और समय रहते चिकित्सक से संपर्क कर उपचार कराना आवश्यक है।  देरी से कभी - कभी अत्यंत कष्टप्रद स्थिति बन जाती है और श्रवण शक्ति का ह्रास होना या बिल्कुल सुनाई नहीं देने जैसी समस्या बन जाती है। 

लक्षण : - तीव्र कान दर्द होना,कान से तरल पस निकलना,कान में भारीपन,नाक का बंद हो जाना,बुखार के कारण ,चक्कर आना,कान में घंटियां बजना,श्रवण शक्ति का ह्रास,आदि कान दर्द के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - दांत का संक्रमण,गले में परेशानी,साइनस के कारण,कान में आघात,कान के परदे में छिद्र,जबड़े की मांसपेशियों में संक्रमण,कान में मैल जमा होना,कान में पानी का जाना,ठंड लगना आदि कान दर्द के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) प्याज के रस को गुनगुना कर कान में दो - तीन बूंदें डालने से कान दर्द ठीक हो जाता है। 

(2) अदरक के रस की दो - तीन बूंदें कान में डालने से कान दर्द समाप्त हो जाता है। 

(3) कान के प्रभावित हिस्से पर गर्म पट्टी या सिकाई पैड लगाने से कान दर्द ठीक हो जाता है। 

(4) ऑलिव ऑयल की कुछ बूंदें कान में डालने से कान दर्द दूर हो जाता है। 

(5) तुलसी के पत्ते के रस की दो - तीन बूंदें कान में डालने से कान दर्द दूर हो जाता है। 

(6) आम के पत्ते का रस डालने से भी कान दर्द दूर हो जाता है। 

(7) नीम के तने के रस की कुछ बूंदें डालने से कान दर्द में बहुत आराम मिलता है। 

(8) विटामिन सी युक्त फलों के सेवन  जैसे - अमरुद,नीम्बू,संतरा,शिमला मिर्च,टमाटर, मौसमी आदि के नियमित प्रयोग में लाने से कान दर्द कि समस्या दूर हो जाती है। 

(9) केले के तने के रस की कुछ बूंदें कान में डालने से कान दर्द दूर हो जाता है। 

(10) अजवाइन तेल की दो - तीन बूंदें कान में डालने से कान दर्द अत्यंत शीघ्रता से दूर हो जाता है। 

(11) लहसुन, अदरक,सहजन के बीज,मूली सबके रस को निकाल कर कान में डालने से कान दर्द बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।

(12) सरसों के तेल में लहसुन के कलियों को जलाकर ठंडा कर दो - तीन बूंदें डालने से कान दर्द बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। 

(13) अजवाइन के तेल में सरसों के तेल को मिलाकर गुनगुना कर कान में डालने से कान दर्द बहुत जल्दी दूर हो जाता है 

योगा,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,उज्जयी आदि। 


diphtheria disease

डिप्थीरिया रोग : - डिप्थीरिया एक बैक्टीरियल इंफेक्शन रोग है,जो नाक एवं गले में होने वाली बीमारी है।इसे रोहिणी रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में नाक एवं गले की श्लैष्मिक झिल्ली में सूजन आ जाती है। डिप्थीरिया के वाहक कोरयने बैक्टीरियम डिपथीरी नामक बैक्टीरिया है,जो संक्रमित व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में अत्यंत शीघ्रता से फैलाने में सक्षम होता है। यह रोग 2 से 10 वर्ष तक के आयु वर्ग के बालकों में ज्यादातर देखने को मिलता है। वैसे तो यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। डिप्थीरिया वास्तव में पीड़ित व्यक्ति के स्वर यंत्र,नाक,आँखें आदि को प्रभावित करती हैं। हृदय को विशेष रूप से प्रभावित करता है और अत्यंत घातक प्रभाव डालती है। 

