pittatisar disease

पित्तातिसार रोग :- मानव जब नमकीन एवं खट्टी चीजों का अधिक सेवन करता है और मीठी चीजों का सेवन न के बराबर करता है,तब शरीर में पित्त की अधिकता हो जाती है और पित्त के अधिकता के प्रकोप या दोष के कारन अतिसार हो जाता है।इसे ही पित्तातिसार कहा जाता है।वास्तव में वह अतिसार रोग जो पित्त के प्रकोप या दोष से होता है।

लक्षण :- पीले,नीले या धूसर रंग के दस्त,प्यास और पेट में जलन,बेहोशी,पसीना आना,बार - बार उल्टी आना,पीली या धूसर रंग का दस्त आदि पित्तातिसार के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- पित्त की अधिकता के कारण हुए प्रकोप या दोष,ज्यादा नमकीन एवं खट्टी चीजों का प्रयोग करना,मीठी चीजें न के बराबर खाना आदि पित्तातिसार के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) कुटज की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पित्तातिसार का शमन होता है।

(2) कुटज की ताज़ी छाल को खट्टी छाछ के साथ पीसकर प्रतिदिन तीन बार दो -दो चम्मच पीने से पित्तातिसार नष्ट हो जाता है।

(3) कुटज के बीजों का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलकर पीने से पित्तातिसार नष्ट हो जाता है।

(4) कुटज की छाल 10 ग्राम और अनार का छिलका 10 ग्राम आधा लीटर जल में डालकर काढ़ा बनाकर पीने से पित्तातिसार समाप्त हो जाता है।

(5) मीठी छाछ का प्रयोग प्रतिदिन भोजन के उपरांत पीने से भी पित्तातिसार रोग का शमन हो जाता है।


amoebic dysentery disease

रक्तातिसार रोग :- रक्तातिसार अतिसार का ही एक रूप है,किन्तु इसमें मल के साथ रक्त आता है,इसलिए इसे रक्तातिसार कहा जाता है।यह बहुत ही कष्ट दायक एवं भयंकर रोग है।इस रोग में व्यक्ति बहुत दुर्बल हो जाता है।चलने-फिरने की शक्ति तक नहीं रहती है।बार-बार दस्त जाने पर मरोड़ के साथ मल कम रक्त एवं आँव की मात्रा अधिक होती है।

लक्षण :- मल में आँव के साथ रक्त का आना,बुखार का आना,जीभ का लाल होना,नाड़ी की गति क्षीण होना,आँतों में प्रदाह,शरीर में पानी की कमी होना,बार-बार प्यास लगना,शरीर में जलन होना,बेहोशी,गुदापाक आदि रक्तातिसार के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- कब्ज,अधिक मीठा खाना,आंत की सूजन,गर्म मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन,तली भुनी हुई चीजों का अधिक प्रयोग,आँतों में गंभीर संक्रमण,फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक                 प्रयोग आदि रक्तातिसार रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) चिरायता चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह शाम सेवन करने से रक्तातिसार दूर हो जाता है।

           (2) छोटी हरड़,सोंफ,सोंठ,बेलगिरी और पोस्तदाना को कूट पीसकर कपड़छान कर घी में भून लें और 

                    उसमें 250 ग्राम मिश्री मिलाकर प्रतिदिन दो -दो ग्राम की मात्रा ताजे जल के साथ सेवन करने से 

                     रक्तातिसार दूर हो जाता है।

              (3) सोंठ और गिलोय समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पिने से रक्तातिसार ठीक हो 

                   जाता है।

             (4) इन्द्र जौ और नगर मोथा के साथ काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 

                   रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।

             (5) छोटी हरड़ भुनी 2 ग्राम,जीरा सफ़ेद भुनी हुई 2 ग्राम और सोंफ 2 ग्राम तीन तीन घंटे पर देने से 

                   रक्तातिसार का नाश हो जाता है।

             (6) हरीतकी चूर्ण में 2 - 3 ग्राम गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से रक्तातिसार ठीक हो जाता है।

