breast cancer

स्तन कैंसर रोग :- स्तन कैंसर महिलाओं को होने वाला एक आम खतरनाक बीमारी है,जो स्तन की कोशिकाओं में होता है।स्तन के सूक्ष्म वाहिनियों,फाइब्रस मैटेरियल,फैट नाडियों,रक्त वाहिकाएं एवं कुछ लिम्फेटिक चैनलों में गतिरोध आ जाना स्तन कैंसर का प्रमुख कारण हैं ।प्रारंभ में स्तन कैंसर डक्ट में छोटे कैल्सिफिकेशन (सख्त कण) के जमने से या स्तन के टिश्यू में छोटी गांठ के रूप में बनते हैं और कैंसर का रूप धारण कर लेते हैं।स्तन कैंसर में स्तन में गांठ,निपल से खून मिला हुआ रिसाव एवं निपल या स्तन की बनावट में परिवर्तन आ जाता है।

लक्षण :- स्तन में गांठ,निपल से खून मिला हुआ रिसाव,निपल के बनावट में परिवर्तन,असहजता,स्तन में दर्द,सूजन,चुचुक में परिवर्तन जैसे अंदर खिंच लिया गया हो आदि स्तन कैंसर के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- स्तन की कोशिकाओं का अनियंत्रित वृद्धि,आनुवांशिक कारण,दुग्ध वाहिनी में अवरोध,चोट लगने,बढ़ती उम्र,शराब का सेवन,धूम्रपान,रेडिएशन उपचार,एस्ट्रोजेन हार्मोन में वृद्धि आदि स्तन कैंसर मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1)  नमक,सोंठ,शमी,मूली,सरसों एवं सहजन के बीज समान मात्रा में लेकर खट्टे छाछ में पीसकर स्तनों 

                     पर लेप करने से स्तन कैंसर ठीक हो जाता है।

(2) आंवला का सेवन प्रतिदिन सुबह शाम करने से स्तन कैंसर ठीक हो जाता है।

(3) पोइ के पत्तों को पीसकर स्तन पर लेप करने से स्तन कैंसर ठीक हो जाता है।

(4) हर्बल ग्रीन के सेवन से भी स्तन कैंसर को समाप्त किया जाता है।

(5) अंगूर एवं अनार के जूस का प्रतिदिन सुबह शाम सेवन स्तन कैंसर में बहुत आराम होता है।

(6) काली चाय का प्रतिदिन सेवन करने से भी स्तन कैंसर की बीमारी ठीक हो जाती है।

(7) सदाबहार के फूलों का सेवन प्रतिदिन करने से भी स्तन कैंसर ठीक हो जाता है।


menopause

रजोनिवृत्ति  :- रजोनिवृत्ति महिलाओं के जीवन की वह अवस्था है ,जब एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का स्तर शरीर में काम हो जाता है।ज्यों-ज्यों हार्मोन का स्तर काम होता जाता है मासिक धर्म काम होते जाते हैं और अंततोगत्वा मासिक धर्म बंद हो जाता है।परिणामस्वरूप महिलाएं शरीर व व्यवहार में बहुत अधिक बदलाव महसूस करती हैं ।रजोनिवृत्ति एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ,जो प्रत्येक महिलाओं के जीवन में एक बार अवश्य आता है और उनके जीवन में उथल-पुथल मचा देता है ।

लक्षण :- गर्मी लगना,पसीना आना,उत्तेजित होना,नींद न आना,मानसिक स्थिति में उतार-चढ़ाव,सिरदर्द,योनि में रूखापन,यौनेच्छा में 

            कमी,सम्भोग के दौरान दर्द,त्वचा व बालों में रूखापन आना,वजन बढ़ना,मूत्रमार्ग में संक्रमण,पेशाब में वृद्धि,जोड़ों में दर्द,बालों का 

            गिरना,स्मरण शक्ति कमजोर हो जाना आदि रजोनिवृत्ति के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- हार्मोन्स एस्ट्रोजेन एवं प्रोजेस्ट्रोन का काम हो जाना,अंडाशय के स्वास्थ्य में कमजोरी,श्रोणि चोटें,अंडाशय के शल्य क्रिया द्वारा हटाया 