लक्षण : - नाक से खून मिश्रित स्राव,शरीर में पीड़ा,बुखार,ठण्ड लगना,गले में खराश,गला बैठ जाना,खाने एवं पीने में दिक्कत,खांसी,साँस लेने में परेशानी,नाक एवं गले की त्वचा में घाव,त्वचा में लाल हो जाना,ग्रंथियों में सूजन एवं कमजोरी आदि डिप्थीरिया या रोहिणी रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : -  संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना,अस्वच्छता,संक्रमित व्यक्ति के खांसने,छींकने से,कोरयने बैक्टीरियम डिफ्तर्रिया वायरस,भीड़ वाली स्थानों में जाना आदि डिप्थिरया या रोहिणी रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) एक चम्मच शहद,एक चम्मच नीम्बू रस को एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करने से डिप्थीरिया या रोहिणी रोग ठीक हो जाता है। 

(2) पानी में तुलसी के पत्ते को डालकर गर्म कर सेवन करने से डिप्थीरिया रोग ठीक हो जाता है। 

(3) नमक युक्त गुनगुने में के गरारे करने से भी डिप्थीरिया रोग ठीक हो जाता है। 

(4) अदरक को टुकड़े कर उसमें शहद एवं नीम्बू की कुछ बूंदें डालकर सेवन करने से डिप्थीरिया रोग ठीक हो जाता है। 

(5) एरंडी के पत्तियां,सहजन की पत्तियां एवं लहसुन की दो - तीन कलियों के पेस्ट को गुनगुने पानी में मिलाकर गरारे करने से डिप्थीरिया रोग में बहुत फायदा मिलता है। 

प्राणायाम एवं योग : - अनुलोम - विलोम,भ्रामरी,उज्जायी,कपालभाति, ॐ का उच्चारण आदि। 


turbinate hypertrophy disease

 

 

नाक की हड्डी बढ़ना : - नाक की हड्डी बढ़ने को वास्तव में चिकित्सीय भाषा में " टर्बिनेट हाइपरट्रॉफी " कहा जाता है । इस रोग में नाक के अंदर वायु मार्ग की सतह में टर्बिनेट नामक एक लम्बी बनावट होती है,जो नाक में प्रवेश करने वाली हवा को गर्म एवं नम बनाती  है;किन्तु टर्बिनेट मैं वृद्धि हो जाने से नाक में वायु जाने वाली हवा में गतिरोध आ जाता है। इसी समस्या को आमतौर पर नाक की हड्डी बढ़ना कहा जाता है। नाक में हड्डी बढ़ जाने से सांस लेने में परेशानी ,इंजेक्शन एवं यदा-कदा खून आने लगते हैं,जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक सिद्ध होता है ।कभी-कभी तो यह जानलेवा भी सिद्ध हो जाता है।इसलिये इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिये
लक्षण : - नाक में इन्फेक्शन,सांस लेने में दिक्कत,नाक से खून आना,खर्राटे लेना,नाक बहना,सूंघने की क्षमता में कमी,नाक बन्द लम्बे समय तक होना,मुंह से सांस लेने से मुंह का सूखना,हमेशा सर्दी- जुकाम होना आदि नाक में हड्डी बढ़ने के प्रमुख लक्षण हैं।
कारण : - अधिक समय तक साइनस की सूजन,वातावरण में उपस्थित कुछ उत्तेजित करने वाले पदार्थ,मौसम में होने वाली एलर्जी,नशे की आदत,ड्रग्स लेना,हार्मोनल असन्तुलन,शरीर के तापमान में बदलाव,गर्भवस्था,उम्र बढ़ना,आनुवांशिक एवं जन्मजात कारण आदि नाक की हड्डी बढ़ने के मुख्य कारण हैं।
उपचार :- (1) नाक में लैवेंडर,पुदीन,नीम्बू,पाइन और लौंग के तेल की कुल बूंदें प्रतिदिन नाक में डालने से नाक की हड्डी का बढ़ना रोग ठीक हो जाता है ।
(2) एक या दो चम्मच सिरका पानी में डालकर गर्म करके उसका भाप प्रतिदिन लेने से  नाक का हड्डी बढ़ना रोग ठीक हो जता है।
(3) लेमन बाम का प्रतिदिन नाक के आसपास के हिस्से में लगाने से नाक की हड्डी बढ़ना रोग समाप्त हो जाता है।
(4) प्याज के रस की एक या दो बूंदें प्रतिदिन नाक में डालने से नाक का हड्डी बढ़ना दूर हो जाता है।
(5) शहद एवं नींबू रस को मिलाकर नाक के ऊपर लेप करने से भी नाक की हड्डी का बढ़ना ठीक हो जता है।
(6) नाक में प्रतिदिन सरसों तेल की दो या तीन बूंदें नियमित रुप से डालने से नाक की हड्डी का बढ़ना ठीक हो जता है ।
(7) अडुसा के फलों के रस की एक -दो बूंदें प्रतिदिन नाक में डालने से नाक की हड्डी बढ़ने का रोग ठीक हो जाता है।
(8) नाक में प्रतिदिन गाय के घी की कुछ बूंदें डालने से नाक की हड्डी का बढ़ना ठीक हो जाता है।
प्राणायम एवं आसन : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,उज्जई,जलनेति,सूत्रनेति आदि। 



