corona virus infection disease

 कोरोना वायरस संक्रमण रोग :- कोरोना वायरस संक्रमण रोग आज सम्पूर्ण विश्व में एक महामारी के रूप में अपना पांव पसार चुकी हैं।यह महामारी चीन के वुहान शहर से उत्पन्न होकर आज पूरे विश्व को अपने आगोश में ले चुकी है और इस बीमारी का कहर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।इस वायरस को वुहान कोरोना वायरस के नाम से भी जाना जाता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने इस वायरस को नोबेल COVID - 19 नाम दिया है। कोरोना वायरस का आकार मुकुट की तरह और उस पर उभरे हुए कांटे की जैसी संरचना की तरह दिखाई देने के कारण इसका नामकरण हुआ है।यह वायरस कई प्रकार के वायरसों का एक समूह है,जो खास कर जीवित या मृत पशुओं,पक्षियों, स्तनधारियों,समुद्री जीवों आदि के बेचने और खरीदने साथ ही भक्षण से मानव में आया और वहीं से पूरे विश्व में फ़ैल गया है।यह वायरस चमगादड़ में पाया जाता है ।यह वायरस चमगादड़ से पेंगोलिन में आया और पेंगोलिन से मानव में आया।तत्पश्चात संक्रमित मनुष्य में और फिर संक्रमित मनुष्य से उसके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति इससे संक्रमित होकर इस कड़ी को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहा है।कोरोना वायरस एक बड़े गोलाकार कणों के रूप में लगभग 120 नैनोमीटर के आकार में एक झिल्ली जो चर्बी और प्रोटीन युक्त आवरण की संरचना से बना होता है,जो इसका सुरक्षा कवच का काम भी करता है।।इस वायरस में एकल RNA से युक्त जीनोम होता है ,जिसका आकार 27 - 34 किलो बेस के आसपास पाया जाता है।बड़े विश्वास के साथ कहा जा रहा है कि इस वायरस का जीनोम बिलकुल चमगादड़ में पाए जाने वाले जीनोम से मिलता - जुलता ही पाया गया है। इसी कारण कोरोना वायरस का उद्गम चमगादड़ से माना जाना ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है।  यह वायरस आज अपना तांडव इस कदर बरपा रहा है कि अमरीका,स्पेन,इटली,फ़्रांस जैसी महाशक्तिशाली देश भी इस बीमारी के सामने बेवश नजर आ रहा है।आज तक इस कोरोना वायरस महामारी ने लगभग 18 लाख लोगों  को संक्रमित कर दिया है और लगभग एक लाख से अधिक लोग काल कवलित को गए हैं और ऐसा लग रहा है कि इस महामारी से मरने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन और भी अधिक होने की सम्भावना है।

लक्षण :- सर्दी,जुकाम,सूखी खांसी और कुछ देर तक लगातार खांसी,तेज बुखार,नाक बहना,साँस लेने में दिक्कत,गले में खराश,गले में दर्द,सिरदर्द,डायरिया,खाने में स्वाद का आभाव,गंध को महसूस करने में भी परेशानी,संक्रमित होने के लक्षणों में 5 से 14  दिनों का समय,फेफड़ों में गंभीर संक्रमण, ठंड का अनुभव करना,मांसपेशियों में दर्द,थकान,शरीर के अंगों का काम करना बंद कर देना,शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति का ह्रास आदि कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- चमगादड़,सांप,पशुओं,पक्षियों का भक्षण करना,समुद्री जीवों का भक्षण,शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति का काम होना,किसी क्रोनिक बीमारियों से ग्रसित होना,चमगादड़ से पेंगोलिन में संक्रमण का आना,पेंगोलिन से संक्रमण मनुष्य में आना,गंदगी युक्त परिवेश में रहना आदि कोरोना वायरस के संक्रमण के मुख्य लक्षण हैं।

सावधानियां :- (1)सर्दी जुकाम होने पर खांसते और छींकते समय टिशू पेपर का प्रयोग करना और उस पेपर को डस्टबिन में डाल देना ।

