neuritis disease

तंत्रिका शोथ रोग : - तंत्रिका शोथ तंत्रिका तंत्र की गंभीर एवं अत्यंत कष्टप्रद स्थिति है,जिसमें तंत्रिका की हानि किसी आघात,गंभीर बीमारी या रासायनिक पदार्थों के शरीर में प्रवेश हो जाने के कारण होती है। वास्तव में तंत्रिका शोथ के कारण पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कई विसंगतियाँ आ जाती है और पीड़ित व्यक्ति का अपने ऊपर नियंत्रण भी नहीं रहता,साथ ही मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन आ जाता है। कभी - कभी तो पीड़ित व्यक्ति कुछ करने में भी सक्षम नहीं रहता यूँ कहें कि अपाहिज हो जाता है। तंत्रिका शोथ रोग में तंत्रिका का विघटन हो जाना एक खतरनाक एवं गंभीर स्थिति है,जिसका जितना जल्दी हो उपचार की आवश्यकता होती है। समय पर चिकित्सा न हो पाने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति की हालत गंभीर हो जाती है एवं प्राण हानि की संभावना बढ़ जाती है। 

लक्षण : - पैरों में चुनचुनाहट,कमजोरी,लड़खड़ाहट,पेशियों में खिंचाव,हाथ - पैरों में पक्षाघात के लक्षण,हाथ - पैरों में सुन्नता,छूने में दर्द का अनुभव,स्नायु में ठण्ड,जलन एवं पीड़ा का अनुभव आदि तंत्रिका शोथ रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - रासायनिक पदार्थों जैसे - संखिया,पारा,ईथर आदि,का कुप्रभाव,उपदंश,मलेरिया,कुष्ठ,विटामिन की कमी,मधुमेह,गठिया रोग,कैंसर,आघात,अज्ञात विष का शरीर में प्रविष्ट हो जाना आदि तंत्रिका शोथ रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) एलोवेरा के जूस के प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से तंत्रिका शोथ रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। 

(2) तंत्रिका शोथ में प्रभावित अंगों को सेंकने से बहुत आराम मिलता है। 

(3) संतुलित आहार जैसे - सूखे मेवे,बीज,अंकुरित अनाज एवं हरी सब्ज़ियाँ एवं फलों के सेवन से तंत्रिका शोथ रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(4) साबुत गेहूँ,कच्चे अंकुरित अनाज एवं कच्चा दूध आदि सेवन से तंत्रिका शोथ रोग में अत्यंत लाभ होता है। 

(5) कद्दू एवं सूरजमुखी के बीजों के सेवन से भी तंत्रिका शोथ रोग दूर हो जाता है। 

(6) भाप से पकी सब्ज़ियाँ एवं गेहूँ की रोटियां के सेवन से तंत्रिका शोथ में बहुत लाभ होता है। 

(7) गाजर,चुकुन्दर,संतरा,सेब एवं अनानास के फलों के रस का सेवन तंत्रिका शोथ रोग में अद्भुत फायदा पहुँचाता है। 

(8) विटामिन बी,बी 2 ,बी 6 ,बी 12  के सेवन से बहुत फायदा होता है। 

(9) हरी सब्ज़ियाँ जैसे - गाजर,पत्तागोभी,मूली,ककड़ी,टमाटर,चुकुन्दर आदि के सेवन से तंत्रिका शोथ रोग में बहुत लाभ होता है। 

(10) ब्राह्मी,शंखपुष्पी, बच आदि के सेवन से भी तंत्रिका शोथ में बहुत लाभ होता है। 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,ॐ का उच्चारण,भस्त्रिका,शीर्षासन,सर्वांसन आदि। 


huntington's disease

हंटिंगटन रोग : - हंटिंगटन एक अत्यंत दुर्लभ किस्म की घातक न्यूरोलॉजिकल बीमारी  है,जिसमें ग्रसित ,व्यक्ति के मस्तिष्क में स्थित कोशिकाएं क्षतिग्रस्त एवं शक्तिहीन होकर नष्ट होने लगती है। वास्तव में हंटिंगटन एक आनुवांशिक रोग है,जिसका दुष्प्रभाव स्वरुप ग्रसित व्यक्ति के मस्तिष्क में विषाक्त द्रव्यों के रूप में प्रोटीन एकत्रित होने लगता है एवं मानव मस्तिष्क की कोशिकाओं को हानि पहुँचाता है। इस रोग में मरीज के सोचने,समझने एवं उनके व्यवहार की गतिविधियों में बहुत बदलाव आ जाता है। व्यक्ति में उत्तेजना,मूड में अचानक बदलाव आदि लक्षण विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। हंटिंगटन रोग अधिकांशतः अधेड़ उम्र के लोगों में पाया जाता है,किन्तु यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति एशिया या अफ्रीका से ज्यादा पश्चिमी यूरोप में अधिक पाए जाते हैं। 