otitis media disease

मध्य कर्ण की विद्रधि रोग : - मध्य कर्ण की विद्रधि एक गंभीर रोग है ,जो बहुत कष्टप्रदायक होती है। इसमें मध्य कर्ण के ऊपर छत की पतली हड्डी में सूजन होकर फोड़ा का रूप धारण कर लेती है और पूय न निकल पाने की वजह से कर्णपटह में छेद हो जाती है। पूय का ठीक तरह से न निकल पाने के कारण कान में संक्रमण हो जाता है जो मस्तिष्कावरण में भी शोथ का कारण बन जाती है। यह आमतौर पर दो से छः सप्ताह में अपने आप ठीक हो जाता है। कभी - कभी यह पूय बहुत ज्यादा संक्रमित कर देता है और अत्यंत कष्ट दायक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। 

लक्षण :- कान में दर्द,बुखार,कान से पूय निकलना,सुनने में दिक्कत,कान की झिल्ली में सूजन एवं फोड़ा आदि मध्य कर्ण की विद्रधि रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - विषाणु जनित संक्रमण,हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा,आनुवांशिक कारण,श्वसन तंत्र का संक्रमण आदि मध्य कर्ण की विद्रधि रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) गेंदे के पत्तों का रस कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग ठीक हो जाता है। 

(2)नीम के पत्तों का रस कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग ठीक हो जाता है। 

(3)गोमूत्र की कुछ बूंदें कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग दूर हो जाता है। 

(4) कदम्ब के फूलों का रस कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग ठीक हो जाती है। 

(5) अजवाइन के तेल की दो - तीन बूंदें कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग ठीक हो जाती है। 

(6) सरसों तेल में लहसुन की कलियाँ जलाकर कान में डालने से मध्य कर्ण की विद्रधि रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है। 


ear wax

कान में मैल जमा होना :- कान में मैल जमा होना एक आम समस्या है ,जो बहिकर्ण के चारों ओर की त्वचा एवं श्लैष्मिक कला की ग्रंथियों द्वारा स्रावित पदार्थ कान के सुरंग में जमा होकर सूखने से होता है। इसके अतिरिक्त कान के अंदर मैल मृत चमड़ियों,कान के अंदर टूटे रोयें और कई अन्य चीजों से मिलकर भी बनता है ,जो कान की सुरक्षा में भी सहायक सिद्ध होता है किन्तु अधिकतर ठीक नहीं होकर कई अन्य तरह की बीमारियों को उत्पन्न करने में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और अन्य कई प्रकार की व्याधियों को जन्म देता है। कान के मैल से कम सुनाई देना,कान में दर्द,सिर में भारीपन आदि के मुख्य कारण होना एक आम बात है ,जो समय के साथ उपचार नहीं करने से इसके गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। इसलिए इसे कभी भी नजरअंदाज नहीं करना कान के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ठीक होता है। 

लक्षण :- कान में भारीपन,झनझनाहट,कान में सांय - सांय की आवाज आना,सुनाई कम देना,कान में दर्द,सिरदर्द, सिर में भारीपन आदि कान में मैल जमा होने के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- कान के श्लैष्मिक कला द्वारा स्रावित पदार्थ के सूख जाने के कारण,बाहरी धूल कणों ,वातावरणीय प्रदूषण आदि कान में मैल जमा होने के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) साधारण खाने के सोडे को जल में घोलकर गर्म कर हल्का गुनगुना होने पर कान में डालने से कान के मैल ढीली होकर निकल जाता है। 