                   (2) अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोना और सेनिटाइजर 60 प्रतिशत से अधिक अल्कोहल वाला प्रयोग करना ।

                   (3) नाक और मुँह पर मास्क से ढँकना।

                   (4) संक्रमित लोगों से दूरी बनाकर रहना।

                   (5) संक्रमित लोगों द्वारा इश्तेमाल की गई वस्तुओं से परहेज रखना।

                   (6) घर को स्वच्छ रखना एवं फिनायल और ब्लीचिंग पाउडर से सफाई करना।

                   (7) घर से बाहर लाये गए चीजों को संक्रमित समझ कर अच्छी तरह से धोना।

                   (8) नॉनवेज खासकर समुद्री भोज्य पदार्थों को भक्षण करने से बचना।

                   (9) नाक,आँखों और मुँह को बार - बार छूने से बचना।

                   (10) सक्रमित लोगों को अलग - थलग रखना।

उपचार :- (1) समुद्री फ़ूड खाने से परहेज करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।

(2) साफ़ - सफाई युक्त परिवेश में रहने एवं पानी से नहीं साबुन या हैंडवॉश करके भोजन करने से भी कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।

(3) यात्रा के दौरान नाक एवं मुँह को ढंककर रखने से भी कोरोना वायरस से बचा जा सकता है।  

(4) अनार की सुखी या ताज़ी पत्तियां,तुलसी की पत्तियां एवं काली मिर्च को पानी में डालकर उबालें और छानकर पीने से कोरोना वायरस की 

      संक्रमण से बचाव हो जाता है।

(5) अनार की कलियों को सुखाकर चूर्ण बनालें और एक चम्मच चार कप पानी में डालकर उबालें ,जब एक कप शेष रह जाये तो छानकर पीने से कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है।

( 6 ) गिलोय की डंडी एक फुट की लम्बाई का,हल्दी पाउडर घर में पीसी हुई एक चम्मच या कच्ची हल्दी पांच ग्राम,दस से पंद्रह पत्ती तुलसी,अदरक पांच से दस ग्राम,काली मिर्च तीन चार सबको दो गिलास पानी में डालकर धीमी आंच में पकाएं और जब एक चौथाई रह जाय तो छानकर सुबह शाम पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति इतनी प्रबल हो जाएगी कि कोरोना ही नहीं अन्य भी कोई बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी।


acute encephalitis syndrome disease

चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम रोग :- चमकी बुखार एक रहस्यमय,संक्रामक एवं खतरनाक बीमारी के रूप में विख्यात है,जो मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र की बीमारी है।इस बीमारी में वायरस के संक्रमण हो जाने से मस्तिष्क के नर्वस सिस्टम या तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो जाता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन एवं अन्य समस्या उत्पन्न हो जाती है ।फलस्वरूप शरीर के अंग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है ।यह वास्तव में अत्यधिक गर्मी एवं नमीयुक्त मौसम में शरीर में पानी की कमी के कारण खून में शुगर एवं सोडियम की कमी हो जाने की वजह से होता है। इसे दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है ।

भारत में प्रत्येक साल मई और जून के महीने में विशेषकर बिहार प्रान्त के अलग -अलग क्षेत्रों में 1 से 15 साल की उम्र की बच्चे इस बीमारी से अत्यधिक प्रभावित होकर अपना जीवन खो देते हैं।इस बीमारी में शरीर की प्रमुख नर्वस सिस्टम या तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है ।अत्यधिक गर्मी एवं नमीयुक्त मौसम में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम की फैलने की रफ़्तार अत्यधिक बढ़ जाती है ;क्योंकि गर्मियों में तेज धूप ,शरीर में पानी की कमी हो जाने एवं समय पर उचित उपचार न मिल पाने की वजह से जानलेवा साबित हो जाती है ।वास्तव में मानव मस्तिष्क में असंख्य कोशिकाएं एवं तंत्रिकाएं होती हैं ,जिनके सहारे शरीर की अंग कार्य करते हैं ।किन्तु जब इन कोशिकाओं में सूजन या अन्य दिक्क्तें आ जाती हैं तो इसे ही एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहते हैं ।