लक्षण : - चलने - फिरने में परेशानी,चिड़चिड़ापन,अनिद्रा,थकान,जी घबड़ाना,हाथ - पैरों में अनियंत्रण,सिर एवं ऊपर के हिस्से में अनियंत्रण,सोचने की शक्ति में ह्रास,याददाश्त कमजोर,निर्णय न ले पाना,तनाव,डीप्र्शन,अधिक गुस्सा करना, ओबसेसिव कंपल्सिव बिहेवियर के लक्षण आदि हंटिंगटन रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - आनुवांशिक कारण,असामान्य गुणसूत्र,साइटोसाइन,एडेनाइन एवं गुएनाइन का अधिक उत्पादन,विषाक्त प्रोटीन का मस्तिष्क में एकत्र होना,मस्तिष्क की कोशिकाओं का अधिक संवेदनशील होना,गंभीर आघात आदि हंटिंगटन रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) अश्वगंधा पाउडर का प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करने से हंटिंगटन रोग दूर हो जाता है। 

(2) एलोवेरा जूस के प्रतिदिन सेवन करने से मस्तिष्क के दोषों का निराकरण हो जाने से हंटिंगटन रोग का सफाया हो जाता है। 

(3) सूर्य की रौशनी में नियमित कुछ देर प्रतिदिन बैठने से हंटिंगटन रोग में बहुत फायदा होता है। 

(4) मैनीशियम युक्त पत्तेदार सब्जियां,केला,दही आदि के सेवन से भी हंटिंगटन रोग में अत्यंत लाभ मिलता है। 

(5) ओमेगा - 3 युक्त खाद्य पदार्थ जैसे - सीप,सैल्मन,टूना,सार्डिन जैसे समुद्री फूड्स के सेवन से हंटिंगटन रोग में अद्भुत लाभ मिलता है। 

(6) कैमोमाइल के सूखे फूल की चाय में शहद मिलाकर सेवन करने से हंटिंगटन रोग में बहुत फायदा होता है। 

(7) ठन्डे पानी से प्रभावित अंगों को सेंकने से भी हंटिंगटन रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(8) ग्रीन टी के साथ शहद मिलाकर सेवन करने से भी हंटिंगटन रोग में लाभ होता है। 

(9) हंटिंगटन रोग आनुवांशिक होने से संतान प्राप्त करने के लिए आई वी एफ़ तकनीक से संतान प्राप्त करना अच्छा होता है ताकि इस रोग का स्थानांतरण न हो सके। 

(10) शंखपुष्पी,बच,ब्राह्मी,अश्वगंधा आदि के सेवन से भी हंटिंगटन रोग में अत्यंत लाभ होता है। 

योग,आसन एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,ऊँकार का उच्चारण,शीर्षासन आदि। 


cerebral palsy disease

प्रमस्तिष्क अंगघात या पक्षाघात रोग : - प्रमस्तिष्क पक्षाघात एक अत्यंत गंभीर बीमारी है,जो मांसपेशियों में संकुचन या खिंचाव के साथ ही एक जन्मजात विकार के कारण होता है। कभी - कभी जन्म से पहले दिमाग के असामान्य विकास के कारण भी प्रमस्तिष्कीय अंगघात या पक्षाघात होता है। प्रमस्तिष्क पक्षाघात में मस्तिष्क के दोनों भागों में असामान्यतया एवं क्षति के कारण शारीरिक गति के नियंत्रण को समाप्त कर देती है। प्रमस्तिष्क पक्षाघात बच्चों के जन्म के पहले,जन्म के समय एवं जन्म के उपरांत भी होने की प्रबल संभावना हो सकती है। वास्तव में प्रमस्तिष्क पक्षाघात एक अत्यंत जटिल अवस्था है जो मांसपेशियों में सामंजस्य न होने के कारण यह मस्तिष्क का एक विकार है जो मस्तिष्क के मोटर कंट्रोल सेंटर के क्षतिग्रस्त होने के कारण सामान्यतया होता है। या यूँ कहें कि प्रमस्तिष्क पक्षाघात मस्तिष्क सम्बन्धी विकार है जो न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण होता है। साधारण भाषा में मानव मस्तिष्क में शारीरिक गतिविधि को अपने नियंत्रण में रखने के लिए मस्तिष्क के जिस भाग का उपयोग होता है,उसमे विकार या कोई कमी के कारण मांसपेशियों का ठीक से काम नहीं कर पाना ही प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात कहलाता है। 