             जाना आदि रजोनिवृत्ति के मुख्य कारण हैं ।

जटिलताएं :- योनि के अस्तर का पतला हो जाना,दर्दनाक सम्भोग,मूत्र की अधिकता,ह्रदय रोग की संभावना,चयापचय में कमी,हड्डी कमजोर हो 

                  जाना,मोतियाबिंद,मनोदशा में परिवर्तन आदि आ जाना ।

उपचार :- (1) कैल्सियम आधारित खाद्य पदार्थों का प्रयोग अधिक मात्रा में करने से रजोनिवृत्ति में बहुत राहत प्रदान करती हैं ।

              (2) अनिद्रा के लिए व्यायाम -कसरत पर ज्यादा जोर देना ताकि थकान हो ताकि नींद आ सके या नींद की गोली का प्रयोग कर भी 

                   आराम से नींद आ सके ।

              (3) रजोनिवृत्ति के प्रभाव को कम करने के लिए नियमित व्यायाम करने की आदतों को डालने से इसके प्रभाव को कम किया जा 

                    सकता है ।

              (4) रजोनिवृत्ति के प्रभाव को कम करने के लिए पूरक आहार जैसे विटामिन डी,मैग्नेशियम,अलसी सोया मेलाटोनिन,विटामिन ई 

                   आदि से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ।

              (5) नॉन हार्मोनल वजाइनल मॉइश्चराइजर और लुब्रिकेंट का उपयोग द्वारा भी इससे होने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

              (6) रजोनिवृत्ति के प्रभाव को कम करने के लिए त्वचा की देखभाल से भी इससे उत्पन्न समस्या से मुक्ति प् सकते हैं ।

              (7) अच्छी नींद लेकर भी रजोनिवृत्ति से होने वाली समस्या से बचा जा सकता है ।

              (8) रजोनिवृत्ति के प्रभाव को कम करने के दौरान धूम्रपान एवं शराब के सेवन न कर  इसके दुष्प्रभाव को रोका जा सकता  है। 


dysmenorrhea disease

कष्टार्तव रोग :- कष्टार्तव स्त्रियों का एक अत्यंत कष्टदायक बीमारी है।मासिक धर्म के दौरान स्त्रियाँ मामूली दर्द का अनुभव करती हैं ;किन्तु जब असहनीय दर्द के कारण क्रियाकलाप में बाधा उत्पन्न होने लगती है या इलाज की आवश्यकता पड़ जाती है तो इसे कष्टार्तव रोग के नाम से जाना जाता है।कष्टार्तव में माहवारी के दौरान महिलाएं गर्भाशय में असहनीय पीड़ा का अनुभव करती हैं।कष्टार्तव मासिक धर्म के कई दिनों पूर्व से हो सकता है या उसके साथ हो सकता है और मासिक धर्म के समाप्त होते ही धीरे-धीरे काम होकर समाप्त हो जाता है। 

प्रकार :- यह तीन प्रकार के होते हैं - (1) आसंकुचन जन्य कष्टार्तव:- यह गर्भाशय में संकोच के कारण होता है ।यह 13 -18 वर्ष की उम्र में 

                                                       ज्यादा होता है।

                                                 (2) झिल्ली जन्य :- गर्भाशय के अंदर की झिल्ली गर्भाशय से बाहर आ जाती है। 

                                                 (3) रक्ताधिक्य कष्टार्तव :- मासिक स्राव के रक्त में अस्वाभाविक बढ़ोतरी के कारण होता है ।

लक्षण :-पेट के निचले भाग में दर्द,नाभि के आसपास दर्द,पेट के दाहिने या बायीं ओर दर्द,उल्टी,दस्त,कब्ज,सिरदर्द चक्कर आना,ध्वनि,प्रकाश,  

            गंध के प्रति अतिसंवेदनशीलता, मूर्च्छा,थकान आदि कष्टार्तव के प्रमुख लक्षण हैं ।  

कारण :- प्रोस्टाग्लैंडिन का स्तर बढ़ जाना, गर्भाशय में संकुचन,प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के कारण,गर्भाशय में फाइब्रॉएड,श्रोणिसूजन की 

             बीमारी,एडिनोमायोसिस ( गर्भाशय की दीवार के अंदर वृद्धि ),गर्भाशय का छोटा होना,आनुवंशिक कारण,उम्र से पहले युवावस्था तक 