लक्षण :- अत्यधिक पसीना आना,तेज बुखार,शरीर में पानी की कमी,शरीर में ऐठन,डिहाइड्रेशन,लो ब्लड प्रेशर,सिरदर्द,थकान,बेहोशी,जबड़े और दानत कड़े हो जाना,लकवा,मिर्गी,भूख में कमी आदि चमकी बुखार की प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- वाइरस,वैक्टीरिया,फंगस,प्रोटोजोआ ,अत्यधिक गर्मी,शरीर में पानी की कमी,खून में शुगर एवं सोडियम की कमी,खली पेट लीची खाकर पानी पीना,मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन आदि चमकी बुखार की मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1)  चीनी ,नमक का घोल ,छाछ,शिकंजी लगातार एक -एक घंटे पर पिलाने से चमकी बुखार में बहुत राहत मिलती है और प्राण 

                     रक्षा हो जाती है ।

              (2) नीम्बू और पानी में थोड़ा सा नामक एवं चीनी मिलाकर प्रति घंटे पिलाने से चमकी बुखार से शरीर में होने वाली पानी की कमी को रोककर जान की रक्षा होती है ।

              (3) एलोवेरा जूस प्रति घंटे पिलाने से भी चमकी बुखार दूर हो जाती है।


              (4) गिलोय स्वरस प्रतिदिन तीन बार पिलाने से चमकी बुखार से मुक्ति मिलती है।

              (5) मठ्ठा ,लस्सी और बेल का शरबत पिलाने से भी चमकी बुखार में राहत मिलती है ।

                    (6) नारियल पानी के प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन से भी चमकी या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम रोग से बचाव हो जाता है ।


irritable bowel syndrome

चिड़चिड़ा (क्षोभी)आंत्र विकार:-  एक आँतों का रोग है,जो जठरांत्र पथ और मस्तिष्क के मध्य में सम्पर्क का एक विकार है।इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होकर चिरकालिक दर्द,थकान आदि का कारण बनती हैं।इस बीमारी को स्पैस्टिक कोलन,इर्रिटेबल कोलन,म्यूकस कोइलटिस जैसे नामों से भी जाना जाता है।यह आँतों को क्षतिग्रस्त तो नहीं करता;परन्तु ख़राब होने का संकेत अवश्य देने लगता है,जिसे नजरअंदाज करने पर व्यक्ति को शारीरिक दुर्वलता एवं तकलीफें महसूस होने लगती हैं तथा पेट में  दर्द,बेचैनी,मल त्याग करने में परेशानी आदि होती हैं।यह बीमारी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा पाईं जाती हैं।

लक्षण:-पेट में दर्द,बेचैनी के साथ लगातार दस्त या कब्ज,हाथ -पैरों में सूजन,आलस्य,चिड़चिड़ापन,पेट का साफ न होना यानि मल की अधूरी निकासी,थकान,सिरदर्द,पीठ में दर्द,मनोरोग के लक्षण जैसे -अवसाद एवं चिंता से सबंधित लक्षणों का पाया जाना,आँतों की आदतों में परिवर्तन के कारण अपक्व मलों का होना आदि क्षोभी आंत्र विकार के सामान्य लक्षण हैं |

उपचार:-(1)नागरमोथा,सोंठ,अतीश,गिलोय सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर छान लें और बीस-तीस मिलीलीटर सुबह खली पेट पीने से क्षोभी आंत्र विकार का नाश हो जाता है।     

           (2) हरीतकी,शुंठी,पिप्पली,चित्रक समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर सुबह -शाम तीन से छह ग्राम छाछ के साथ सेवन से क्षोभी आंत्र विकार नष्ट हो जाता है।

           (3)दालचीनी,सोंठ,जीरा समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर दो -तीन ग्राम की मात्रा शहद के साथ खाने से क्षोभी आंत्र विकार का नाश हो जाता है।