लक्षण : - हाथ - पैरों का अकड़ जाना,शारीरिक अनियंत्रित गतिविधियां,वस्तुओं को पकड़ने में कठिनाई,चलने में दिक्कतें,मांसपेशियों में कमजोरी,निगलने में दिक्कत,बौद्धिक विकलांगता,बहरापन,अंधापन,सीखने में अक्षमता,करवट न बदल पाना,गर्दन स्थिर न हो पाना आदि प्रमस्तिष्क पक्षाघात के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- समय से पूर्व प्रसव,गर्भावस्था के दौरान माता को इंफेक्शन,कष्टदायक प्रसव,मस्तिष्क की कोशिकाओं में विकार,नवजात शिशु का पीलिया से संक्रमित होना,माँ एवं बच्चे का रक्त समूह एक न होना,मस्तिष्क में चोट लगाना,कुपोषण,भ्रूण तक ऑक्सीजन का अपर्याप्त रुप से पहुँच आदि प्रमस्तिष्क पक्षाघात के मुख्य कारण है। 

उपचार : - (1) बादाम,अखरोट,अंजीर आदि फलों के नियमित सेवन करने से प्रमस्तिष्क पक्षाघात में फायदा होता है। 

(2) दैनिक आहार में पर्याप्त संतुलित भोजन के खाने से भी प्रमस्तिष्क पक्षाघात में बहुत आराम मिलता है। 

(3) अश्वगंधा,बच,हल्दी,शंखपुष्पी,मालकांगनी,आदि के सेवन से प्रमस्तिष्क पक्षाघात में अत्यंत लाभ मिलता है। 

(4) शंखपुष्पी एवं ब्राह्मी के नियमित सेवन से प्रमस्तिष्क से सम्बन्धी विकार दूर हो जाते हैं। 

(5) संतुलित भोजन के द्वारा कुपोषण से होने वाले प्रमस्तिष्क पक्षाघात के विकारीं को दूर किया जा सकता है। 

(6) प्रमस्तिष्क पक्षाघात से उत्पन्न विकृति को कान की मशीन,चश्मा आदि के प्रयोग द्वारा कम किया जा सकता है। 

(7) आँतों को ताकत देने वाले खाद्य पदार्थों जैसे  - तरल पदार्थ,फाइवर युक्त खाद्य पदार्थ,मल सॉफलर,जुलाव,नियमित रुप से मल त्याग का अभ्यास आदि के द्वारा प्रमस्तिष्क पक्षाघात के दोषों को दूर किया जा सकता है। 

(8) पर्याप्त भोजन एवं पोषक पदार्थों के सेवन से प्रमस्तिष्क पक्षाघात की समस्याओं से बचा जा सकता है। 

(9) भ्रामरी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से प्रमस्तिष्क पक्षाघात से होने वाली समस्या धीरे - धीरे समाप्त हो जातीं हैं। 

(10) नियमित रुप से नाक में गाय के घी की कुछ बूंदें नाक में डालने से प्रमस्तिष्क पक्षाघात की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। 

योग,आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,कपालभाति,भ्रामरी,भस्त्रिका,ॐ कार का उच्चारण आदि। 