              पहुंचना आदि कष्टार्तव के मुख्य कारण हैं ।

उपचार:-   (1) अशोक की छाल पांच ग्राम की मात्रा लेकर आधा लीटर पानी में उबालें और छानकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से 

                     कष्टार्तव रोग दूर हो जाता है ।

               (2) त्रिफला चूर्ण चार ग्राम की मात्रा गुनगुने जल के साथ रात्रि सोते समय प्रतिदिन लेने से कष्टार्तव रोग का नाश हो जाता है ।

               (3) टंकण भस्म यानि सुहागा भस्म,प्रवाल पिष्टी,अशोक चूर्ण एवं चंद्रप्रभावटी का उपयोग कष्टार्तव में अत्यंत उपयोगी है ।

               (4) अजवाइन चूर्ण 50 ग्राम,गाय का घी 50 ग्राम,गुड़ 100 ग्राम ; पहले कढ़ाही में घी डालकर उसमें अजवाइन चूर्ण एवं गुड़ 

                     डालकर मिलाएं और उतारकर प्रातः काल रोगिणी को खिला दें ।यह तीन-चार दिनों तक प्रयोग करने से कष्टार्तव रोग ठीक हो 

                      जाता है ।

               (5) काले तिल कपास की कोपलें,बांस की कोपलें 200 ग्राम लेकर महीन चूर्ण बनाकर पुराने गुड़ में मिलाकर गूलर के समान गोली 

                     बनाकर रख लें और प्रतिदिन एक -एक गोली सुबह-शाम गर्म जल के साथ सेवन करने से कष्टार्तव रोग का नाश हो जाता है ।


metrorrhagia disease

रक्त प्रदर रोग :- मासिक धर्म महिलाओं को होने वाला एक स्वाभाविक क्रिया है।जब गर्भाशय से रक्त स्राव असामान्य रूप से मासिक धर्मों के बीच में होने लगे तो इसे रक्त प्रदर की बीमारी कहा जाता है । रक्त प्रदर रोग में अधिक दिनों तक और अधिक मात्रा में रजःस्राव होता है,जिससे महिलाएँ रक्त की कमी एवं दुर्वलता की शिकार हो जाती हैं।रक्त प्रदर में माहवारियों के बीच गर्भाशय से रक्तस्राव कुछ सप्ताह में होता है और प्रवाह सामान्य से बहुत अधिक होता है।रक्त प्रदर महिलाओं के लिए अत्यंत कष्टप्रदायक स्थिति है;इसलिए तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।

लक्षण :- पेट दर्द या ऐंठन,नियमित मासिक धर्म के बीच भरी रक्तस्राव,गर्भाशय में दर्द,आँखों के सामने अँधेरा छा जाना,चक्कर आना,नींद एवं आलस्य,शरीर गर्म रहना,ज्यादा प्यास लगना,कमर में दर्द,योनि के ऊपरी हिस्से में दर्द आदि रक्त प्रदर के प्रमुख लक्षण हैं ।

कारण :- हार्मोनल असंतुलन,गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग,फाइब्रॉएड,गर्भाशय ग्रीवा या योनि की सूजन,गर्भाशय में संक्रमण,कैंसर,यौन 

             संचारित संक्रमण,गर्भपात के कारण,अस्थानिक गर्भावस्था,मधुमेह,थायराइड,खमीर संक्रमण आदि रक्त प्रदर के मुख्य कारण हैं ।

उपचार :- (1) बबूल या कीकर की कच्ची फली का चूर्ण ताजे जल के साथ सुबह - शाम सेवन  करने से सभी प्रकार के प्रदर का नाश हो 

                    जाता है। यह अत्यंत प्रामाणिक एवं निरापद है ।

               (2) अशोक की छाल 100 ग्राम, सफ़ेद चन्दन,कमल का फूल,धाय का फूल,अतीस,आंवला,नागरमोथा,जीरा और चहेते की छाल 

                     50 -50 ग्राम लेकर कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर दश ग्राम की मात्रा लेकर उसमें सामान भाग मिश्री मिलाकर खाने 

                     और ऊपर से चावल का पानी पाई से रक्त एवं श्वेत दोनों प्रकार के प्रदर का नाश शत प्रतिशत हो जाता है।