          (4)तीन ग्राम इसबगोल गुनगुने जल के साथ सोते समय खाने से यह बीमारी दूर हो जाती है।

          (5)एक गिलास जल में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण भिंगों दे और प्रातः खली पेट पीने से क्षोभी आंत्र विकारका नाश हो जाता है।

          (6) त्रिकूट चूर्ण के सेवन करने से आँतों में जमे हुए विषाक्त मल के निकल जाने से क्षोभी आंत्र विकारका नाश हो जाता है।


low sperm count

वीर्य में शुक्राणुओं की कमी :- वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होने पर व्यक्ति संतान पैदा करने में असमर्थ रहता है ,जिससे वह सम्मानजनक जिंदगी नहीं जी सकता है और संमाज में लोग उसे सही नजरसे नहीं देखते हैं ।व्यक्ति में हीन भावना आ जाती है ,वह अपने आपको कोसने लगता है ।कुछ लोगों के मन में तो आत्महत्या जैसी भावना आने लगती है और वे निराश हो जाते हैं ,अवसाद ग्रस्त होकर अपना जीवन तक समाप्त कर लेते हैं ।

उपचार सामग्री :- (१) शुद्ध कौंच बीज -४० ग्राम  (२)अश्वगंधा घनसत्व -२० ग्राम  (३)चारों प्रकार की मूसली -८० ग्राम (४) शुक्र वल्लभ रस -६ ग्राम (५)सिद्ध मकरध्वज स्पेशल - ५ ग्राम (६) वज्र (भस्म हीरक )-१/४ ग्राम (७) स्वर्ण भस्म -१/४ ग्राम (८) सतावर चूर्ण -२० ग्राम 

दवा बनाने की विधि :--सबसे पहले शुक्रवल्लभ रस को घुटाई कर फिर मकरध्वज स्पेशल को पीस लें ,फिर हीरक भस्म ,स्वर्ण   भस्म को घुटाई कर बारीक करके फिर सतावर ,अश्वगंधा घनसत्व ,शुद्ध कौंच बीज ,चारों मुसलियों को मिलकर घोंट कर एक जान कर पूरे मिश्रण के बराबर मिश्री मिलकर ८० पुड़िया बना लें

सेवन विधि :-प्रातः दोपहर सायं एक गिलास दूध के साथ एक पुड़िया खाने से कुछ ही दिनों में वीर्य शुक्राणुओं से लबालव हो जायेगा ।

परहेज :-खट्टी ,तली-भुनी ,मिर्च मसाला ,सम्भोग ,से दूर एवं पेट साफ रखें ।


jalodar diseases

जलोदर लक्षण :- बीमारी में पेट में सूजन आ जाती है । पेट में पानी जमा हो जाता है,इसलिए इसे जलोदर के नाम से जाना जाता है ।पानी भरने से पेट का अगला भाग बढ़ने लगता है|श्वसन में परेशानी ,प्यास ,दिल धड़कना ,पेशाब का कम होना ,कब्ज ,पेट में पानी की आवाज हिलने -डुलने पर महसूस होना आदि इनके लक्षण हैं |

उपचार :-   (१)गोमूत्र अर्क और मकोय अर्क को दो -दो चम्मच साथ में पानी में मिलकर रोगी को पिलाने से जलोदर की बीमारी दूर हो जाती है ।

                (२)अजवाइन को गाय के बछड़े के मूत्र में भिंगोकर सुखाकर चूर्ण बना लें और चार -चार ग्राम रोगी को देने से जलोदर रोग नष्ट होता है ।               (३)बेलपत्र के ताजे पत्ते के स्वरस में दो से तीन तोला तक छोटी पीपली के चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करने से जलोदर की बीमारी दूर हो जाती है ।  

 


delay in menses

मासिक धर्म में देरी के कारण :-.मासिक धर्म संसार में प्रत्येक लड़की और महिला के शरीर की एक प्राकृतिक क्रिया है और यह उनके जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा भी है।कभी -कभी महिलाओं को मासिक धर्म में देरी की समस्या से भी गुजरना पड़ता है, जो उनके लिए बड़ा ही कष्टप्रद होता है।आजकल महिलायें मासिक धर्म को जल्दी या देरी से लाने का प्रयास करती हैं,जो उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं। मासिक धर्म में देरी के कुछ कारण निम्नलिखित हैं -