             (7) पत्थर चट्टा के पत्तों का रस 3  से  5  मिलीलीटर को 10 ग्राम घी एवं जीरे के साथ सेवन करने से 

                   रक्तातिसार नष्ट हो जाता है। 

             (8) चावल के धोवन  में 20 ग्राम चन्दन घिसकर मिश्री एवं शहद मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार नष्ट 

                   हो जाता है।

             (9) कदम के पेड़ की छाल के 10 -20 मिलीलीटर रस में जीरा और मिश्री का चूर्ण मिलाकर सेवन करने 

                   से रक्तातिसार दूर हो जाता है। 

             (10) गूलर के दूध को बताशे में डालकर खाने से रक्तातिसार दूर हो जाता है


amoebic dysentery disease

आमातिसार रोग :- आमातिसार एक अत्यंत कष्टदायक रोग है,जो अमीबा जीवाणु के कारण होता है,इसलिए इसे अमीबिक प्रवाहिक अतिसार के नाम से भी जाना जाता है।इस रोग में शरीर से चिकना,सफ़ेद,लसदार मल बार-बार मरोड़ के साथ निकलता है। रोगी बहुत जल्द दुर्बल हो जाता है,आँखें धँस जाती है और बार-बार दस्त लगती है,जिसमें मल कम आँव की मात्रा ज्यादा होती है।एक-दो दिन में ही व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है।

लक्षण :- मल के साथ आँव या कफ का आना,मितली,उलटी,पेट,नाभि में दर्द,भूख कम हो जाना,अधिक प्यास लगना,पेट में गुड़गुड़ाहट होना,दुर्बलता,किसी काम में मन न लगना,शरीर में पानी की कमी हो जाना,शरीर में कंपकंपी,बेचैनी,आँखें बैठना,जीभ मैली होना,नब्ज की गति धीमी होना,पानी जैसा मल आना,पसीना आना,सिरदर्द  आदि आमातिसार रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

 कारण :- खान-पान की गड़बड़ी,फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक सेवन करना,शराब का सेवन,दस्तावर खाद्य पदार्थों का सेवन,रात में अधिक जागना,उत्तेजक खाद्य पदार्थों का सेवन करना,बैक्टीरिया,वाइरस आदि का संक्रमण,मल के वेग को रोकना,म्यूकस कोलाइटिस,अल्सरेटिव कोलाइटिस आदि आमातिसार के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) बेलगिरी का मुरब्बा दिन में तीन बार खाने से आमातिसार का नाश हो जाता है।

              (2)इसबगोल की भूसी,तुख्मलंगा,तुख्मरिहाँ समान भाग लेकर पांच ग्राम की मात्रा दही में मिलाकर 

                  सेवन करने से आमातिसार रोग ठीक हो जाता है।

              (3) सोंफ एवं पोदीना का अर्क दिन में तीन बार लेने से आमातिसार का नाश हो जाता है।

              (4) आम की छाल,जामुन की छाल,बबूल की छाल एवं अमरुद की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से 

                    आमातिसार अतिशीघ्र दूर हो जाता है।

              (5) पीपरमेंट 5 ग्राम,अजवाइन सत 10 ग्राम और कपूर 20 ग्राम एक शीशी में डालकर रख दें। कुछ 

                    समय पश्चात् गल जाने पर उसकी 15 - 20 बूंदे जल में डालकर सेवन करने से आमातिसार एवं 

                    उससे लगने वाली प्यास नष्ट हो जाती है। 

              (6) कच्चे केले को पानी में पकाकर सूखा लें और इसका महीन आटा बनाकर उसमें थोड़ा सा सूजी या 

                   आटा मिलाकर रोटी बनाकर खाने से आमातिसार में लाभ मिलता है।


hemolytic uremic syndrome

हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम :- हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम एक अत्यंत कष्टदायक रोग है,जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली की एक प्रतिक्रिया के कारण लाल रक्त कोशिकाओं व प्लेटलेट्स का स्तर कम हो जाने के कारण किडनी क्षतिग्रस्त होकर ख़राब हो जाती हैं।यह समस्या जठरांत्र पथ में इन्फेक्शन होने की वजह से होती है और यह संक्रमण ई कोली नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।इसके अतिरिक्त संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने एवं कच्चे भोज्य पदार्थों के सेवन से भी यह बीमारी फैलने या होने की ज्यादा सम्भावना होती है।