                (3) सोंफ और सोंठ दश -दश ग्राम,ऊन की रख,और आंवला बीस-बीस ग्राम,नागकेशर पांच ग्राम और मिश्री 100 ग्राम कूट पीस 

                    कपड़छान कर चूर्ण बनाकर पांच ग्राम की मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम धारोष्ण जो दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर 

                    का नाश हो जाता है।यह शत प्रतिशत अनुभूत एवं निरापद है ।

                (4) नागकेशर,खस पठानी,लोधा आंवला,100 -100 ग्राम,माजूफल और अशोक की छाल 100 ग्राम,पीपल की लाख 200 ग्राम 

                      कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पांच ग्राम की मात्रा दूब के रस के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर 

                       का नाश हो जाता है ।

                 (5) पीपल की लाख,नागरमोथा और सोना गेरू पांच-पांच ग्राम,बबूल का गोंद,रसोंत शुद्ध और दारु हल्दी 10 -10 ग्राम,मिश्री 20 

                       ग्राम सबको कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम 4 ग्राम की मात्रा  बकरी के दूध के साथ सेवन करने 

                       से रक्त प्रदर का समूल नाश हो जाता है।

                  (6) गूलर का फल (कीड़ा रहित) कूट पीस कपड़छान कर प्रतिदिन प्रातः काल पांच  ग्राम की मात्रा शहद के साथ सेवन करने से 

                        रक्त प्रदर का नाश हो जाता है।


menorrhagia disease

अत्यार्तव रोग :- के कारण होनेमहिलाओं में मासिक धर्म  वाला रक्तस्राव  सामान्य प्रक्रिया है,जो तीन-चार दिनों तक होता है ।किन्तु जब बहुत अधिक रक्तस्राव कोई बीमारी या अन्य कारणों से होता है तो इसे अत्यार्तव या भारी माहवारी रक्तस्राव के नाम से जाना जाता है।अत्यार्तव रोग में माहवारी के साथ योनि से लम्बे समय तक या बहुत अधिक मात्रा में रक्त का स्राव होता है। यह बहुत ही कष्टप्रदायक स्थिति महिलाओं के लिए होता है।इसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

लक्षण :- पेट में दर्द,निचली कमर का दर्द,स्तनों में दर्द,चिड़चिड़ापन,सिरदर्द,थकान,सप्ताह से ज्यादा रक्तस्राव,खून की कमी,श्रोणि का अधिक 

            दर्द,भूख की ज्यादा इच्छा,साँस की तकलीफ होना आदि अत्यार्तव के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- हार्मोनल असंतुलन,गर्भाशय फाइब्रॉएड,जीवाणु,गर्भनिरोधक उपकरण का प्रयोग,ग्रंथिपेशियों में कैंसर,गर्भाशय की  

             जटिलताएँ,थॉयराइड आदि अत्यार्तव के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) बबूल या कीकर की कच्ची फली का चूर्ण प्रतिदिन सुबह -शाम ताजे जल केa साथ सेवन करने से अत्यार्तव की बीमारी नष्ट हो 

                   जाती है। यह एकदम शत -प्रतिशत प्रामाणिक है तथा इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।

              (2) अडूसा,पित्तपापड़ा,खिलैटी,नीलोफर,लाल चन्दन,नीम की छाल,चार-चार ग्राम लेकर जौकूट कर आधा लीटर पानी में भिगों दें । 

                    तीन घंटे के बाद मल - मलकर छानकर रख लें और दो-दो घंटे के अंतराल पर पिलाने से अत्यार्तव रोग का नाश हो जाता है।

              (3) बादाम की गिरी पांच,छुआरा दो,रात को पानी में भिगों दें और सुबह बादाम का छिलका तथा छुआरे की गुठली निकालकर 

                   अलग-अलग पीस लें और उसमें केशर पांच ग्राम एवं मक्खन देश ग्राम मिलकर बासी मुँह कुछ दिन खिलाने से अत्यार्तव रोग का 

                   नाश हो जाता है ।

              (4) नागकेशर पांच ग्राम,मुक्त भस्म,बच्छनाग भस्म और संगजराहट भस्म एक-एक ग्राम । नागकेशर को बारीक चूर्ण बनाकर उसमें 

