mahapadmak

महापद्मक रोग :- महापद्मक बालकों को होनेवाला एक गंभीर रोग है,जो मूत्राशय एवं मस्तक में होता है। यह एक प्रकार का विसर्प रोग है,जिसमें विषाणु के संक्रमण से त्वचा की ऊपरी परत के द्वारा अपना स्रोत बना देता है। इस रोग में ज्वर इतना तीव्र हो जाता है कि मरीज की संज्ञा नष्ट हो जाती है और पीड़ित अत्यंत बेचैन हो जाता है। शरीर पर दाने लाल मिश्रित बुझे हुए अंगारे के समान,तो किसी में पीली एवं सफ़ेद फुंसियां शोथ युक्त होती है। इसमें चमड़े का फटना,पकना,ग्लानि,अरुचि आदि उपद्रव होते हैं। 

लक्षण : - अत्यधिक लाली युक्त त्वचा,सूजन,जलन,त्वचा पर छाले,तीव्र दर्द,अत्यधिक बुखार,सिरदर्द,जी मिचलाना,त्वचा की चमड़ी के नीचे फोड़ा,बेचैनी, बच्चों का लगातार रोना,शरीर व चेहरे पर छोटे -छोटे दाने,बच्चे की साँस असामान्य होना ,बच्चों का दूध न पीना आदि महापद्मक रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - विषाणु का संक्रमण,सेप्टीसीमिया कीटाणु महापद्मक रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार : - (1) 10 ग्राम चन्दन पाउडर,घी एवं कपूर 25 - 25 ग्राम सबको खरल कर दिन में तीन बार प्रभावित जगहों पर मालिश करने से महापद्मक रोग ठीक हो जाता है। 

(2) मुलहठी,खस,पद्माख समान भाग लेकर जल के साथ पीसकर दिन में तीन बार लेप करने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(3) बरगद,पीपल,गूलर,शिरीष एवं पाकड़ की छाल 10 - 10 ग्राम पीस कर दिन में तीन बार लेप करने से महापद्मक रोग ठीक हो जाता है। 

(4) हल्दी,दारु हल्दी,लाल चन्दन,शिरीष की छाल, छोटी इलायची,मुलहठी 5 - 5 ग्राम लेकर जल के साथ पीस कर उसमें घी मिलाकर लगाने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(5) नीम,बावची,एरंड के बीज एवं जड़,अंकोल समान भाग लेकर पीसकर छान लें और बकरी के मूत्र में खरल करके लेप करने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(6) त्रिफला,चिरायता,नीम के पत्ते,बांस के पत्ते, कुटकी,परबल के पत्ते,श्वेत चन्दन  2 - 2 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर पिलाने से महापद्मक रोग दूर हो जाता है। 

(7) बड़,गूलर ,पीपर ,पाकड़ ,वेंत ,जामुन ,मुलेठी ,मजीठ ,चन्दन खाश और पद्माख को बारीक पीसकर लेप करने से रोग नष्ट हो जाता है 

 बच्चों का लगातार रोना,शरीर व चेहरे पर छोटे -छोटे दाने,बच्चे की साँस असामान्य होना ,बच्चों का दूध न पीना आदि महापद्मक बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। 

 


Gudaapaak

गुदापाक रोग : - गुदापाक बच्चों को होने वाली एक अत्यंत कष्टप्रदायक रोग है। इसमें बच्चों का गुदा पाक जाता है यानि गुदा से निरंतर मवाद का स्राव होना शुरू हो जाता है। गुदापाक मल - मूत्र के अवरोध के कारण उदर में वायु का प्रकोप बढ़ जाने की वजह से भी हो सकती है। गुदापाक ही बढ़कर अहिपूतना का रूप धारण कर लेता है,जो बच्चों के लिए अत्यंत गंभीर एवं खतरनाक हो जाता है तथा जानलेवा साबित होता है। 