लक्षण :- दस्त के साथ खून आना,पेशाब कम और खूनयुक्त आना,पेट दर्द,उलटी,बुखार,पीलापन युक्त त्वचा,मुँह एवं नाक से खन आना,थकन,उलझन,मिर्गी के दौरे,उच्च रक्तचाप,हाथ,पैर,चेहरे पर सूजन आदि ।

कारण :- ई कोली बैक्टीरिया के कारण,संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से,अधपके भोजन एवं पेय पदार्थों के सेवन से,जैसे-दूध व मांस ।

उपचार :- (1) 200 ग्राम गोखरू को तीन लीटर जल में उबालें और जब एक लीटर बच 

                    जाये तो छानकर एक साफ बोतल में रख लें और सुबह शाम 100 ग्राम 

                    की मात्रा पीने से हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम ठीक हो जाता है।

              (2) सेब के सिरके के प्रतिदिन सेवन से हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम का 

                   नाश हो जाता है।

              (3) मुनक्के के चार -पाँच दानों को बीज रहित करके रात में पानी में भिगों दें 

                   और सुबह इस दानेके सेवन से हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम दूर हो 

                    जाता है।

              (4) एलोवेरा जूस के प्रतिदिन सेवन से भी हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम 

                   का नाश हो जाता है।

              (5) खीरा एवं लौकी के जूस का सेवन सुबह-शाम करने भी हीमोलाइटिक 

                   यूरीमिक सिंड्रोम दूर हो जाता है। 


crohns disease

क्रोहन रोग :- क्रोहन की बीमारी एक पुरानी सूजन की बीमारी है,जो पाचन तंत्र में होती है।क्रोहन रोग एक प्रकार का प्रतिरक्षित रोग है,जिसमें मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद की आंत्र प्रणाली पर हमला करती है और उनमें सूजन,लालिमा,जलन व दर्द उत्पन्न करती है।वास्तव में यह रोग एक दीर्घकालिक स्थिति है,जिसमें शरीर के पाचन तंत्र की परत में सूजन व लालिमा पैदा हो जाती है,जिसमें डायरिया (दस्त) और पेट में ऐंठन जैसी समस्यायें होने लगती है।यह रोग ज्यादातर 13 -30 साल तक के आयु वर्ग के लोगों में होता है और उन्हें विकसित एवं बढ़ने में काफी दिक्क्तें होती हैं ।आधुनिक चिकित्सा पद्धति में सर्जरी के अलावा कोई इलाज नहीं है।केवल आयुर्वेद में क्रोहन रोग को जड़मूल से ठीक किया जा सकता है।

लक्षण :- पेट में दर्द,अधिक दिनों तक दस्त,बुखार,आंत में सूजन,वजन काम होना,मल में खून आना,आंत की दीवार में छेद हो जाना,आंत में संकुचन या ब्लॉक होना आदि क्रोहन रोग के प्रमुख लक्षण हैं ।

कारण :- आनुवंशिक कारण,आंत में किसी विशेष बैक्टीरिया के ऊपर प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा असाधारण तरीके से प्रतिक्रिया करना,बैक्टीरिया,वायरस का संक्रमण,धूम्रपान,तनाव,दवाओं का साइड इफेक्ट आदि क्रोहन रोग के मुख्य कारण हैं ।

सावधानियां :- तरल पदार्थों का सेवन,फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन,थोड़ा-थोड़ा भोजन कई बार करना,खाद्य पदार्थों के लिए एक डायरी बनाना ,जिससे उन पदार्थों की पहचान की जा सके जो समस्याएं पैदा करते हैं।कम वसा वाले खाद्य पदार्थ का सेवन,कम नमक वाले खाद्य पदार्थ का सेवन करना क्रोहन रोग में लाभकारी होता है।