                   भस्में मिलाकर खरल कर आठ बराबर भागों में पुड़िया बना लें ।एक-एक पुड़िया सुबह-शाम सेवन करने से अत्यार्तव रोग का 

                    नाश हो जाता है ।

              (5) सफ़ेद बच 25 ग्राम कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुबह-दोपहर-शाम एक ग्राम की मात्रा ताजे ठन्डे जल के साथ सेवन करने से 

                   अत्यार्तव रोग का नाश हो जाता है ।

              (6) विदारीकंद चूर्ण एक चम्मच घी और शक्कर के साथ सुबह-शाम चाटने से अत्यार्तव रोग दूर हो जाता है।


puerperal fever

प्रसूतिका ज्वर:- प्रसूतिका ज्वर स्त्रियों को होने वाली एक अत्यंत खतरनाक एवं घातक रोग है।यह रोग एक प्रकार के जीवाणु या जहर के कारण होता है।प्रसूतिका या सूतिका ज्वर प्रसव के पहले या प्रसव के उपरांत महिलाओं को होने वाला एक बीमारी है।यह गर्भाशय में नारवेल का कुछ अंश रह जाने की वजह से होता है।यह बुखार बच्चों के जन्म देने के बाद तीन -चार दिन बाद होता है।प्रसूति काल में गर्भाशय में रक्त में विष प्रविष्ट हो जाने या दूषित कीटाणु के संक्रमण की वजह से होता है।

लक्षण :- सर दर्द,नाड़ी की गति तेज हो जाना,पेट दर्द,बुखार,पसीना न आना,स्तनों में दूध न आना,अरुचि,अनिद्रा,चक्कर आना,पेशाब का पीलापन आदि प्रसूतिका ज्वर के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- प्रसव के समय साफ -सफाई का ध्यान न रखना,गर्भ नाल काटते वक्त नाख़ून का लग जाना,बैक्टीरिया का संक्रमण होना,गर्भनाल के कुछ अंश का अंदर रह जाना आदि प्रसूतिका ज्वर के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) पीपल,पीपलामूल,काली मिर्च,सोंठ,अजमोद,भारंगी,हींग,इंद्रा जौ सबको मिलाकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह -शाम पीने से 

                    प्रसूतिका ज्वर ठीक हो जाता है।

              (2) पीपल,सोंठ,पीपलामूल,अजवाइन हल्दी सबको समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह -शाम पीने से प्रसूतिका ज्वर का 

                   नाश हो जाता है।

              (3) दालचीनी,सोंफ,धनिया,बेलगिरी समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह- शाम पीने से प्रसूतिका ज्वर नष्ट हो जाता है।

              (4) द्राक्षा,नागकेशर,काली मिर्च,तमालपत्र,छोटी इलायची,पीपर समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर चार -पांच ग्राम की मात्रा ताजे जल 

                   के साथ सेवन करने से प्रसूतिका ज्वर का नाश हो जाता है।

              (5) चन्दन की लकड़ी,तिन्तुक फल,मुस्तकमूल,क्षीरकाकोली मूल और बचाकन्द समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह - 

                    शाम पीने से प्रसूतिका ज्वर नष्ट हो जाता है।

               (6) कुठफल,देवदारु,गुग्गुल एवं घी के सेवन से प्रसूतिका ज्वर नष्ट होता है।


brucellosis disease

संक्रामक गर्भपात रोग:- संक्रामक गर्भपात रोग एक अत्यंत संक्रामक पशुजन्य रोग है।यह रोग पूरे संसार में मानवों,पालतू पशुओं एवं जंगली जानवरों में भी पाया जाने वाला रोग है।जब पशु चारे के साथ इस बीमारी के जीवाणुओं को अपने आहार के साथ ग्रहण करता है तो वह पशु ग्रसित हो जाता है।मनुष्य जब इन पशुओं का दूध,मांस आदि मानव ग्रहण करता है तो वह भी संक्रमित हो जाता है।इनके वाहक जीवाणु ब्रूसेला अबोर्टस,ब्रूसेला सुइस,ब्रूसेला ओबिस एवं ब्रूसेला कनिस आदि हैं,जो इस बीमारी के वाहक हैं।इन जीवाणुओं से स्त्रियों,पशुओं आदि का गर्भपात हो जाता है।