(१)हार्मोन में बदलाव 

(२)बीमारी जैसे -थायरॉइड ,पी.ओ.एस.(पोलिस्टिक ओवरी सिंड्रोम ),सही पोषक तत्त्व न लेना आदि 

(३)तनाव 

(४)दवाइयों का प्रतिकूल प्रभाव 

उपचार :-

(१)एक चम्मच सौंफ चार चम्मच पानी में डालकर उबालें और फिर छानकर पानी को ठंडा कर दिन में थोड़ी -थोड़ी देर बाद पीने से मासिक धर्म समय पर आने लगता है।

(२)दालचीनी पॉउडर आधा चम्मच को दूध में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से मासिक धर्म नियमित हो जाता है और साथ ही ज्यादा रक्त स्राव भी नहीं होता है।  

(३)आधा चम्मच अदरक के रस को शहद में मिलाकर मासिक धर्म होने की तारीख से एक सप्ताह पहले खाना शुरू करने से देरी की समस्या से निजात मिल जाती है। 

(४)एक कटोरी पका पपीता या पपीता का जूस मासिक की तारीख से एक या दो सप्ताह पहले खाने या जूस पीने से मासिक धर्म की समस्या दूर हो जाती है ।

(५)आधा चम्मच अरंडी के तेल से  पेट के निचले हिस्से की मालिश करें और १५-२० मिनट तक सिकाई मासिक धर्म के एक सप्ताह पहले से करें ।आपकी मासिक धर्म की सारी समस्या दूर हो जाएगी ।  


child weeping

बच्चों का बहुत रोना :-सभी शिशु रोते हैं ,यह बिलकुल सामान्य बात है।अधिकांश शिशु प्रत्येक दिन कुल एक घंटे से लेकर तीन घंटे तक के समय के लिए रोते हैं ;किन्तु जब शिशु ज्यादा रोये और चुप नहीं हो तो यह समझना चाहिए कि बच्चों को कुछ परेशानी है,शिशु तो बता नहीं सकता।वैसी स्थिति में जिस अंग को बालक बार -बार स्पर्श करे अथवा जिस स्थान को दबाने से बच्चा ज्यादा रोये ,वही स्थान पीड़ा का हो सकता है ,यह समझना चाहिए और उसका समुचित उपचार करना चाहिए। 

उपचार :-पीपर और    त्रिफला का चूर्ण घी तथा शहद (असमान भाग ) के साथ चटाने से बच्चों का रोना और चौंकना आराम हो जाता है । 


sukha rog

सूखा रोग :- सूखा रोग बच्चों का एक गंभीर रोग है ,जो विटामिन डी एवं कैल्सियम की कमी के कारण होता है। सूखा रोग विटामिन डी की कमी के अतिरिक्त कुपोषण एवं संतुलित आहार न मिल पाना भी एक प्रमुख कारण है। वास्तव में सूखा रोग अस्थियों का रोग है ,जो अधिकांशतः बच्चों में पाया जाता है। इस बीमारी में बच्चों की हड्डियाँ नरम एवं कमजोर हो जाती हैं। परिणामस्वरूप अस्थि विकार के कारण पैरों में टेढ़ापन एवं मेरुदंड में मोड़ आ जाता है। बच्चों के शरीर में हड्डयों का ढांचा ही नजर आता है और शरीर एकदम दुबला - पतला कृशकाय नजर आता है। 

लक्षण :- कंकाल विकृति,अस्थि भंगुरता,विकास में बाधा,हड्डियों का दर्द,पेशीय कमजोरी आदि सूखा रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- विटामिन डी की कमी,कैल्सियम की कमी,पाचन तंत्र में विकार,माता का गलत खान - पान,अधिक चीनी का सेवन,फास्फोरस की कमी,संतुलित एवं पौष्टिक भोजन न मिलना आदि सूखा रोग के मुख्य कारण हैं। 