उपचार :- (1) हल्दी,दारू हल्दी,अम्बा हल्दी,बच,नागरमोथा सामान भाग लेकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन ताजे जल के साथ सुबह - शाम सेवन 

                    करने से क्रोहन रोग ठीक हो जाता है ।

              (2) अदरक का रस,तुलसी के पत्ते का रस सामान भाग लेकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से क्रोहन रोग ठीक हो जाता है ।

              (3) लहसुन की चार-पांच कलियों को पीसकर पेस्ट बनाकर शहद के साथ प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से क्रोहन रोग ठीक हो 

                    जाता है ।

              (4) एलोवेरा जूस 30 एम एल की मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से क्रोहन रोग ठीक हो जाता है।

              (5) गाजर का रस,चुकुन्दर का रस और शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से क्रोहन रोग ठीक हो जाता है।

              (6) नारियल पानी का प्रतिदिन सेवन भी क्रोहन रोग में लाभकारी सिद्ध होता है ।

              (7) गिलोय स्वरस का प्रतिदिन सेवन भी क्रोहन रोग को ठीक कर देता है ।


vomiting disease

उल्टी या वमन रोग :- उल्टी या वमन रोग अत्यंत ही कष्टकारी एवं मन को विचलित करने वाला रोग है।आमाशय के अंदर के पदार्थों का बाहर निकलने को उल्टी या वमन कहते हैं।यह कई कारणों से हो सकते हैं - जैसे पेट में गैस बन जाने,जहरीले पदार्थ के सेवन,मस्तिष्क ट्यूमर,पेट में कृमि होने,आमाशय में संक्रमण आदि ।वमन होने पर शरीर में जल की कमी हो जाने पर रोगी को शिराओं के द्वारा जलीय घोल देना अनिवार्य हो जाता है।नमक या नेचुरल इलेक्ट्रोलाइट युक्त पदार्थों का सेवन द्वारा वमन के कारन शरीर में जल की कमी को पूरा किया जाता है ।

लक्षण :- जी मिचलाना,पेट में गुड़गुड़ाहट,बेचैनी,सिरदर्द,पेट दर्द,बुखार,चक्कर आना,किसी काम में मन न लगना,आलस,थकान आदि उल्टी 

            या वमन के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- अजीर्ण,कृमि,जरायु के विकार,यकृत विकार,वायु विकार,जहर का दुष्प्रभाव,मस्तिष्क का ट्यूमर,वैक्टीरिया का संक्रमण,प्रदूषित खाद्य 

             पदार्थ का सेवन,गर्भावस्था आदि उल्टी या वमन के मुख्य कारण हैं ।

उपचार :- (1) अडूसा क्वाथ 10  ग्राम, शहद 10  ग्राम,पिपरमेंट 100  ग्राम मिलकर दिन में तीन बार सेवन करने से उल्टी या वमन शीघ्र आराम 

                    हो जाता है ।

              (2) पिपरमेंट 5 ग्राम,अजवाइन सत 10 ग्राम और कपूर 20 ग्राम लेकर एक कांच की शीशी में डालकर रख दें।कुछ समय में गल 

                   जाने  पर अमृतधारा तैयार हो जाएगी ।इसकी 10 बून्द बताशे में डालकर खाने से उल्टी या वमन शीघ्र दूर हो जाती है ।

              (3) लगे हुए पान में पिपरमेंट रख कर खाने से भी वमन की समस्या दूर हो जाती है ।

              (4) गन्ने के रस में थोड़ा सा वर्फ एवं आधा चम्मच नीम्बू का रस मिलकर पीने से उल्टी या वमन रुक जाती है ।

              (5) पानी में पुदीना अर्क की चार-पांच बुँदे और जरा सा कपूर डालकर पीने से उल्टी या वमन रुक जाती है ।

              (6) एक चुटकी हींग और तीन-चार लौंग को पीसकर आधे कप पानी में घोलकर पीने से उल्टी या वमन रुक जाती है ।

              (7) एक कप अनार के रस में 2 ग्राम इलायची का चूर्ण मिलकर पीने से उल्टी या वमन रुक जाती है।