लक्षण:-योनि से भूरे रंग का रक्त का स्राव होना,पेट के निचले हिस्से में दर्द होना,स्तनों में कठोरता,कमर में दर्द,योनि से रक्त का थक्के के रूप में निकलना,पसीने का अधिक निकलना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- योनि में संक्रमण,बिना पाश्चुरीकृत दूध का सेवन करना,संक्रमित पशुओं का मांस भक्षण करना आदि संक्रामक गर्भपात के मुख्य कारण हैं।

उपचार:- (1) पाश्चुरीकृत दूध के सेवन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है।

             (2) एक चम्मच आंवला चूर्ण में शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से भी इस बीमारी से बचा जा सकता है।

             (3) लहसुन का रस और शहद मिलाकर सेवन से भी इस बीमारी से बचा जा सकता है।


cervical cancer

गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग :- गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग महिलाओं को होने वाला एक घातक रोग है,जिसे बच्चेदानी का कैंसर या सर्वाइकल कैंसर के नाम से भी जाना जाता है।यह आज वर्तमान समय में एक भयंकर बीमारी के रुप में अपना पाँव पसार रही है।बच्चेदानी का मुख गर्भाशय ग्रीवा के रुप में भी जाना जाता है,जो योनि को गर्भाशय से जोड़ता है।इसके दो मुख्य भाग हैं-(1) अंतर्गर्भाशय ग्रीवा और (2) बहिर्जरायुग्रीवा।

गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग की कई अवस्थाएं होती हैं-(1) प्रथम अवस्था में यह कैंसर बच्चेदानी के मुख तक ही सीमित रहता है।(2) दूसरी अवस्था में कैंसर बच्चेदानी के मुँह से आगे पहुँच जाता है।(3) तीसरी अवस्था में कैंसर योनि के निचले हिस्से या श्रोणि दीवार तक पहुँच जाता है।(4) चौथी अवस्था में कैंसर मूत्राशय एवं मलाशय अथवा शरीर के अन्य भागों तक फ़ैल जाता है।

कारण:- पहला कारण तो माहवारी के समय होने वाला इन्फेक्शन है,जो साफ- सफाई का ध्यान नहीं रखती है या एक ही सेनेटरी पैड का इस्तेमाल लम्बे समय तक करने के होता है।कुछ दवाओं जैसे गर्भ निरोधक गोलियों का लगातार इस्तेमाल भी कारण हो सकता है।कम उम्र में शादी,कई लोगों के साथ शारीरिक सम्बन्ध,जेनेटिक अथवा आनुवंशिक कारण,गर्भावस्था,मोटापा आदि प्रमुख कारण हैं।

लक्षण:- पेट में दर्द,थकान व कमजोरी,पीठ के निचले भाग में लगातार दर्द रहना,मीनोपॉज के बाद अकस्मात् रक्तस्राव शुरु हो जाना,यूरिन के साथ रक्त आना,भूख पर नियंत्रण न रख पाना,मलत्याग के समय दर्द होना,आदि गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

उपचार:- (1) हल्दी,दारू हल्दी एवं अम्बा हल्दी सबको समान मात्रा में लेकर कूट पीस कपड़छान कर रख लें और 

                   प्रतिदिन एक चम्मच ताजे जल या दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग 

                   का नाश हो जाता है।

              (2) बारडॉक रुट,जो इंफ्लेमेंटरी गुणों से भरपूर होते हैं ;के सेवन से गर्भाशय ग्रीवा कर्कट रोग का नाश 

                    हो जाता है।

              (3) सिंहपर्णी की जड़ के पाउडर को दो चम्मच तीन कप पानी में उबालें और ठंडा कर दिन में दो बार 

                    सुबह-शाम पीने से यह बीमारी दूर हो जाती है।

              (4) लहसुन का रस आधा चम्मच और अदरक का रस आधा चम्मच मिलाकर सुबह-शाम पीने से यह 

                    बीमारी नष्ट हो जाती है।

              (5) ग्रीन टी में एपीगैलोकैटेयिन की मात्रा बहुतायत में होतीं है,जो गर्भाशय ग्रीवा कर्कट या कैंसर रोग दूर 