(2) नमक को गुनगुने पानी में घोलकर कान में डालने से कान के मैल साफ हो जाते हैं। 

(3) सरसों के तेल में लहसुन डालकर गर्म करके और ठंडा होने पर कान में तीन - चार बूंदें डालने से कान का  मैल ढीली होकर निकल जाता  है। 

(4) हाइड्रोजन पर ऑक्साइड कान में डालने से कान के मैल ढीली होकर निकल जाती है। 

(5) पके हुए नीम्बू का रस कान में चार - पांच बूंदें डालने से कान के मैल बहुत आसानी से निकल जाता है। 

(6) कान में दो - तीन बून्द बादाम का तेल डालकर सिर को उसे दिशा में कुछ देर तक रखने से मैल मुलायम होकर निकल जाता है। 


ear abscess disease

कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग :- कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग एक आम बीमारी है,जिसमें छोटी - छोटी सी विद्रधियाँ बनना एवं बड़ी होकर फूटने पर कान से पूय निकलने लगती है। यह अत्यंत पीड़ा देनी वाली स्थिति होती है। साधारणतः लोग इसे कान का बहना नहीं कहते हैं। इस रोग में कान से बहुत बदबू आती है और उस व्यक्ति के पास बैठना अत्यंत कठिन होता है। वास्तव एक साधारण सी बीमारी दिखने वाली कभी - कभी बहुत भयंकर रूप धारण कर लेती है और अत्यंत खतरनाक स्थितियां पैदा हो जाती हैं। इसलिए कान से पूय निकलने को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए। 

लक्षण :- कान में तीव्र पीड़ा,कान से पूय निकलना,कान के अंदर छोटे - छोटे फोड़ा का होना,कान में सूजन ,कान में भारीपन ,सुनने में दिक्कत आदि कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- कीटाणुओं का संक्रमण,खून में खराबी,त्वचा कटने एवं खुरचने के कारण,बैक्टीरिया का संक्रमण ,श्वसन संक्रमण आदि कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) नीम की पत्तियों का रस कान में प्रतिदिन सुबह - शाम डालने से बहिकर्ण विद्रधि या कान का फोड़ा रोग ठीक हो जाता है। 

(2) गेंदा के पत्तों का कान में डालने से कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग ठीक हो जाता है। 

(3) अजवाइन के तेल की दो - तीन बूंदें कान में प्रतिदिन डालने से कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग ठीक हो जाता है। 

(4) कदम्ब के फूलों का रस प्रतिदिन कान में डालने से कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग का नाश हो जाता है। 

(5) सरसों के तेल में लहसुन की कलियाँ जलाकर ठंडा कर दो - तीन बूंदें कान में डालने से कान का फोड़ा या बहिकर्ण विद्रधि रोग शीघ्रता से दूर हो जाता है। 

ठीक हो जाता है। 

(6) गोमूत्र की कुछ बूंदें डालने से कान का फोड़ा रोग ठीक हो जाता है। 


turbinate hypertrophy disease

नाक की हड्डी बढ़ने का रोग : - नाक के अंदर हड्डी का बढ़ जाना एक अत्यंत कष्टकारी या कष्टप्रद समस्या है,जो नाक के अंदर वायुमार्ग की सतह में टर्बिनेट नामक एक लम्बी बनावट में वृद्धि के कारण होती है। आम भाषा में इसे नाक की हड्डी बढ़ना कहा जाता जाता है। नाक के अंदर तीन एवं कई लोगों में चार टर्बिनेट पाए जाते हैं। ज्यादातर लोगों में तीन ऊपरी,माध्यम एवं निचले टर्बिनेट होते हैं। जब निचले टर्बिनेट की सूजन ठीक नहीं होती है,इसे ही नाक की हड्डी बढ़ना कहा जाता है। फलस्वरूप साँस लेने में परेशानी एवं खर्राटे लेने जैसी समस्या होती है।

नाक की हड्डी बढ़ने के प्रकार :- 

(1) नेजल साइकल : - इसमें नाक के एक तरफ के टर्बिनेट चार - छः घंटे के लिए सूज जाती है और ठीक होने पर दूसरी तरफ के टर्बिनेट सूजने लगती है। 