peripheral neuropathy disease

परिधीय न्यूरोपैथी रोग : - परिधीय न्यूरोपैथी तंत्रिका तंत्र की एक गंभीर बीमारी है ,जो मानव शरीर में नसों की समस्या को दर्शाता है। ये नसें केंद्रीय तंत्रिका तंत्र,मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से शेष शरीर को सन्देश पहुँचाते हैं परिधीय न्यूरोपैथी में नसों के क्षतिग्रस्त होने पर तंत्रिका तंत्र शरीर के शेष भागों में सन्देश पहुँचाने में असमर्थ हो जाता है। साथ ही मांसपेशियों की कमजोरी का भी कारण बन जाता है।  वास्तव में परिधीय न्यूरोपैथी शरीर की विभिन्न नसों की शृंखला को भी प्रभावित और क्षतिग्रस्त कर देती है ,जिसका प्रभाव अत्यंत हानिकारक सिद्ध होता है। परिधीय न्यूरोपैथी तंत्रिका तंत्र का एक जटिल विकार है जो तंत्रिका,पैर,मुँह,हाथों,चेहरे,आंतरिक अंगों को तंत्रिका तंत्र से नसों को जोड़ता है। ये तंत्रिकाएं शरीर के इन भागों से सन्देश देने के लिए उत्तरदाई होतें है किन्तु  इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के रीढ़ की हड्डी से मस्तिष्क तक जानकारी ले जाने वाला नसों के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में शरीर के तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली बहुत बुरी तरह से बाधित हो जाती है और शरीर में बहुत सारी विसंगतियां आ जाती हैं,जिसका दूरगामी प्रभाव अत्यंत हानिप्रद होता है। 

लक्षण : - अस्थायी रूप से स्तब्ध होना,झुनझुनी,उत्तेजना,मांसपेशियों में कमजोरी एवं चुभन का अनुभव,दर्द महसूस करने में कष्ट ,गर्म एवं ठण्ड का अनुभव न होना आदि परिधीय न्यूरोपैथी रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - शारीरिक आघात,पूर्व चोट में दुहराव,संक्रमण,चयापचय की समस्याएं,विषाक्त पदार्थों एवं दवाओं का प्रयोग,मधुमेह आदि परिधीय न्यूरोपैथी रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) अलसी के बीजों का चूर्ण प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से परिधीय न्यूरोपैथी रोग से उत्पन्न समस्याएं दूर हो जाती हैं। 

(2) अश्वगंधा पाउडर के प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करने से परिधीय न्यूरोपैथी रोग दूर हो जाता है। 

(3) हल्दी,दारू हल्दी एवं अम्बा हल्दी के चूर्ण को प्रतिदिन ताजे जल के साथ सुबह - शाम सेवन करने से परिधीय न्यूरोपैथी रोग दूर हो जाता है। 

(4) ओमेगा - 3 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थ जैसे - सालमन मछली, फ्लैक्स बीज एसिड के सेवन से भी परिधीय न्यूरोपैथी रोग में बहुत लाभ होता है। 

(5) जई के बीज के प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन से भी परिधीय न्यूरोपैथी रोग दूर हो जाता है। 

(6) बादाम,अखरोट गिरी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च एवं बूरा मिलाकर घी के साथ एक चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से परिधीय न्यूरोपैथी में बहुत लाभ मिलता है। 

(7) लहसुन की चार - पांच कलियों को पीसकर प्रतिदिन सेवन करने से भी परिधीय न्यूरोपैथी में बहुत आराम मिलता है। 

(8) ब्राह्मी,शंखपुष्पी के सेवन से भी मस्तिष्क की नसों में ताकत मिलती है और परिधीय न्यूरोपैथी में अत्यंत लाभ मिलता है। 

(9) एलोवेरा जूस के सेवन से भी परिधीय न्यूरोपैथी में बहुत लाभ मिलता है। 

(10) बादाम का हलवा के सेवन से भी परिधीय न्यूरोपैथी में बहुत लाभ होता है। 

(11) अश्वगंधा एवं शतावर चूर्ण के सेवन से भी नर्वस सिस्टम को अत्यंत ताकत मिलती है और परिधीय न्यूरोपैथी रोग में अत्यंत लाभ होता है। 

आसान एवं प्राणायाम : - अनुलोम - विलोम,भ्रामरी,उज्जायी,भस्त्रिका,जलनेति,सूत्रनेति आदि। 


hypothermia disease

हाइपोथर्मिया रोग :- हाइपोथर्मिया शरीर के तापमान में एक महत्त्वपूर्ण एवं संभावित खतरनाक कमी की वजह से होता है।सर्दी का मौसम बच्चों,बुजुर्गों,डायबिटीज के मरीजों एवं एंटी डिप्रेशन की दवा और नशीले पदार्थों के सेवन करनेवालों के लिए अत्यंत खतरनाक सिद्ध होता है।ज्यादा सर्दी की वजह से शरीर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस मेंटेन नहीं रख पाने के कारण उनके लिए जानलेवा की स्थिति हो जाती है।खासकर बच्चों एवं बुजुर्गों जो ज्यादा देर तक ठण्ड में रहने के कारण उनका मेटाबोलिक रेट ज्यादा कम हो जाता है और शरीर नॉर्मल बॉडी टेम्परेचर मेंटेन नहीं कर पता है,नतीजन हाइपोथर्मिया का शिकार हो जाता है।वास्तव में शरीर का नॉर्मल टेम्परेचर बनाये रखने के लिए मानव शरीर में एक सिस्टम होता है,जिसे थर्मोस्टेट ( हाइपोथैलेमस ) कहते हैं।थर्मोस्टेट मानव शरीर को ठण्ड से बचाये रखने के लिए सदैव तत्पर रहता है;किन्तु जब हमारा शरीर ज्यादा ठण्ड का सामना करता है तो काँपने लगता है और यह स्थिति ज्यादा देर तक रहने के कारण हाइपोथर्मिया से पीड़ित हो जाता है।