                   होते हैं।


vaginal yeast infection

योनि शोथ:- आधुनिक वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं में योनि शोथ की एक बहुत ही गंभीर समस्या है।हर वर्ष इससे लाखों महिलाएँ पीड़ित होती हैं।वास्तव में यह संक्रमण प्रजनन के समय सबसे अधिक तेजी से होता है।योनि संक्रमण तीन प्रकार का होता है - (1) यीष्ट इन्फेक्शन-यह संक्रमण जननांगों में होने वाला फंगल संक्रमण है ,जो कैंडिडा एल्विकेंस कवक के कारण होता है।यह कवक (यीष्ट)पाचन तंत्र या योनि में पाया जाता है।जब व्यक्ति मुखमैथुन करता है तो मुख से योनि या योनि से मुख संक्रमित हो जाता है।कभी-कभी गर्भावस्था,अनियंत्रित शुगर या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण भी इन्फेक्शन हो जाता है।यह सेक्स के दौरान उनके पार्टनर को भी हो सकता है ;किन्तु यह यौन संचारित नहीं माना जाता है ,क्योंकि यह उन महिलाओं या लड़कियों को भी हो जाता है जो यौन रूप से सक्रिय नहीं होते हैं। (2) वैक्टीरियल इन्फेक्शन - यह संक्रमण वैक्टीरिआ के कारण होता है।(3) ट्रिकोमोनिसिस-यह संक्रमण यौन संचारित संक्रमण है।यह एककोशीय परजीवी ट्राइकोमोनास वैजिनैलिस के कारण होता है।

लक्षण:- योनि में खुजली,जलन या असहजता महसूस होना,योनि एवं योनि मार्ग में दर्द,सेक्स या मूत्र त्याग के समय जलन महसूस होना,सफ़ेद और गाढ़ा योनि स्राव होना,लाल चकत्ते या दाने होना आदि योनि शोथ के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- (1) गर्भावस्था (2) माहवारी (3) एस्ट्रोजेन का बढ़ा स्तर (4) शुगर (5) एन्टीवायटिक्स का ज्यादा इस्तेमाल के कारण (6) कैंसर का उपचार (7) यौन क्रिया में अधिक सक्रिय होना।

उपचार:-(1) लहसुन का पेस्ट तैयार और योनि के प्रभावित क्षेत्र में लगाने से योनि शोथ की बीमारी नष्ट होती है।

            (2) टी ट्री ऑयल को एक कप पानी में मिलाएं और उसमें एक चम्मच जैतून का तेल मिलाकर योनि के 

                  प्रभावित क्षेत्र में लगाने से योनि शोथ की बीमारी का नाश हो जाता है।

            (3) गेंदा के पत्तों को मसल कर योनि के प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से भी योनि शोथ नष्ट होता है।

            (4) दही में रुई के फाहे को डुबोएं और योनि के ऊपर रखने से योनि शोथ की बीमारी दूर होती है।

            (5) बोरिक एसिड एक चम्मच दो कप पानी में मिलाकर योनि पर लगाने से भी बीमारी दूर होती है।

            (6) मेथी के बीज दो चम्मच पानी में भिगोये और सुबह खली पेट पीने से भी योनि शोथ दूर हो जाता है।

            (7)हल्दी पाउडर दूध में मिलाकर प्रतिदिन सेवन से योनि शोथ की बीमारी दूर हो जाती है।

 

 

 

 

 

 


endometrial cancer

गर्भाशय कैंसर:- वर्तमान परिवेश में प्रदूषित एवं गलत खान-पान तथा भाग-दौड़ भरी जिंदगी के कारण मनुष्य स्वस्थ नहीं रह पाता है।महिलाओं की स्थिति तो स्वास्थ्य के मामले में और भी दयनीय है।महिलाओं के शरीर में गर्भाशय की आंतरिक परत की कोशकाएँ जरुरत से ज्यादा बढ़ जाती हैं तो गर्भाशय का कैंसर होता है।इसे बच्चेदानी का कैंसर भी कहते हैं।यह कोशकाएँ वृद्धि करके शरीर के अन्य भागों में भी फैला सकती है।गर्भाशय का आकार और संरचना नाशपाती जैसा होता है और यह जन्म लेने से पहले बच्ची महिलाओं के गर्भ के इसी हिस्से में रहते हैं।गर्भाशय के दो मुख्य भाग होते हैं -(1) गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) गर्भाशय का निचला हिस्सा है जो योनि में खुलता है। (2) गर्भाशय के ऊपरी भागों को कॉर्पस कहा जाता है।