लक्षण :- गुदा का पक जाना,गुदा से स्राव होना,बुखार,अत्यंत दुर्बलता,आँखों का धंस जाना, उदर पीड़ा,मल मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना आदि गुदा पाक के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - मल मूत्र का अवरोध हो जाना,माता का गलत खान - पान,जीवाणुओं का संक्रमण,वायु,पित्त एवं कफ का दूषित हो जाना,माता का दूषित दूध पीना आदि गुदापाक के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :-(1) शंख सफ़ेद,सुरमा और मुलेठी को बारीक पीसकर लेप बनाकर लगाने से गुदापाक बहुत शीघ्रता से नष्ट हो जाता है ।

(2) काली मिर्च को नवनीत यानि नैनू के साथ खिलाने से बच्चों का गुदापाक नष्ट हो जाता है ।

(3) कबीला 4 माशा,हींग 1 माशा इनको बारीक पीसकर दही के तोड़ के साथ गोली मिर्च समान बनाकर दूध पीने वाले बच्चों को एक गोली गरम पानी के साथ खिलाने से गुदापाक नष्ट हो जाता है। 

(4) पेट पर रेंड़ी के तेल की मालिश कर ऊपर से बकाइन के पत्ते को हल्का गरम करके बांधने से मलावरोध दूर हो जाता है और गुदापाक में बहुत आराम मिलता है। 

(5) गोंद बबूल एवं मुसब्बर समान भाग घी कुवार के रस में मिलाकर पेट पर गुनगुना - गुनगुना कर लेप करने से मलावरोध दूर हो जाता है। 

(6) सेंधा नमक,सोंठ,हींग एवं भारंगी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर घी के साथ चटाने से मलावरोध दूर होकर गुदापाक को भी नष्ट कर देता है। 

(7) गुदापाक में पित्त को शमन करनेवाली चिकित्सा जैसे एक चम्मच अजवाइन को पानी में उबालें और पिलाने से भी गुदापाक ठीक हो जाता है। 

 


parigarbhik

परिगर्भिक रोग :- यह बच्चों की एक बीमारी है,जो गर्भिणी माता का दूध पीने से होता है।यह बीमारी दूसरे बच्चे के जन्म से पहले बड़े बच्चे को आकस्मिक दूध मिलना बंद हो जाने की वजह से भी अक्सर हो जाने की सम्भावना ज्यादा रहती है।परिगर्भिक बीमारी में शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध होने लगता है।इसे आयुर्वेद के आचार्य चरक ने इसे फक्का रोग के नाम से सम्बोधित किया है।जब गर्भिणी माता स्तनपान की अवधि के दौरान गर्भ धारण करती है तो दूध का स्राव न्यून हो जाता है।कम दुग्धपान की वजह से शिशु कुपोषित होने लगता है ;इसलिए इसे गर्भजा फक्का रोग भी कहा जाता है।

फक्का बीमारी के कई चरण होते हैं -(1)क्षीरजा फक्का रोग (2)गर्भजा फक्का रोग(3)व्याधिजा फक्का रोग ।

लक्षण :- परिगर्भिक रोग में गर्भिणी माता के दूध पीने से बच्चों को खांसी,वमन,मंदाग्नि,अरुचि,श्वांस जलन,भ्रम,तन्द्रा,दुर्वल ता,उदर का बढ़ना आदि प्रमुख लक्षण हो जाते हैं।

कारण  : - गर्भिणी माता का दूध बच्चों को पिलाना परिगर्भिक रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :-(1) विदारीकंद को गाय के दूध के साथ देने से परिगर्भिक बीमारी से उत्पन्न लक्षण नष्ट हो जाता है।

            (2) पिप्पली चूर्ण को घृत के साथ बच्चों को देने से इस बीमारी का नाश हो जाता है।

            (3) दूध के साथ भरपूर मात्रा में शहद मिलाकर देने से परिगर्भिक बीमारी दूर हो जाती है।

            (4) शक्कर को दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से भी परिगर्भिक बीमारी नष्ट हो जाती है।

सावधानियां : - इस बीमारी में माता का दूध पिलाना बंद कर गाय का दूध या दूध के स्थान पर वैकल्पिक पदार्थ जैसे दाल का पानी,दलिया आदि देना चाहिए ।