उपचार :- (1) बिदारिकाण्ड ,गेहूँ ,और जौ का आटा घी में मिलाकर खिलाना चाहिए और दूध -मिश्री या शहद -दूध पिलाना चाहिए ।

 (2) सुबह - शाम दो -तीन चम्मच पपीते का रस पिलाने से सूखा रोग धीरे - धीरे ठीक हो जाता है। 

(3) आधा चम्मच सेब के सिरके में एक चम्मच जामुन का रस मिलकर दिन में तीन बार पिलाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है। 

(4) छोटी पीपल को सौंफ के अर्क में घिसकर चटाने से सूखा रोग दूर हो जाता है। 

(5) पीपरामूल,अजवाइन,चीता,यवक्षार एवं छोटी पीपल 5 - 5 ग्राम की मात्रा लेकर चूर्ण बनाकर दही के पानी के साथ तीन रत्ती पिलाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है। 

(6) दो रत्ती अपामार्ग के क्षार के साथ में दही मिलकर खिलाने से सूखा रोग दूर हो जाता है। 

(7) एक चम्मच मकोय का रस एवं उसमें एक रत्ती कपूर मिलाकर सुबह - शाम चटाने से सूखा रोग ठीक हो जाता है।    


pasli harfa

पसली ( पांजारा ) डब्बा और हरफा रोग : - पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग बच्चों को होने वाली एक अत्यंत गंभीर रोग है,जो मौसम के बदलाव या परिवर्तन के कारण होता है। अधिकतर यह रोग सर्दी के मौसम में होता है; किन्तु अन्य मौसम में भी हो सकता है। इस बीमारी में बच्चा दूध पीना बंद कर देता है और बहुत ज्यादा रोता है। पसली चलना या हांफना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है।  गंभीर स्थिति हो जाने पर निमोनिया का हो जाना इसकी अगली स्थिति होती है ,जो जानलेवा साबित हो सकती है। अतः प्रारंभिक स्थिति में उपचार की आवश्यकता होती है जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। 

लक्षण :- सर्दी - जुकाम,नाक से पानी चलना,छींक आना,साँस की गति तेज होना,बहुत सुस्त हो जाना,बार - बार रोना,बुखार,खांसी,पसलियां चलना,साँस लेने में कठिनाई आदि पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- सर्दी - जुकाम एवं खांसी,श्वसन तंत्र में संक्रमण,मौसम में परिवर्तन,कमजोर इम्यून सिस्टम,माता का गलत खान - पान आदि पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग के मुख्य कारण है। 

उपचार :-(1) जब बालक का पाखाना और पेशाब बंद जाये ,बुखार तेज हो और सांस चले तो गोंद बबूलऔर मुसब्बर समान भाग घी कुवार के रस में मिलाकर पेट पर गुनगुना लेप करना चाहिए ।   

(2) कबीला -८ भाग और हींग -१ भाग दोनोंको बारीक पीसकर दही के तोड़ के साथ गोली मिर्च के समान बना कर गर्म जल के साथ देने से रोग नष्ट होता है ।

 (3) पीपली चूर्ण थोड़ा सा शहद के साथ चटाने एवं पसलियों पर लेप करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग  ठीक हो जाता है। 

(4) बच्चे के उदर पर एरंड के तेल की मालिश करें और बकायन के पत्ते को हल्का सा गरम करके बांधने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(5) सरसों के तेल को गर्म करें और उसमें थोड़ा सा नमक डालकर उतार लें और ठंडा करके एक शीशी में रख लें। पसली की सिंकाई एवं मालिश करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग दूर हो जाता है। 

(6) मुनक्का एक दाना,आधा रत्ती दालचीनी पाउडर,एवं काकड़ासिंगी तीन रत्ती शहद के साथ मिलाकर बच्चों को चाटने से खांसी ,कफ व पसली चलना ठीक हो जाता है। 