(2) क्रोनिक : - लम्बे समय तक टर्बिनेट में इन्फेक्शन या सूजन रहने के कारण लगातार बढ़ता रहता है। 

लक्षण : - साँस लेने में दिक्कत,इन्फेक्शन,नाक से खून आना,मौसमी एलर्जी,नाक के निचले टर्बिनेट में सूजन एवं सिकुड़न,खर्राटे लेना,नाक बहना,चेहरे में हल्का दर्द,घ्राण शक्ति काम होना,नाक बंद होना आदि नाक की हड्डी बढ़ने के रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - लम्बे समय तक साइनस की सूजन,मौसम में होने वाली एलर्जी,शरीर के तापमान में परिवर्तन, गर्भावस्था,उम्र बढ़ना,जन्मजात समस्या,सर्दी - जुकाम,धूम्रपान आदि नाक की हड्डी बढ़ने के रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) प्याज के रस की दो - तीन बूंदें प्रतिदिन सुबह - शाम नाक में डालने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग ठीक हो जाता है। 

(2) सहजन की फली से रस या सूप निकालें और उसमें अदरक लहसुन,प्याज एवं काली मिर्च डालकर काढ़ा बनाकर पीने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाती है। 

(3) मेथी के दो चम्मच दाने को पानी में उबालकर प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से साइनस की बीमारी ठीक हो जाती है। 

(4) नमक,बेकिंग सौदे का इश्तेमाल नाक की धुलाई में करने से साइनस की बीमारी समाप्त हो जाती है। 

(5) पालक के प्रयोग द्वारा भी साइनस की समस्या समाप्त हो जाती है। 

(6) एक कप पानी में एक चम्मच सेब के सिरके के सेवन से भी साइनस की समस्या ठीक हो जाती है। 

(7) टमाटर एवं लहसुन डालकर सूप बनाकर उसमें काला नमक डालकर पीने से साइनस की समस्या दूर हो जाती है। 

(8) चकोतरा के रस की 10 बूंदों को एक बड़ा कप पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह - शाम पीने से साइनस की समस्या से निजात मिल जाती है। 

(9) गाय के घी की दो - तीन बूंदें नाक में प्रतिदिन डालने से साइनस या वायु विवर शोथ दूर हो जाता है। 

(10) सरसों तेल की दो - तीन बूंदें नक् में प्रतिदिन डालने से साइनस रोग ठीक हो जाता है। 


sinusitis disease

साइनस या वायु विवर शोथ रोग :- साइनस या वायु विवर शोथ एक अत्यंत कष्टप्रद स्थिति है,जो नाक एवं चेहरे के आसपास स्थित वायु विवर या साइनस छिद्रों में गतिरोध उत्पन्न होने के कारण होता है। साइनस छिद्रों में गतिरोध सामान्यतः बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण के कारण होने वाला जुक़ाम है। जुक़ाम के कारण नाक का बंद हो जाना,नाक से पानी जैसा तरल पदार्थ का स्राव होना और ऐसी स्थिति ज्यादा दिनों तक रहने के कारण साइनस छिद्रों में म्यूकस का जमा हो जाना ही मुख्य रूप से साइनस की स्थिति उत्पन्न करती है। साइनस से पीड़ित व्यक्ति सर्दी के मौसम में सामान्यतः अधिक कष्ट का अनुभव करता है। साइनस में नाक का बंद हो जाना,नाक से पानी जैसा तरल स्राव निकलना,सिर में दर्द,सिर के आधे भाग में तेज दर्द का अनुभव करना,बार - बार छीकें आना,आँखों के दोनों पलकों के आसपास दर्द अनुभव करना,सिर में भारीपन,कार्य करने में मन नहीं लगना,एकाग्रता की कमी आदि परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साइनस के संक्रमण की स्थिति बहुत अधिक दिनों तक रहने पर नाक के अंदर मांस का बढ़ जाना,नाक में टेढ़ापन यानि नाक की हड्डियों में विकार,साँस लेने में दिक्कत,गंभीर सिर दर्द,अस्थमा,दमा आदि भी होने की संभावना बन सकती है। अतः चिकित्सक से परामर्श एवं उपचार कराना आवश्यक हो जाता है ताकि इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सके। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में नाक की सर्जरी ही एकमात्र साइनस का उपचार है किन्तु आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा साइनस का उपचार बेहतर विकल्प माना गया है एवं साथ ही संयमित खान - पान और जीवन शैली को अपनाकर इसके गंभीर दुष्परिणामों से बहुत हद तक बचा जा सकता है। 