Vaayu Vikar

पेट में वायु या गैस :-लक्षण :-पेट का भारीपन ,मंदाग्नि ,भूख न लगना ,कब्ज ,मन किसी भी काम में न लगना ,अनिच्छा , खट्टी डकार आना ,वायु का पेट में इधर- उधर चलने जैसा अनुभव होना,गैस के कारण सीने में जलन होना ,पेट में कभी-कभी दर्द का होना इत्यादि । 

उपचार सामग्री : - (1)     (१) ५० ग्राम अजवाइन (२)५० ग्राम मेथी (३)  (५० ग्राम सोंठ  (४) एक छोटी डिब्बी हींग (५) स्वादानुसार काला नमक                                           

ऊपर वर्णित इन सब वस्तुओं को साफ कर एवं बारीक पीसकर कपड़छान कर लें और उसमें स्वाद केअनुसार काला नमक मिलाकर एक डिब्बे में रख लें और जब कभी भी पेट में गैस की समस्या हो आधा या एक चम्मच चूर्ण को गरम जल के साथ सेवन करने से पेट की गैस से तुरंत राहत मिलती है ।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि है, इसमें कोई संदेह नहीं है |                                                                                                     

 

    (2 )जटामांसी 100 ग्राम,मिश्री 200 ग्राम,दालचीनी 25 ग्राम,शीतल चीनी 25 ग्राम,सोंफ २५ ग्राम और सोंठ २५ग्राम सब को चूर्ण बनाकर मिला लें और 3 -6 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह -शाम सेवन करने से वायु विकार समाप्त हो जाता है ।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि है ।


Taalu Kantak

तालुकंटक रोग : - तालुकंटक दूध पीने वाले बच्चों की एक गंभीर बीमारी है ,जिसमें बच्चों के तालु में एक तरह की सूजन हो जाती है। तालु में सूजन की वजह से बच्चा माँ का दूध नहीं पी सकता है क्योंकि वह माँ के स्तन के निप्पल को दबा पाने में दर्द का अनुभव करता है। पतले दस्त डेन के रूप में बार - बार आता है एवं प्यास के कारण मुँह हमेशा सूखता रहता है। बच्चों की आँखें लाल हो जाती है एवं मुँह में पीड़ा के कारण बहुत रोता है। गर्दन में सूजन आ जाना भी इस बीमारी में आम बात है। बच्चा उल्टी करने लगता है,बुखार आ जाता है और कान की जड़ और नाक गर्म रहती है। साथ ही बच्चा बहुत बेचैन रहता है। 

लक्षण :- तालु में सूजन,पतले दस्त का होना,अधिक प्यास लगना,आँखें लाल हो जाना,मुँह में पीड़ा,गर्दन में सूजन,उल्टी,ज्वर,कान की जड़ और नाक गर्म रहना,मलद्वार से दाना के रूप में बार - बार गिरना,बहुत बेचैन रहना,दूध नहीं पीना,हमेशा आँखें बंद रखना,बहुत रोना,आदि तालुकंटक रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण : - माता का गलत खान - पान,माता का दूध दूषित हो जाना,दस्त का न होना आदि तालुकंटक रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार  : -   (1) हरड़, बच और कुटकी पानी में पीसकर लुगदी बना कर सहद में मिलाकर माता के दूध के साथ पिलाने से तालु कंटक रोग नष्ट हो जाता  है  अनुभूत औषधि है इसमें कोई संदेह नहीं ।

(2) पीपल की छाल,पीपल के पत्ते बारीक पीसकर शहद के साथ लेप करने से तालुकंटक रोग ठीक हो जाता है। 

(3) आम की बीजी,रसौंत,गेरू समान भाग लेकर कूट पीसकर कपड़छान कर शहद के साथ तालु में लेप करने से तालुकंटक रोग दूर हो जाता है। 

(4) बाबुल,जामुन,अमरुद एवं नीम की अंतर छाल को महीन पीसकर तालु पर लेप करने से तालुकंटक रोग ठीक हो जाता है। 

(5) काकड़ासिमी,अतीस,नागरमोथा,एवं पीपर समान भाग लेकर बारीक कूटपीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर चटाने से तालु कंटक रोग दूर हो जाता है।  


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