लक्षण :- जल्दी - जल्दी साँस लेना,कंपकपी,त्वचा का ठंडा पद जाना,सर्दी - जुकाम हो जाना,नाक से पानी आना,लगातार छींके आना,आँखों से  पानी आना,बदन दर्द,सिर दर्द,आँखों में भारीपन,गले में खराश,गले में दर्द,सीने में जकड़न,साँस लेने में आवाज आना आदि हाइपोथर्मिया के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- ज्यादा देर तक ठण्ड में रहना,कपड़े कम पहनना,डायबिटीज का मरीज होना,एंटी डिप्रेशन दवा का प्रयोग,नशीले पदार्थों का अत्यधिक प्रयोग,सर्दी - जुकाम का होना,मांसपेशियों में ऑक्सीजन कम हो जाना,धमनियों में फैट ( वसा ) का जमा होना,ब्लड प्रेशर का होना,मोटापा आदि हाइपोथर्मिया के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) शतावरी चूर्ण का सेवन गुनगुने दूध में मिलाकर प्रतिदिन सुबह शाम करने से हाइपोथर्मिया के बीमारी से निजात मिल जाती है।

(2) दूध में केशर मिलाकर पीने से हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(3) अदरक की चाय पीने से हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(4) प्याज के रस में शहद मिलाकर पीने से भी हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(5) हल्दी चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करने से हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(6) तिल के तेल के सेवन से भी हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(7) दालचीनी पाउडर को शहद में मिलाकर सेवन करने से हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(8) आंवला चूर्ण के सेवन से भी हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(9) लहसुन को तवे पर भून लें और छिलका उतार कर सेवन करने से हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(10) शहद,काली मिर्च एवं तुलसी के नियमित सेवन से भी हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।

(11) अश्वगंधा पाउडर का सेवन करने से भी हाइपोथर्मिया की बीमारी दूर हो जाती है।


brain stroke

मस्तिष्क का दौरा :- मस्तिष्क का दौरा एक अत्यंत घातक स्थिति होती है,जिसमें मस्तिष्क के हिस्से में रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिका क्षतिग्रस्त हो जाती है।परिणामस्वरूप मस्तिष्क के ऊतकों में ऑक्सीजन एवं पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है,जिससे मस्तिष्क की कोशकाएँ मृत होना शुरू हो जाती है।वास्तव में यह एक गंभीर स्थिति हो जाती है और मस्तिष्क की क्षति,दीर्घकालिक विकलांगता एवं मृत्यु तक भी हो सकती है।मस्तिष्क का दौरा एक आपातकालीन स्थिति होती है,जिसमें तत्क्षण उपचार की आवश्यकता होती है।तत्काल उपचार न मिल पाने की स्थिति में जानलेवा सिद्ध हो सकती है।

प्रकार :- (1) क्षणिक (2) इस्केमिक -( i ) अन्तः शलयीय ( ii ) थ्रोम्बोटिक (3) रक्तस्रावी ।

लक्षण :- बोलने एवं समझने में दिक्कत,बोलने की गति धीमी हो जाना,चेहरे,बांह एवं पैरों में सुन्नता,कमजोरी महसूस करना,एक या दोनों आँखों से देखने में दिक्कतें या धुंधला दिखाई देना,अचानकभयंकर सिरदर्द,चक्कर आना,उल्टी आना आदि मस्तिष्क का दौरा के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- मस्तिष्क की धमनियां अवरुद्ध हो जाना,मस्तिष्क की धमनियों में रक्त का थक्का जम जाना,सिर में गंभीर चोट लगना,हृदय की विफलता,अनियंत्रित उच्च रक्तचाप,रक्त पतला करने वाली दवाओं का सेवन,धूम्रपान,अत्यधिक शराब का सेवन,उच्च कोलेस्ट्रॉल आदि मस्तिष्क का दौरा के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) जैतून का तेल,फल,नट्स एवं साबुत अनाजों के नियमित सेवन से मस्तिष्क के दौरे से बचा जा सकता है।