साइनस के प्रकार : - साइनस कई प्रकार के होते हैं -

1 एक्यूट साइनस : - जब कोई व्यक्ति बैटीरिया  के संपर्क में आता है और संक्रमित होता है। 

2 क्रोनिक साइनस : - इसमें नाक के आसपास की कोशिकाओं में शोथ यानि सूजन का आ जाना और कष्ट का अनुभव होना। 

3 डेविएटेड साइनस : - इसमें नाक में म्यूकस यानि बलगम का भर जाना और नाक का बंद हो जाना। 

4 एलर्जी साइनस : -  व्यक्ति का शरीर अत्यंत संवेदन शील होने के कारण उसे प्रदूषण,धूल कणों के संपर्क में आने,धुंआ युक्त वातावरण में अधिक समय तक रहने,पालतू पशुओं के संपर्क में आने से होता है। 

लक्षण :- सिरदर्द,बदन दर्द,बुखार एवं बेचैनी,घ्राण शक्ति में कमी,थकान,खांसी,नाक से पानी आना,नाक बंद हो जाना,आँखों के ऊपर दर्द,साँस लेने में तकलीफ,चेहरे की मांसपेशियों में दर्द,गले में दर्द,आवाज में बदलाव आदि साइनस या वायु विवर शोथ रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- साइनस या वायु विवर छिद्रों में गतिरोध,बैक्टीरिया एवं फंगल इंफेक्शन,जुकाम होना,अस्थमा,पोषक भोज्य पदार्थों की कमी,प्रदूषण ,धूल धुंआ आदि से युक्त जगहों में अधिक समय तक रहना,आनुवांशिक कारण यानि पारिवारिक इतिहास,एलर्जी होना, रोग प्रतिरोधक शक्ति का कमजोर होना, आदि साइनस या वायु विवर शोध रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) प्याज के रस की दो - तीन बूंदें प्रतिदिन सुबह - शाम नाक में डालने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग ठीक हो जाता है। 

(2) सहजन की फली से रस या सूप निकालें और उसमें अदरक लहसुन,प्याज एवं काली मिर्च डालकर काढ़ा बनाकर पीने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाती है। 

(3) मेथी के दो चम्मच दाने को पानी में उबालकर प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से साइनस की बीमारी ठीक हो जाती है। 

(4) नमक,बेकिंग सौदे का इश्तेमाल नाक की धुलाई में करने से साइनस की बीमारी समाप्त हो जाती है। 

(5) पालक के प्रयोग द्वारा भी साइनस की समस्या समाप्त हो जाती है। 

(6) एक कप पानी में एक चम्मच सेब के सिरके के सेवन से भी साइनस की समस्या ठीक हो जाती है। 

(7) टमाटर एवं लहसुन डालकर सूप बनाकर उसमें काला नमक डालकर पीने से साइनस की समस्या दूर हो जाती है। 

(8) चकोतरा के रस की 10 बूंदों को एक बड़ा कप पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह - शाम पीने से साइनस की समस्या से निजात मिल जाती है। 

(9) गाय के घी की दो - तीन बूंदें नाक में प्रतिदिन डालने से साइनस या वायु विवर शोथ दूर हो जाता है। 

(10) सरसों तेल की दो - तीन बूंदें नक् में प्रतिदिन डालने से साइनस रोग ठीक हो जाता है। 

11 प्याज को कद्दूकश करके पानी में उबालें और भांप लेने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग दूर हो जाता है। 

12 टी ट्री आयल की चार - पांच बूंदें गरम पानी डाले और भांप लेने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग में अत्यंत शीघ्रता से आराम मिलता है। 

13 अदरक के टुकड़ों को पानी में उबालें और थोड़ा सा काली मिर्च पाउडर डालकर सेवन करने से साइनस में बहुत फायदा होता है। 