(7) बेल की जड़, छाल एवं पत्ते,त्रिफला,नागरमोथा,एवं कटेरी 5 - 5 ग्राम की मात्रा लेकर 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर एक चम्मच 15 - 15  मिनट के अंतराल पर बच्चों को पिलाने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(8) देशी घी में अजवाइन को हल्का गर्म कर उससे बच्चों की छाती पर मालिश करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग ठीक हो जाता है। 

(9) दूध एवं फलों का रस मिलाकर पिलाने से भी पसली ( पांजरा ) डब्बा एवं हरफा रोग में बहुत आराम मिलता है। 

(10) बच्चों की पेडू पर मिटटी की पट्टी करने से पसली ( पांजारा ) डब्बा एवं हरफा रोग दूर हो जाता है। 


afra vayu

अफरा एवं वायु रोग : - अफरा एवं वायु रोग बच्चों का एक अत्यंत कष्ट प्रदायक रोग है ,जो वायु के अधिक बन जाने से उदर फूल जाता है एवं साँस लेने में परेशानी का अनुभव करने लगता है। यह पेट में वायु यानि गैस रुक जाने,न निकल पाने की वजह से होता है। वास्तव में अफरा एवं वायु बच्चों के लिए आंतों एवं अमाशय में गैस भर जाने की स्थिति में पेट फूल जाता है और अफरा जैसी स्थिति बन जाती है। कभी - कभी तो बच्चों के लिए यह बीमारी जानलेवा साबित होती है ;क्योंकि बच्चा अपनी परेशानी बता पाने में असमर्थ होता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है। 
लक्षण : - पेट में दर्द,हृदय एवं गले में दर्द,अरुचि,अत्यधिक प्यास,होंठ सूखना, पेट में आवाज होना,बेचैनी,पेट का फूलना,गैस का न निकलना,बार - बार पेशाब आना एवं कष्ट होना आदि अफरा एवं वायु रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 
कारण : - अस्वस्थ आहार,अधिक मात्रा में दूध का पी लेना,माता द्वारा बासी भोजन खाना यानि माता का गलत खान - पान,पाचन मार्ग में जीवाणुओं का संक्रमण आदि अफरा एवं वायु रोग के मुख्य कारण हैं। 
उपचार : - (1) सेंधा नमक,सोंठ,हींग एवं भारंगी का चूर्ण घी के साथ चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(2) एक चम्मच अजवाइन पानी में डालकर गर्म करें और एक चौथाई रहने पर छानकर पिलाने से अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(3) हरड़ चूर्ण थोड़ा सा लेकर उसे शहद के साथ चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(4) काली मिर्च,सुखी अदरक एवं इलायची का चूर्ण बनाकर 1 /4 चौथाई चम्मच बच्चों को सेवन कराने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(5) अजवाइन,जीरा,छोटी हरड़ एवं काला नमक सबका चूर्ण बनाकर थोड़ा सा बच्चों को खिलाएं और पानी पिलाने से अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(6) नारियल पानी पिलाने से भी अफरा एवं वायु रोग दूर हो जाता है। 
(7) सेब का सिरका आधा चम्मच पानी में मिलाकर पिलाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 
(8) भुनी हुई हींग थोड़ा सा और काला नमक मिलाकर चटाने से अफरा एवं वायु रोग ठीक हो जाता है। 

  बच्चों के रोग

  पुरुषों के रोग

  स्त्री रोग

  पाचन तंत्र

  त्वचा के रोग

  श्वसन तंत्र के रोग

  ज्वर या बुखार

  मानसिक रोग

  कान,नाक एवं गला रोग

  सिर के रोग

  तंत्रिका रोग

  मोटापा रोग

  बालों के रोग

  जोड़ एवं हड्डी रोग

  रक्त रोग

  मांसपेशियों का रोग

  संक्रामक रोग

  नसों या वेन्स के रोग

  एलर्जी रोग

  मुँह ,दांत के रोग

  मूत्र तंत्र के रोग

  ह्रदय रोग

  आँखों के रोग

  यौन जनित रोग

  गुर्दा रोग

  आँतों के रोग

  लिवर के रोग