(2) एलोवेरा जूस के प्रतिदिन नियमित सेवन से मस्तिष्क का दौरा ठीक हो जाता है।

(3) संतुलित आहार जैसे- सब्जियां,फलों आदि के नियमित सेवन से मस्तिष्क का दौरा दूर हो जाता है।

(4) साबुत अनाज एवं उच्च फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से मस्तिष्क का दौरा ठीक हो जाता है।

(5) सप्ताह में दो बार मछली का सेवन करने से मस्तिष्क का दौरा ठीक हो जाता है।

(6) अर्जुन की छाल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट पीने से मस्तिष्क का दौरा ठीक हो जाता है।

(7) दूध में एक चम्मच अर्जुन छाल का पाउडर डालकर चाय बनाये और छान कर उसमें एक चम्मच शहद डालकर नियमित रूप से सुबह - 

     शाम पीने से मस्तिष्क का दौरा ठीक हो जाता है।


hypothalamus disease

पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर रोग :- पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर एक गंभीर समस्या है,जिसका अत्यंत घातक प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है।इस रोग में पीयूष ग्रंथि से उत्पन्न होनेवाला हार्मोन्स शरीर के वृद्धि एवं विकास के साथ शरीर में उपस्थित अन्य ग्रंथियों पर भी घातक प्रभाव डालते हैं।वास्तव में पीयूष ग्रंथि डिसऑर्डर में हार्मोन्स का स्राव बहुत अधिक या बहुत काम हो जाता है।शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए हार्मोन्स का संतुलन अतिआवश्यक है।इसके स्राव का बिगड़ना एक घातक एवं तकलीफदेह साबित होकर शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है।

लक्षण :- सिरदर्द,डिप्रेशन,उल्टी,कमजोरी,ठण्ड लगना,जोड़ों में दर्द,स्ट्रेच मार्क्स,मासिक धर्म में अनियमितता,पेशाब की मात्रा में वृद्धि,हड्डियों का कमजोर हो जाना,आँखों की रोशनी काम हो होना,वजन बढ़ना या घटना,पसीना अधिक आना,उच्च रक्तचाप,शुगर का बढ़ना,ह्रदय में परेशानी,शरीर पर बालों का अधिक उगना आदि पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- किसी तरह का आघात,विशेष प्रकार के दवाओं का सेवन,आंतरिक रक्तस्राव होना,पिट्यूटरी ट्यूमर आदि पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर के मुख्य कारण हैं।

पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर से होने वाली समस्याएं -

(1) ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजुरी 

(2) हापोथायरॉइडिज्म 

(3) डायबिटीज इंडिपिड्स 

(4) हायपर प्रोलैक्टिनेमिया आदि ।

उपचार :- (1) अश्वगंधा पाउडर का सेवन प्रतिदिन सुबह- शाम करने से पीयूष ग्रंथि 

                    डिसऑर्डर दूर हो जाता हैं।

              (2) बच चूर्ण का सेवन प्रतिदिन खली पेट शहद के या देशी घी के साथ करने 

                   से पीयूष या पिट्यूटरी ग्लैंड डिसऑर्डर दूर हो जाता हैं।

              (3) ब्राह्मी,शंखपुष्पी,मालकांगनी समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन 

                   सुबह-शाम ताजे जल के साथ सेवन करने से पीयूष ग्रंथि सम्यक रूपेण 

                   कार्य करने लगता हैं।

              













































 


cerebral aneurysm disease

मस्तिष्क धमनी विस्फार या प्रमस्तिष्कीय उत्स्फार रोग :- आज की भाग दौड़ भरी जीवन शैली में लोगों की दिनचर्या में व्यापक बदलाव के कारण मानव तनाव,अवसाद आदि कारणों से व्यथित है।परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हैं।मस्तिष्क धमनी विस्फार उनमें एक बहुत ही गंभीर एवं जानलेवा बीमारी है।इसमें मस्तिष्क की धमनी का कोई भाग फूल जाता है और उनमें खून भर जाता है।इसे सेरिब्रल अनियरिज्म या इंट्राक्रेनियल अनियरिज्म कहा जाता है।मस्तिष्क धमनी विस्फार एक प्रकार से जानलेवा स्थिति है,जो किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है।इसमें ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन डैमेज के कारण मरीज की मौत भी हो जाती है।