गर्भाशय ग्रीवा भी गर्भाशय का ही भाग होता है।जब लोग गर्भाशय के कैंसर के बारे में बात करते हैं तो उनका मतलब कॉर्पस में कैंसर ही होता है न की गर्भाशय ग्रीवा में।

प्रकार:- गर्भाशय कैंसर के दो मुख्य प्रकार हैं- (1). गर्भाशय सार्कोमा -यह गर्भाशय की मांसपेशियों की परत या संयोजी ऊतकों में होनेवाला कैंसर है।(2).एंडोमेट्रियल कार्सिनोमा -यह गर्भाशय की भीतरी परत एंडोमेट्रियल कार्सिनोमा में होने वाला कैंसर है।गर्भाशय के लगभग सभी इसी प्रकार के होते हैं।

लक्षण:- रजोनिवृत्ति के बाद योनि से सफ़ेद पानी आना,मासिक धर्म के बीच में रक्तस्राव होना,मासिक धर्म का सामान्य से अधिक समय तक जारी रहना,अत्यधिक रक्तस्राव होना,पेट के निचले भाग में दर्द का अनुभव होना,सम्भोग काल में अधिक दर्द होना आदि।

कारण:-(1) प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजेन अंडाशय में बनने वाला सेक्स हार्मोन है।जब इनमें असंतुलन होता है तो वह 

                कैंसर का कारण होता है;क्योंकि इसकी वजह से गर्भाशय की दीवार मोती हो जाती है।

            (2) कुछ महिलाओं में रजोनिवृत्ति अधिक उम्र में होती है जो गर्भाशय कैंसर का कारण होती है।

            (3) मोटापा,शुगर और रक्तचाप भी गर्भाशय कैंसर का कारण होती है।

            (4) आनुवांशिक कारणों से भी गर्भाशय कैंसर होता है।

उपचार:- (1) सिंहपर्णी की जड़ के पाउडर को दो -तीन कप पानी में मिटटी के बर्तन में उबालें और ठंडा कर दिन 

                   में तीन बार सेवन करने से गर्भाशय कैंसर का नाश हो जाता है।

             (2) हल्दी,दारु हल्दी ,अम्बा हल्दी सबको सामान मात्रा में कूट पीस कपड़छान कर प्रतिदिन सुबह -शाम 

                   एक चम्मच ताजे जल या दूध के साथ सेवन करने से गर्भाशय कैंसर नष्ट हो जाता है।

             (3) अश्वगंधा पाउडर का सेवन प्रतिदिन सुबह -शाम करने से भी गर्भाशय कैंसर का नाश होता है।

             (4) नोनी फल या नोनी जूस के सेवन से गर्भाशय कैंसर का समूल नाश होता है।यह सौ फीसदी अचूक 

                   एवं अनुभूत है।

              (5) लहसुन में भी कैंसर रोधी गुण बहतयात रुप में होता है,इसलिए एक चम्मच लहसुन का रस और 

                    एक चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह -शाम सेवन करने से गर्भाशय कैंसर का नाश होता है। 

              (6) दूब घास के रस का सेवन भी गर्भाशय कैंसर को नष्ट करता है।

               (7) ग्रीन टी के प्रयोग से भी गर्भाशय कैंसर में बहुत फायदा होता है।


  बच्चों के रोग

  पुरुषों के रोग

  स्त्री रोग

  पाचन तंत्र

  त्वचा के रोग

  श्वसन तंत्र के रोग

  ज्वर या बुखार

  मानसिक रोग

  कान,नाक एवं गला रोग

  सिर के रोग

  तंत्रिका रोग

  मोटापा रोग

  बालों के रोग

  जोड़ एवं हड्डी रोग

  रक्त रोग

  मांसपेशियों का रोग

  संक्रामक रोग

  नसों या वेन्स के रोग

  एलर्जी रोग

  मुँह ,दांत के रोग

  मूत्र तंत्र के रोग

  ह्रदय रोग

  आँखों के रोग

  यौन जनित रोग

  गुर्दा रोग

  आँतों के रोग

  लिवर के रोग