14 टमाटर,लहसुन,नमक को मिलाकर पीस लें और सूप बनाकर उसमें थोड़ा सा काली मिर्च पाउडर मिलाकर सेवन करने से साइनस या वायु विवर शोथ रोग में बहुत लाभ होता है। 

15 अदरक,तुलसी,लौंग एवं इलायची युक्त चाय पीना साइनस या वायु विवर शोथ रोग में बहुत लाभदायक होता है।

परहेज : - म्यूकस बनाने वाले आहार जैसे - मैदे से बनी चीजें,अंडे,तली - भुनी प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ,कैफीन,चावल,दही,केला,आइसक्रीम,कोल्ड ड्रिंक्स,तीखा एवं खट्टा पदार्थ। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,सूत्र नेति,जल नेति आदि। 


rhinitis disease

नाक की एलर्जी या नेजल पॉलिप्स रोग :- नाक की एलर्जी या नेजल पॉलिप्स एक सामान्य बीमारी है ,जिसमें नाक के अंदर त्वचा में सूजन हो जाती है और श्वसन मार्गों के अंदरूनी परत का मांस बढ़ने लगता है। इसे नाक का नाकड़ा के नाम से भी जाना जाता है। नाक के अंदर का यह बढ़ा हुआ मांस दर्दरहित एवं कैंसर मुक्त होता है जो नाक के अंदर पानी की बूंद या अंगूरनुमा लटका हुआ रहता है। मांस के बढ़ जाने से साँस लेने में परेशानी, घ्राण शक्ति का ह्रास होना और नाक में बार - बार संक्रमण होने के कारण काफी मुश्किल स्थिति उत्पन्न हो जाना एक आम समस्या है। इसे नाक का बवासीर भी कहा जाता है। 

लक्षण :- सिरदर्द,खर्राटे लेना,ठीक से स्वाद न महसूस करना,बहती नाक,भारीपन,गंध को ठीक से न सूंघ पाना,मुंह से साँस लेना,नाक की त्वचा में सूजन,मांस का बढ़ जाना लालिमा युक्त सूजन,साँस लेने में दिक्कत,बार - बार संक्रमण होना नाक की एलर्जी या नेजल पॉलिप्स रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- दमा रोग के कारण रहने वाली सूजन,बार - बार संक्रमण होना,एलर्जी,दवाओं व नशीले पदार्थों के प्रति संवेदनशील होना,प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार आदि नाक की एलर्जी या नेजल पॉलिप्स के मुख्य कारण है। 

उपचार :- (1) सूत्रनेति क्रिया द्वारा नाक का मांस बढ़ना रोग समाप्त हो जाता है। 

(2) जलनेति क्रिया द्वारा भी नाक का मांस बढ़ना रोग दूर हो जाता है। 

(3) प्याज के रस की दो - तीन बूंदें प्रतिदिन डालने से नाक का मांस बढ़ना ठीक हो जाता है। 

(4) सेब का सिरका एक चम्मच एक कप पानी में डालकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से नाक का मांस बढ़ना समाप्त हो जाता है। 

(5) पुदीने के तेल की दो - दो बूंदें प्रतिदिन नाक में डालने से नाक का मांस बढ़ना दूर हो जाता है। 

(6) नीम्बू बाम पानी में डालकर गरारे करने से नाक का मांस बढ़ना ठीक हो जाता है। 

(7) नीलगिरि के तेल की 4 - 5 बूंदें उबलते पानी में डालकर नश्य लेने से भी नाक का मांस बढ़ना दूर हो जाता है। 


  बच्चों के रोग

  पुरुषों के रोग

  स्त्री रोग

  पाचन तंत्र

  त्वचा के रोग

  श्वसन तंत्र के रोग

  ज्वर या बुखार

  मानसिक रोग

  कान,नाक एवं गला रोग

  सिर के रोग

  तंत्रिका रोग

  मोटापा रोग

  बालों के रोग

  जोड़ एवं हड्डी रोग

  रक्त रोग

  मांसपेशियों का रोग

  संक्रामक रोग

  नसों या वेन्स के रोग

  एलर्जी रोग

  मुँह ,दांत के रोग

  मूत्र तंत्र के रोग

  ह्रदय रोग

  आँखों के रोग

  यौन जनित रोग

  गुर्दा रोग

  आँतों के रोग

  लिवर के रोग