लक्षण :- अचानक सिरदर्द,होश खोना,मितली और उल्टी,चक्कर आना,चलते हुए संतुलन खोना,गर्दन में अकड़न,धुंधला दिखना,रौशनी से संवेदनशीलता आदि मस्तिष्क धमनी विस्फार के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण:- उच्च रक्तचाप,एथ्रोरोसेक्लोरोसिस संक्रमण,गंभीर आघात या चोट,आनुवंशिक कारण,संयोजी ऊतकों का रोग आदि मस्तिष्क धमनी विस्फार के मुख्य लक्षण हैं। 

उपचार :- मस्तिष्क धमनी विस्फार का उपचार अत्यंत कठिन है;किन्तु धमनी विस्फार न हो इसके लिए निम्नलिखित उपचारों को अपनाकर बचा जा सकता है।

(1) अश्वगंधा पाउडर का सेवन सुबह-शाम ताजे जल या दूध के साथ करके भी मस्तिष्क धमनी विस्फार से बच सकते हैं।

(2) उच्च रक्तचाप को नियंत्रित कर हम मस्तिष्क धमनी विस्फार से बच सकते हैं ।इसके लिए प्रतिदिन सुबह-शाम नोनी जूस की मात्रा 30 एम् एल कांच या चीनी मिटटी के पात्र में डालकर और उतने ही पानी मिलाकर सेवन करने से उच्च रक्तचाप को रोका जा सकता है ।

(3) धूम्रपान न करके भी हम मस्तिष्क धमनी विस्फार से बच सकते हैं।

(4) ड्रग्स का सेवन नहीं करके हम मस्तिष्क धमनी विस्फार से बच सकते हैं ।

(5) ब्राह्मी चूर्ण का सेवन सुबह-शाम करने से भी मस्तिष्क धमनी विस्फार से बचा जा सकता है।

(6) सहजन की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम बनाकर पीने से मस्तिष्क धमनी विस्फार से बचा जा सकता है।

(7) वाहन चलाते समय हेलमेट पहनकर सर को चोट से बचा कर भी हम मस्तिष्क धमनी विस्फार से बच सकते हैं ।


acute encephalitis syndrome disease

चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम रोग :- चमकी बुखार एक रहस्यमय,संक्रामक एवं खतरनाक बीमारी के रूप में विख्यात है,जो मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र की बीमारी है।इस बीमारी में वायरस के संक्रमण हो जाने से मस्तिष्क के नर्वस सिस्टम या तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो जाता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन एवं अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है ।फलस्वरूप शरीर के अंग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है ।यह वास्तव में अत्यधिक गर्मी एवं नमीयुक्त मौसम में शरीर में पानी की कमी के कारण खून में शुगर एवं सोडियम की कमी हो जाने की वजह से होता है। इसे दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है ।

भारत में प्रत्येक साल मई और जून के महीने में विशेषकर बिहार प्रान्त के अलग -अलग क्षेत्रों में 1 से 15 साल की उम्र की बच्चे इस बीमारी से अत्यधिक प्रभावित होकर अपना जीवन खो देते हैं।इस बीमारी में शरीर की प्रमुख नर्वस सिस्टम या तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है ।अत्यधिक गर्मी एवं नमीयुक्त मौसम में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम की फैलने की रफ़्तार अत्यधिक बढ़ जाती है ;क्योंकि गर्मियों में तेज धूप ,शरीर में पानी की कमी हो जाने एवं समय पर उचित उपचार न मिल पाने की वजह से जानलेवा साबित हो जाती है ।वास्तव में मानव मस्तिष्क में असंख्य कोशिकाएं एवं तंत्रिकाएं होती हैं ,जिनके सहारे शरीर की अंग कार्य करते हैं ।किन्तु जब इन कोशिकाओं में सूजन या अन्य दिक्क्तें आ जाती हैं तो इसे ही एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहते हैं ।

लक्षण :- अत्यधिक पसीना आना,तेज बुखार,शरीर में पानी की कमी,शरीर में ऐठन,डिहाइड्रेशन,लो ब्लड प्रेशर,सिरदर्द,थकान,बेहोशी,जबड़े और दानत कड़े हो जाना,लकवा,मिर्गी,भूख में कमी आदि चमकी बुखार की प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- वाइरस,वैक्टीरिया,फंगस,प्रोटोजोआ ,अत्यधिक गर्मी,शरीर में पानी की कमी,खून में शुगर एवं सोडियम की कमी,खली पेट लीची खाकर पानी पीना,मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन आदि चमकी बुखार की मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1)  चीनी ,नमक का घोल ,छाछ,शिकंजी लगातार एक -एक घंटे पर पिलाने से चमकी बुखार में बहुत राहत मिलती है और प्राण 