              (8) 10 ग्राम सोंफ को आधा लीटर पानी में उबालें और छानकर कांच की बोतल में रख लें और पीते समय इसमें थोड़ी सी खंड मिला 

                    कर प्रतिदिन पीने से उल्टी या वमन रुक जाती है ।

              (9) प्याज का रस और नीम्बू का रस एक -एक चम्मच और आधा चम्मच पुदीने का रस मिलाकर पीने से उल्टी या वमन बहुत जल्द 

                   आराम हो जाता है ।

              (10) हरा धनिया और पुदीना दोनों की चटनी बनाकर उसमें भुने हुए जीरा का चूर्ण 4 ग्राम,2 ग्राम कला नमक और 1 ग्राम काली 

                     मिर्च चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से उल्टी या वमन ठीक हो जाता है । 


anorexia disease

क्षुधा नाश रोग या भूख की कमी का रोग :- मानव की भागदौड़ की जिंदगी एवं व्यस्त जीवन शैली के उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है ।परिणामस्वरूप वह अपने खान -पान का ध्यान नहीं रख पाता है ,जिसके कारण उसे भूख की कमी का पता नहीं चलता है।भूख की कमी एक गंभीर मनोवैज्ञानिक स्थिति है और खाने का एक विकार है ।यह अक्सर चिंता,तनाव और अवसाद जैसी मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है,जिसे नजरअंदाज करना एक बहुत गंभीर संकट को निमंत्रण देने जैसा है ।

लक्षण :- भूख की कमी,बेचैनी,थकान,हाइपरटेंशन,चक्कर आना,शरीर का ताप काम होना एवं हाथ पैर ठन्डे होना,रूखी त्वचा,हाथ-पैर में सूजन,गंजापन या बालों का झड़ना,मासिक धर्म में अनियमितता,बाँझपन,अनिद्रा,नाख़ून का नाजुक होना आदि क्षुधा नाश रोग के प्रमुख लक्षण हैं ।

कारण :- मनोवैज्ञानिक कारण,अवसाद एवं चिंता,नकारात्मक छवि,वजन एवं आकार के बारें चिंतित होना,पर्यावरणीय कारक,कब्ज,पेट के वाइरस आदि क्षुदा नाश रोग के मुख्य कारण हैं ।

उपचार :-  (1) करौंदे का रस एक चम्मच,नीम्बू का रस एक चम्मच और एक चम्मच शहद को एक कप पानी में मिलाकर प्रातः खली पेट पीने 

                    से भूख में कमी का रोग दूर हो जाता है।

                (2) अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उसके ऊपर सेंधा नमक बुरककर खाना खाने से आधा घंटा पहले खाने से भूख की 

                      कमी या क्षुदा नाश रोग दूर हो जाता है।

                (3) आधा चम्मच गुड़ पाउडर एवं काली मिर्च को मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने से भूख की कमी का रोग दूर हो 

                       जाता है।

                (4) छोटी इलायची के प्रतिदिन सेवन से भूख की कमी कुछ ही दिनों में दूर हो जाती है।

                (5) अजवाइन की आधा चम्मच खाना खाने के बाद सेवन करने से भूख की कमी या क्षुधा नाश रोग दूर हो जाता है।

                (6) सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर एक कप पानी में डालकर उबालें और उसमें दालचीनी और मीठा करने के लिए शहद 

                      मिलाकर पीने से भूख की कमी दूर हो जाती है।

                 (7) धनिया के रस में आधा चम्मच नीम्बू रस और एक चुटकी काला नमक मिलाकर पीने से क्षुधा नाश रोग दूर हो जाता है।

                 (8) एक कप पानी में लहसुन की चार-पांच कलियाँ पानी में उबालें और उसमें एक चम्मच नीम्बू का रस निचोड़ कर प्रतिदिन 