                     रक्षा हो जाती है ।

              (2) नीम्बू और पानी में थोड़ा सा नामक एवं चीनी मिलाकर प्रति घंटे पिलाने से चमकी बुखार से शरीर में होने वाली पानी की कमी को रोककर जान की रक्षा होती है ।

              (3) एलोवेरा जूस प्रति घंटे पिलाने से भी चमकी बुखार दूर हो जाती है।


              (4) गिलोय स्वरस प्रतिदिन तीन बार पिलाने से चमकी बुखार से मुक्ति मिलती है।

              (5) मठ्ठा ,लस्सी और बेल का शरबत पिलाने से भी चमकी बुखार में राहत मिलती है ।

                    (6) नारियल पानी के प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन से भी चमकी या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम रोग से बचाव हो जाता है ।


paralysis disease

लकवा या पक्षाघात रोग :- पक्षाघात या लकवा दिमाग का एक अत्यंत घातक रोग है,जो मस्तिष्क में रक्त का परिसंचरण ठीक तरीके से न होने की या रीढ़ की हड्डी में किसी बीमारी या विकार के कारण होता है।लकवा या पक्षाघात किसी एक मांसपेशी या समूह या शरीर के बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकता है।मस्तिष्क से अंगों में सन्देश पहुंचाने वाली तंत्रिकाओं एवं रीढ़ की हड्डी में विकार उत्पन्न होता है,तब प्रभावित अंग तक सन्देश नहीं पहुँचता है और उस अंग पर मस्तिष्क का नियंत्रण समाप्त हो जाता है।इसीलिए वह अंग निष्क्रिय हो जाता है ;इसे ही लकवा या पक्षाघात कहा जाता है।

लक्षण :- लकवा ग्रस्त अंगों में सुन्नपन होना,मांसपेशियों पर नियंत्रण न होना,शरीर के एक तरफ या दोनों तरफ के अंगों का प्रभावित होना,शारीरिक समन्वय में कमी,सिरदर्द,मुंह से लार गिरना,बोलने,सोचने,समझने,लिखने -पढ़ने में कठिनाई,साँस फूलना,मूत्राशय या आँतों के नियंत्रण में कमी,देखने -सुनने में परेशानी,उल्टी आदि लकवा या पक्षाघात के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- स्ट्रोक,आघात,जन्मदोष विकार,दवाओं का कुप्रभाव,मस्तिष्क में विकार,रक्त संचरण में बाधा,रीढ़ की हड्डी में खराबी आदि लकवा या पक्षाघात के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) उड़द,कौंच के बीज,एरंड मूल,बला,हींग और सेंधा नमक का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से लकवा या 

                    पक्षाघात की बीमारी ठीक हो जाती है।

               (2) बायबिडंग,अजमोद,पीपल,पीपलामूल,काली मिर्च,सोंफ,देवदारु,चीते की छाल,हरड़ और सेंधा नमक 10-10 ग्राम;सोंठ और 

                     विधायरा 100-100 ग्राम लेकर कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर 4-5 ग्राम प्रतिदिन सुबह -शाम गर्म जल के साथ सेवन 

                     करने से लकवा या पक्षाघात समूल नष्ट हो जाता है।

                (3) एरंडी का तेल,गंधक,हरड़,बहेड़ा,आंवला और शुद्ध गूगल समान भाग लेकर और एक -एक ग्राम की गोली बनाकर प्रतिदिन 

                      गर्म जल के साथ सेवन करने से लकवा या पक्षाघात की बीमारी दूर हो जाती है।

                (4) पुनर्नवा,देवदारु,गोखरू,गिलोय,एरंडमूल,अमलताश का गूदा समान भाग लेकर जौ कूट कर इसकी 25 ग्राम की मात्रा आधा 

                        लीटर जल में डालकर काढ़ा बनावें और जब 100  ग्राम शेष बचे तो उसमें 25 ग्राम एरंड का तेल और 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण 

                        मिलकर पिला देने से लकवा या पक्षाघात की बीमारी दूर हो जाती है।


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