                       सुबह -शाम सेवन करने से क्षुधा नाश रोग दूर हो जाता है।


diabetes disease

मधुमेह रोग:-मधुमेह एक अत्यंत खतरनाक रोग है,जिसमें रक्त में मौजूद शुगर या ग्लूकोस का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।यह रोग आजकल किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है,यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं।हम जिस भी खाद्य पदार्थ का सेवन करते हैं ,उससे हमें ग्लूकोस मिलता है और इन्सुलिन हार्मोन इस ग्लूकोस को शरीर की कोशिकाओं में जाने में मदद करता है ताकि उन्हें शक्ति मिल सके।इन्सुलिन हार्मोन की कमी ही मधुमेह का मुख्य कारण है।जब इन्सुलिन की कमी हो जाती है तो रक्त में ज्यादा ग्लूकोस आँखों,किडनी और नसों को नुकसान पहुँचाने लगती है जो जानलेवा बीमारियों का रूप धारण कर लेती है।वास्तव में पैंक्रियाज की ग्रंथियों का ठीक प्रकार से काम न करना ही मधुमेह रोग का मुख्य कारण है।

लक्षण:-बार-बार पेशाब आना,मुँह सूखना,तेज प्यास व भूख लगना,त्वचा में खुजली,नजर कमजोर होना और धुंधला दीखना,वजन बढ़ना या असामान्य काम होना,घाव या कट जल्दी ठीक न होना,थकन,पुरुषों में यौन समस्याएं,हाथ-पैरों में गुदगुदी महसूस होना या सुन्न होना,मसूड़ों से खून आना आदि मधुमेह रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- पैंक्रियाज ग्रंथि के ठीक से काम न करना,इन्सुलिन हार्मोन का कम होना,रक्त में शुगर अधिक होना,आनुवंशिक कारण,मोटापा आदि मधुमेह के मुख्य कारण हैं।

उपचार:- (1) गुड़मार की कुछ पत्तियों को चबाकर खाने या इसकी पत्तियों की चाय बनाकर प्रतिदिन पीने से मधुमेह रोग से मुक्ति मिल जाती है।

             (२) आम की अंतर छाल,नीम की अंतर छाल,जामुन की अंतर छाल,बाबुल की अंतर छाल                              अमरुद की अंतर छाल सबको समान 

                  भाग लेकर काढ़ा बनाकर पीने से मधुमेह रोग समूल नष्ट हो जाता है।

             (3) जामुन के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन दो ग्राम की मात्रा मट्ठे के साथ सुबह -शाम                      सेवन करने से मधुमेह का नाश हो 

                  जाता है।

             (4) त्रिफला चूर्ण एक चम्मच गुनगुने जल के साथ सेवन करने से मधुमेह का नाश हो जाता है।

             (5) करेले का रस के सेवन से भी मधुमेह का नाश हो जाता है।

             (6) शिलाजीत चूर्ण प्रतिदिन 50 एम् जी सेवन करने से भी मधुमेह का नाश हो जाता है।

             (7) बेल के पत्ते को पीसकर रस निकाल लें और काली मिर्च का चूर्ण एक चुटकी मिलकर सेवन करने से मधुमेह का नाश हो जाता 

                   है।

             (8) मेथी के बीजों का चूर्ण एक चम्मच प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से मधुमेह का नाश हो जाता है ।


dysentery disease

पेचिश या प्रवाहिका रोग:- पेचिश या प्रवाहिका पाचन तंत्र का एक गंभीर अतिसार रोग है।इसमें मल में रक्त एवं श्लेष्मा की उपस्थिति होती है।पाचन ठीक से न होने के कारण मल के साथ श्लेष्मा एवं कफ निकलता है।प्रवाहिका में विकृति बड़ी आंत में होता है।इस रोग में कीटाणु मुख मार्ग से शरीर में प्रवेश कर आँतों में अपना घर बना लेते हैं।यह वर्षा काल में अधिक होता है।

लक्षण:- उदर में मरोड़ और दर्द,दस्त बार-बार होना,मुँह सूखना,प्यास,अत्यधिक क्षीणता,पेट में दर्द,बेचैनी,नाड़ी की गति मंद हो जाना,आँखें बैठी सी हो जाना,मल में रक्त एवं श्लेष्मा का आना आदि पेचिश या प्रवाहिका के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- अशुद्ध जल एवं खाद्य पदार्थों का सेवन करना,अधिक शराब पीने से,पक्वाशय दूषित होने से,अनिद्रा,अधारणीय वेग को रोकने के कारण आदि प्रवाहिका या पेचिश के कारण हैं।

उपचार:-(1) नीम की निबौली की मिंगी 20 ग्राम,आम की अंतर छाल 50 ग्राम,महावृक्ष की अंतर छाल 20 ग्राम,आम की गुठली की मिंगी 10 ग्राम 

                 सबको छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन सुबह-दोपहर-शाम बासी जल या ताजे मट्ठे के साथ सेवन से प्रवाहिका का नाश हो 

                 जाता है।

            (2) काली मिर्च का चूर्ण 4-5 ग्राम प्रतिदिन तीन बार ताजे जल के साथ सेवन करने से प्रवाहिका का नाश होता है।

            (3) छोटी पीपल का चूर्ण 4-5 ग्राम की मात्रा जल के साथ प्रतिदिन तीन चार बार सेवन करने से प्रवाहिका या पेचिश का नाश होता है।  

            (4) बेल के गूदे में गुड़ को पानी में मिलाकर पीने से प्रवाहिका या पेचिश का नाश हो जाता है।

            (5) छाछ या संतरे के जूस के सेवन से प्रवाहिका या पेचिश नष्ट हो जाती है।


fistula disease

 

भगन्दर रोग:- भगन्दर गुदा द्वार में होने वाला एक अत्यंत पीड़ादायक रोग है,जो भगन्दर पीड़िका से उत्पन्न होता है।इस रोग में मल द्वार पर फोड़ा पैदा होकर गुदा के अंदर तथा बाहर नली के रुप में घाव (व्रण) उत्पन्न करता है।फोड़ा फूटकर उसमें मवाद और दूषित रक्त बहने लगता है,जो अत्यंत दर्दनाक रुप धारण कर लेता है।इसे नालव्रण या नासूर रोग भी कहा जाता है।चटपटी चीजें अधिक खाने की वजह भी एक प्रमुख कारण है।भगन्दर एक छोटी नली सामान होता है,जो आंत के अंत के भाग को गुदा के पास त्वचा से जोड़ देता है।

लक्षण:- कब्ज होना,गुदा के आसपास सूजन,मल त्याग के समय दर्द,बुखार,ठण्ड लगना,थकान महसूस होना,पाखाना से बदबूदार पस या रक्त आना,गुदा में बार-बार फोड़े होना,उठते-बैठते या खांसते समय गुदा में दर्द होना,पैखाना की हाजत महसूस होने पर संयम रख पाना आदि भगन्दर के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण:- गुदा मैथुन में लिप्त होना,मोटापा,चटपटी चीजों का ज्यादा प्रयोग करना,डायविटीज होना,अत्यधिक शराब पीना,गुदा में चोट लगने के कारण,धूम्रपान करना,साईकिल लम्बी दूरी तक चलना,लम्बे समय तक कब्ज से ग्रसित होना,जंक फ़ूड,तली-भुनी,तेल,मिर्च -मसाला युक्त खाद्य पदार्थ का अधिक सेवन करना आदि भगन्दर के मुख्या कारण हैं।

उपचार:- (1) लहसुन को पीसकर घी में भून कर भगन्दर के घाव पर लेप करने से भगन्दर रोग दूर हो जाता है।

             (2) नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर के घावों पर लगाने से यह रोग नष्ट हो जाता है।

             (3) अनार के पत्तों का रस भगन्दर के घावों लगाने से भगन्दर रोग का नाश हो जाता है।

             () गिलोय,चमेली के पत्ते शुंठी एवं सेंधा नमक को कूट पीस कपड़छान कर उसमें मट्ठा मिलाकर

                  भगन्दर के व्रणों पर लगाने से भगन्दर रोग ठीक हो जाता है।

             (5) हल्दी पाउडर में आक का दूध मिलकर बत्ती बनाकर भगन्दर के घावों पर लगाने से भगन्दर रोग

                   का नाश हो जाता है।

             (6) समलैंगिक सहवास से दूर रहकर भी भगन्दर से बचा जा सकता है

 

 


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